सोमवार को कोर्ट के भीतर, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे विवाद पर आखिरकार विराम लगाया, जो वर्षों से चुपचाप उत्तर प्रदेश के सहकारी चीनी क्षेत्र को परेशान कर रहा था। राज्य सरकार द्वारा दायर अपीलों पर सुनवाई करते हुए, पीठ ने साफ कहा कि वर्ष 2000 में उत्तराखंड के गठन से हर सहकारी समिति अपने-आप बहु-राज्य संस्था नहीं बन जाती। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2008 के उस निर्णय को पलटता है, जिसने कुछ सहकारी चीनी मिलों के निजीकरण की राज्य की कोशिशों पर रोक लगा दी थी।
Background
इस मामले की जड़ें पीलीभीत स्थित किसान कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री लिमिटेड से जुड़ी हैं, जो मूल रूप से राज्य कानून के तहत पंजीकृत थी। उत्तर प्रदेश के विभाजन और उत्तराखंड के गठन के बाद, कुछ शेयरधारकों ने हाईकोर्ट का रुख किया। उनका तर्क था कि सहकारी समिति स्वतः ही “बहु-राज्य सहकारी समिति” बन गई है। यदि ऐसा माना जाए, तो उनके अनुसार केवल केंद्र सरकार ही निजीकरण समेत किसी भी तरह के फैसले लेने की अधिकारिक होगी।
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हाईकोर्ट ने 2008 में इस दलील को स्वीकार कर लिया और बहु-राज्य सहकारी समितियां अधिनियम, 2002 की धारा 103 पर काफी हद तक भरोसा किया, जो राज्यों के पुनर्गठन के बाद समितियों की स्थिति से जुड़ी है। इसी व्याख्या को उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
Court’s Observations
जस्टिस विक्रम नाथ की अगुवाई वाली पीठ ने कानून को नए सिरे से और सावधानी से पढ़ा। पीठ ने कहा कि धारा 103 को अलग-थलग रखकर नहीं देखा जा सकता। “पीठ ने कहा, ‘पुनर्गठित राज्य में काम कर रही हर सहकारी समिति स्वतः बहु-राज्य सहकारी समिति नहीं बन जाती,’” और जोड़ा कि संसद की मंशा कभी भी इतना व्यापक परिणाम पैदा करने की नहीं थी।
न्यायाधीशों ने सरल शब्दों में समिति के उद्देश्यों और उसके कार्यक्षेत्र के बीच फर्क समझाया। उद्देश्य यह बताते हैं कि समिति का मूल काम क्या है और वह किन सदस्यों के हितों की सेवा करती है, जबकि कार्यक्षेत्र केवल भौगोलिक फैलाव को दर्शाता है। कोर्ट ने कहा कि इन दोनों को गड़बड़ाने की वजह से ही हाईकोर्ट से चूक हुई।
पीठ ने रेखांकित किया कि केंद्रीय अधिनियम के तहत कोई समिति तभी बहु-राज्य बनती है, जब उसके मुख्य उद्देश्य एक से अधिक राज्यों में सदस्यों के हितों की सेवा करते हों। केवल यह तथ्य कि कुछ सदस्य दूसरे राज्य में रहते हैं या गन्ने की आपूर्ति किसी अन्य राज्य से होती है, पर्याप्त नहीं है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की, “सदस्यों का निवास स्थान अप्रासंगिक है,” और यह भी जोड़ा कि कानून में मौजूद ‘डिमिंग क्लॉज’ का प्रयोग बेहद सतर्कता से किया जाना चाहिए।
Decision
इन कानूनी सिद्धांतों को मामले के तथ्यों पर लागू करते हुए कोर्ट ने पाया कि पुनर्गठन के बाद भी सहकारी चीनी मिल के उद्देश्य उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रहे। इसलिए धारा 103 लागू नहीं होती। परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया गया, राज्य सरकार की अपीलें स्वीकार की गईं और राज्य की कार्रवाई को चुनौती देने वाली दोनों रिट याचिकाएं खारिज कर दी गईं। इसके साथ ही सहकारी कानून के तहत उत्तर प्रदेश का अधिकार बहाल हो गया ।
Case Title: State of Uttar Pradesh through Principal Secretary & Ors. vs. Milk iyat Singh & Ors.
Case No.: Civil Appeal Nos. 7050–7051 of 2010
Case Type: Civil Appeal (Cooperative Society / State Reorganisation)
Decision Date: 15 December 2025










