सोमवार को कलकत्ता हाई कोर्ट के वाणिज्यिक प्रभाग की एक अपेक्षाकृत भरी हुई अदालत में मकान-मालिक और किरायेदार के बीच का एक जाना-पहचाना विवाद अचानक एक तीखे कानूनी मोड़ पर आ गया। न्यायमूर्ति अनिरुद्ध रॉय ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और एचडीएफसी बैंक लिमिटेड के बीच लीज़ नवीनीकरण को लेकर चल रहे विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने से इनकार कर दिया और कहा कि यह विवाद अब समाप्त हो चुकी लीज़ से उत्पन्न नहीं होता है।
यह आदेश 23 दिसंबर को, उसी दिन पारित किया गया जिस दिन सुनवाई हुई। इसके साथ ही, फिलहाल कम से कम, एचडीएफसी बैंक की उस कोशिश पर विराम लग गया जिसमें वह दीवानी मुकदमे को अदालत की कार्यवाही से हटाकर मध्यस्थता की ओर ले जाना चाहता था।
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पृष्ठभूमि
मामले की जड़ें सितंबर 2014 में निष्पादित एक लीज़ में हैं, जो कोलकाता की एक व्यावसायिक संपत्ति से संबंधित थी। मूल रूप से यह संपत्ति विलियमसन मैगोर के स्वामित्व में थी, जिसे बाद में एचडीएफसी लिमिटेड को हस्तांतरित कर दिया गया। एचडीएफसी के विलय के बाद, एचडीएफसी बैंक उस संपत्ति का मकान-मालिक बन गया।
यह लीज़ अपने पूरे नौ वर्ष की अवधि तक चली और 31 मार्च 2023 को समाप्त हो गई। इसके बावजूद, न्यू इंडिया एश्योरेंस ने परिसर खाली नहीं किया। उसका कहना था कि मई 2022 में दोनों पक्षों के बीच हुए ईमेल पत्राचार से यह स्पष्ट होता है कि अप्रैल 2023 से शुरू होने वाली दस वर्षों की नई लीज़ को लेकर दोनों पक्ष सहमत हो चुके थे।
महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस दौरान किराया लिया जाता रहा। मामला तब और बिगड़ गया जब सितंबर 2023 में एचडीएफसी बैंक ने बैंकिंग कानूनों के तहत नियामकीय आवश्यकताओं का हवाला देते हुए बेदखली का नोटिस जारी कर दिया। इसके जवाब में न्यू इंडिया एश्योरेंस ने अदालत में एक दीवानी वाद दायर कर ‘विशिष्ट निष्पादन’ की मांग की, यानी अदालत से यह आग्रह किया कि बैंक को नई लीज़ निष्पादित करने का निर्देश दिया जाए।
इसके बाद एचडीएफसी बैंक ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत एक आवेदन दायर कर तर्क दिया कि 2014 की लीज़ में मौजूद मध्यस्थता खंड इस पूरे विवाद को कवर करता है।
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अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति रॉय ने इस मुद्दे पर बात करते हुए साफ शब्दों में स्थिति स्पष्ट की। अदालत ने यह स्वीकार किया कि पुरानी लीज़ में मध्यस्थता का प्रावधान था और यह भी कि बीमा कंपनी अब भी परिसर में काबिज़ है तथा किराया स्वीकार किया जा रहा है।
लेकिन, अदालत के अनुसार असली सवाल कहीं अधिक सीधा था-विवाद आखिर है किस बारे में?
पीठ ने कहा, “मूल लीज़ निस्संदेह 31 मार्च 2023 को समाप्त हो चुकी है,” और आगे जोड़ा कि एक बार लीज़ समाप्त हो जाने के बाद “नवीनीकरण का प्रश्न ही नहीं उठता।”
न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि न्यू इंडिया एश्योरेंस किसी भी अधिकार का दावा समाप्त हो चुकी लीज़ के तहत नहीं कर रही है। उसका दावा बाद में हुए पत्राचार से उत्पन्न कथित रूप से पूर्ण हो चुके एक अलग अनुबंध के प्रवर्तन से जुड़ा है। अदालत के अनुसार, यह दावा अपने आप में स्वतंत्र आधार पर खड़ा है।
इस स्तर पर, न्यायमूर्ति रॉय ने स्पष्ट किया कि अदालत यह तय नहीं कर रही है कि अंततः बीमा कंपनी मुकदमे में जीतेगी या हारेगी। आदेश में कहा गया, “वाद सफल हो सकता है, असफल भी हो सकता है,” लेकिन धारा 8 के आवेदन पर निर्णय लेते समय मामले के गुण-दोष पर विचार करना आवश्यक नहीं है।
चूंकि दावा एक नई लीज़ के निष्पादन से संबंधित है और समाप्त हो चुकी लीज़ की किसी शर्त के प्रवर्तन से नहीं, इसलिए मध्यस्थता खंड को इस विवाद तक बढ़ाया नहीं जा सकता।
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निर्णय
अदालत ने यह मानते हुए कि वाद का विषय 2014 की लीज़ में निहित मध्यस्थता समझौते के दायरे में नहीं आता, एचडीएफसी बैंक का आवेदन खारिज कर दिया। धारा 8 के तहत दायर याचिका असफल रही और दीवानी मुकदमा वाणिज्यिक प्रभाग में ही आगे चलेगा। लागत के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया गया।
Case Title: New India Assurance Company Limited vs HDFC Bank Limited
Case No.: IA No. GA-COM/2/2025 in CS-COM/41/2025
Case Type: Commercial Suit – Application under Section 8, Arbitration and Conciliation Act, 1996
Decision Date: 23 December 2025














