Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड अधिकारी का उच्च वेतनमान बहाल किया, कहा-राज्य पुनर्गठन के बाद भी पटना हाईकोर्ट का पुराना फैसला बाध्यकारी

Shivam Y.

संजय कुमार उपाध्याय बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड अधिकारी का उच्च वेतनमान बहाल किया, कहा कि राज्य विभाजन के बाद भी पटना हाईकोर्ट के फैसले बाध्यकारी हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड अधिकारी का उच्च वेतनमान बहाल किया, कहा-राज्य पुनर्गठन के बाद भी पटना हाईकोर्ट का पुराना फैसला बाध्यकारी

सोमवार को खुली अदालत में सुनाए गए एक विस्तृत फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार के एक कर्मचारी से जुड़ा पुराना सेवा विवाद सुलझाया और वह लाभ बहाल किया, जिसे हाईकोर्ट ने अपील में वापस ले लिया था। देरी और वित्तीय प्रभाव को लेकर जोरदार बहस के बीच मामला एक केंद्रीय सवाल पर आकर टिक गया-क्या केवल प्रशासनिक आवंटन के आधार पर समान पदों पर कार्यरत कर्मचारियों को अलग-अलग वेतन दिया जा सकता है?

Read in English

पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता संजय कुमार उपाध्याय की नियुक्ति 1992 में उद्योग विस्तार अधिकारी के रूप में हुई थी। यह नियुक्ति 1980 के दशक की शुरुआत में आयोजित एक साझा प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर की गई थी, जिसमें विभिन्न विभागों के 16 समकक्ष क्लास-III पद शामिल थे। शुरू में सभी पद समान स्थिति में थे, लेकिन बाद की वेतन संशोधनों के चलते साफ असमानता पैदा हो गई-कुछ अधिकारियों को ऊँचा वेतनमान मिला, जबकि कुछ पीछे रह गए।

Read also:- जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने सैनिक स्कूल मंसबल कर्मचारियों की पेंशन मांग खारिज की, कहा- नियमों में प्रावधान बिना

इस विसंगति की पहले ही जांच हो चुकी थी। चर्चित नागेंद्र सहानी फैसले में पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि ऐसे अधिकारियों के साथ अलग व्यवहार का कोई ठोस आधार नहीं है और सभी को उच्च वेतनमान देने का निर्देश दिया था। कई कर्मचारियों को इसका लाभ मिला। लेकिन बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के बाद उपाध्याय की सेवाएँ झारखंड को आवंटित होने पर उन्हें यह लाभ नहीं दिया गया।

हालाँकि 2011 में झारखंड हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने उनके पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन बाद में डिवीजन बेंच ने देरी और संभावित वित्तीय प्रभाव का हवाला देते हुए उस राहत को पलट दिया। इसी के खिलाफ यह अपील दाखिल की गई।

Read also:- दिल्ली हाईकोर्ट ने कंपनी निदेशक की आपराधिक याचिका दोबारा खोलने से इनकार किया, एक धमकी के आरोप

अदालत की टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सेवा इतिहास और वैधानिक ढांचे की विस्तार से समीक्षा की और हाईकोर्ट के तर्कों से सहमत नहीं हुई। अदालत ने कहा कि बिहार पुनर्गठन अधिनियम की धारा 34(4) साफ तौर पर यह प्रावधान करती है कि राज्य विभाजन से पहले पटना हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले झारखंड हाईकोर्ट के फैसलों के समान प्रभाव रखते हैं।

पीठ ने टिप्पणी की, “डिवीजन बेंच नागेंद्र सहानी के फैसले को केवल प्रेरक मानकर नजरअंदाज नहीं कर सकती थी,” और कहा कि न्यायिक अनुशासन के तहत ऐसे बाध्यकारी फैसलों का पालन जरूरी है, जब तक उन्हें बड़े पीठ के पास संदर्भित न किया जाए।

देरी के मुद्दे पर अदालत ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया। उसने कहा कि वेतन असमानता एक सतत अन्याय है। हर महीने जब किसी कर्मचारी को अपने समान पदस्थ सहकर्मी से कम वेतन मिलता है, तो नया कारण-ए-दावा पैदा होता है। पीठ ने यह भी नोट किया कि कर्मचारी ने अदालत आने से पहले विभाग के समक्ष प्रतिवेदन दिए थे और अपने अधिकारों को लेकर निष्क्रिय नहीं था।

अदालत इस तर्क से भी प्रभावित नहीं हुई कि राहत देने से पूरे कैडर पर असर पड़ेगा। उसके अनुसार, वित्तीय असुविधा संवैधानिक समानता से ऊपर नहीं हो सकती।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने नरेश कुमार वर्मा द्वारा दायर आयकर अपीलें वापस लेने की अनुमति दी, उप आयकर आयुक्त के साथ

निर्णय

अपील स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के 2022 के फैसले को रद्द कर दिया और 2011 में एकल न्यायाधीश द्वारा दिया गया आदेश बहाल कर दिया। राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है कि उपाध्याय का वेतनमान उनकी नियुक्ति की तिथि से संशोधित किया जाए और तीन महीने के भीतर सभी परिणामी लाभ जारी किए जाएँ। मुकदमे की लागत भी अपीलकर्ता के पक्ष में देने का आदेश दिया गया।

Case Title: Sanjay Kumar Upadhyay v. State of Jharkhand & Others

Case No.: Civil Appeal No. 14046 of 2024

Case Type: Service Matter (Pay Scale Parity / Salary Anomaly)

Decision Date: 16 December 2025

Advertisment

Recommended Posts