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अरावली पर खनन रोक पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी सुनवाई: नई परिभाषा और आदेशों पर अस्थायी रोक

Vivek G.

अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की परिभाषा और संबंधित मुद्दे, सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा और खनन निर्देशों पर रोक लगाई। विशेषज्ञ समिति से वैज्ञानिक समीक्षा का आदेश।

अरावली पर खनन रोक पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी सुनवाई: नई परिभाषा और आदेशों पर अस्थायी रोक
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नई दिल्ली की ठंडी सुबह में जब मामला पुकारा गया, तो अदालत कक्ष में माहौल असामान्य रूप से गंभीर था। Supreme Court of India ने अरावली पहाड़ियों से जुड़े एक बेहद संवेदनशील पर्यावरणीय मुद्दे पर स्वतः संज्ञान (सुओ मोटो) याचिका की सुनवाई की। सवाल सिर्फ खनन का नहीं था, बल्कि उस परिभाषा का भी, जिस पर पूरे अरावली क्षेत्र का भविष्य टिका हुआ है।

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मामले की पृष्ठभूमि

अरावली पर्वतमाला को उत्तर-पश्चिम भारत के “ग्रीन लंग्स” यानी हरित फेफड़े कहा जाता है। सदियों से यह क्षेत्र पारिस्थितिकी, भूजल संरक्षण और स्थानीय आजीविका का आधार रहा है।
लेकिन समस्या तब गहराई, जब अलग-अलग राज्यों-दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात-ने अरावली की अलग-अलग परिभाषाएं अपनाईं। इसी असमानता का फायदा उठाकर कई जगह खनन गतिविधियां जारी रहीं।

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2002 से ही सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे से जुड़ी याचिकाओं पर निगरानी रखता आ रहा है। मई 2024 में अदालत ने इस भ्रम को खत्म करने के लिए एक समिति गठित की थी, ताकि “अरावली हिल्स और रेंज” की एक समान परिभाषा तय की जा सके।

समिति की रिपोर्ट और विवाद

समिति ने अक्टूबर 2025 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें कहा गया कि:

  • 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भूमि संरचना को “अरावली हिल” माना जाए
  • 500 मीटर की दूरी के भीतर स्थित दो या अधिक ऐसी पहाड़ियों को “अरावली रेंज” कहा जाए

इसी आधार पर समिति ने सिफारिश की कि इन क्षेत्रों में नई खनन लीज़ न दी जाए

20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट को स्वीकार भी कर लिया। लेकिन इसके बाद कई याचिकाएं और आवेदन अदालत पहुंचे। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने आशंका जताई कि नई परिभाषा से अरावली का बड़ा हिस्सा तकनीकी रूप से “गैर-अरावली” घोषित हो सकता है।

अदालत की अहम टिप्पणियां

सोमवार की सुनवाई में पीठ ने इन चिंताओं को गंभीर माना। न्यायालय ने साफ कहा कि मौजूदा परिभाषा में कई अस्पष्टताएं हैं।

पीठ ने टिप्पणी की,

“यह जरूरी है कि हम यह सुनिश्चित करें कि परिभाषा के कारण पारिस्थितिक सुरक्षा कमजोर न पड़े।”

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अदालत ने सवाल उठाए कि क्या 500 मीटर की सीमा से बाहर की पहाड़ियां, जो भौगोलिक रूप से जुड़ी हैं, संरक्षण से बाहर हो जाएंगी। साथ ही यह भी पूछा गया कि क्या 100 मीटर की ऊंचाई की शर्त से सैकड़ों छोटी पहाड़ियां कानूनी सुरक्षा से वंचित हो जाएंगी।

इन मुद्दों को स्पष्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने का फैसला किया। यह समिति:

  • किन क्षेत्रों को संरक्षण मिलेगा, इसकी स्पष्ट पहचान करेगी
  • कौन-से इलाके बाहर हो रहे हैं, इसका आकलन करेगी
  • “सस्टेनेबल माइनिंग” के दीर्घकालिक पर्यावरणीय असर पर रिपोर्ट देगी

अदालत ने कहा कि जब तक यह विस्तृत वैज्ञानिक समीक्षा पूरी नहीं हो जाती, तब तक कोई अंतिम कदम उठाना जल्दबाजी होगी।

अंतरिम आदेश और फैसला

सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा अंतरिम आदेश दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि:

  • 20 नवंबर 2025 के फैसले
  • और समिति की सिफारिशों

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दोनों को फिलहाल स्थगित (स्टे) रखा जाएगा।

इसके साथ ही अदालत ने दोहराया कि पहले से जारी निर्देशों के अनुसार, अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह की नई या नवीनीकरण खनन अनुमति तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक कोर्ट की स्पष्ट अनुमति न हो।

मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को ग्रीन बेंच के समक्ष तय की गई है।

Case Title: In Re: Definition of Aravalli Hills and Ranges

Case No.: Suo Motu Writ Petition (Civil) No. 10/2025

Case Type: Public Interest Litigation (Environment)

Decision Date: 29 December 2025

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