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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षक उपस्थिति पर सख्ती का समर्थन किया, निलंबन हटाने से इनकार, त्वरित विभागीय कार्रवाई और नई राज्य नीति के निर्देश

Shivam Y.

इंद्रा देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गैरहाज़िरी के कारण टीचरों का सस्पेंशन रद्द करने से इनकार कर दिया, जल्दी जांच का आदेश दिया और UP सरकार को सख्त अटेंडेंस पॉलिसी लागू करने का निर्देश दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षक उपस्थिति पर सख्ती का समर्थन किया, निलंबन हटाने से इनकार, त्वरित विभागीय कार्रवाई और नई राज्य नीति के निर्देश

मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यवाही कुछ अलग ही माहौल में रही। मामला भले ही स्कूल निरीक्षण के दौरान अनुपस्थित पाए गए शिक्षकों से जुड़ा था, लेकिन अदालत की चिंता इससे कहीं आगे की दिखी। न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने साफ शब्दों में कहा कि यह सिर्फ दो शिक्षकों के निलंबन का सवाल नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा के भविष्य का मुद्दा है।

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इंद्रा देवी और स्मृति लीना सिंह चौहान द्वारा दायर दो रिट याचिकाओं में जिला शिक्षा अधिकारियों द्वारा जारी निलंबन आदेशों को चुनौती दी गई थी। शिक्षकों का कहना था कि निरीक्षण के समय स्कूल में मौजूद न होने के आधार पर उनके खिलाफ जल्दबाजी में कार्रवाई की गई।

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पृष्ठभूमि

जुलाई और अगस्त 2025 में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों ने औचक निरीक्षण के बाद निलंबन आदेश जारी किए थे। निरीक्षण में शिक्षक स्कूल में उपस्थित नहीं पाए गए थे। चूंकि दोनों मामलों में तथ्य लगभग समान थे, इसलिए हाईकोर्ट ने इन्हें एक साथ सुनवाई के लिए लिया।

अदालत पहले ही अक्टूबर में यह टिप्पणी कर चुकी थी कि शिक्षक उपस्थिति से जुड़े मामलों से कोर्ट “भरती जा रही है”। तब न्यायालय ने चेतावनी दी थी कि यदि शिक्षक नियमित रूप से स्कूलों में मौजूद नहीं रहेंगे, तो शिक्षा का अधिकार अधिनियम केवल कागजों तक सीमित रह जाएगा। राज्य सरकार से यह भी पूछा गया था कि जमीनी स्तर पर क्या ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।

इसके जवाब में सरकार ने अदालत के सामने आंतरिक निर्देश और समिति की बैठकों के निर्णय रखे, जिनमें डिजिटल उपस्थिति प्रणाली और जिला स्तर पर टास्क फोर्स बनाने की बात कही गई।

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अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति पाडिया की टिप्पणी केवल कानूनी बहस तक सीमित नहीं रही। आदेश में शिक्षक की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की गई और भारतीय परंपरा, शास्त्रों तथा सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख किया गया।

अदालत ने कहा, “शिक्षक केवल वेतन पाने वाला कर्मचारी नहीं है,” और जोड़ा कि समाज शिक्षकों को ऊंचा स्थान इसलिए देता है क्योंकि वे बच्चों के सबसे संवेदनशील वर्षों में उनके व्यक्तित्व को गढ़ते हैं।

कोर्ट ने यह भी दर्ज किया कि ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों के देर से आने और अनुपस्थित रहने की शिकायतें अब आम होती जा रही हैं। ऐसे मामलों का सीधा असर गरीब परिवारों के बच्चों पर पड़ता है और इससे उनका मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का संवैधानिक अधिकार प्रभावित होता है।

साथ ही अदालत ने राज्य सरकार की जिम्मेदारी भी रेखांकित की। डिजिटल उपस्थिति को लेकर जारी आदेशों के बावजूद उसके सही तरीके से लागू न होने पर सवाल उठाए गए और कहा गया कि निगरानी व्यवस्था कागजों में नहीं, बल्कि जमीन पर दिखनी चाहिए।

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निर्णय

अंततः हाईकोर्ट ने निलंबन आदेशों में दखल देने से इनकार कर दिया। हालांकि, अदालत ने अनुशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिया कि शिक्षकों के खिलाफ शुरू की गई विभागीय कार्यवाही को दो महीने के भीतर पूरा किया जाए।

इसके साथ ही, बेसिक शिक्षा विभाग के विशेष सचिव को स्पष्ट निर्देश दिए गए कि शिक्षकों की समय पर स्कूलों में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए ठोस नीति निर्णय लिया जाए और तीन महीने के भीतर आवश्यक कदम उठाए जाएं। इन्हीं निर्देशों के साथ दोनों रिट याचिकाओं का निस्तारण कर दिया गया।

Case Title: Indra Devi vs State of Uttar Pradesh and Others

Case No.: Writ – A No. 14242 of 2025 (along with Writ – A No. 15566 of 2025)

Case Type: Service Writ Petition (Teacher Suspension / Attendance Issue)

Decision Date: December 2, 2025

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