दिसंबर की हल्की ठंड वाली सुबह कोर्ट नंबर 14 के भीतर, सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र कुमार के खिलाफ मामले में “स्पष्ट और निर्मम” तथ्यों से पीछे हटने से इनकार कर दिया। उनके वकीलों ने कड़ी कोशिश की कि हत्या की सज़ा को कम अपराध की श्रेणी में बदला जाए, लेकिन सुनवाई के दौरान बार-बार यह पूछा गया कि अचानक झगड़े का दावा किस सबूत पर आधारित है।
पृष्ठभूमि (Background)
कुमार को हिमाचल प्रदेश में एक व्यक्ति की घातक चाकूबाज़ी के लिए आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया था। हाई कोर्ट पहले ही इस फैसले को बरकरार रख चुका था, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।
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इस साल की शुरुआत में कोर्ट ने एक सीमित नोटिस जारी किया था-यह देखने के लिए कि क्या यह घटना किसी कम गंभीर अपराध के दायरे में आ सकती है, जैसे अचानक उकसावे या आत्मरक्षा जैसी परिस्थितियाँ जिन्हें कानून कुछ हद तक कम दोषपूर्ण मानता है।
उनके वकील का मुख्य तर्क था कि मृतक नशे का आदी था और घटना से ठीक पहले तेज़ आवाज़ें सुनी गई थीं। “यह दर्शाता है कि झगड़ा हुआ था… यह कोई सुनियोजित हमला नहीं था,” वकील ने कहा।
लेकिन सुनवाई आगे बढ़ने पर यह साफ़ महसूस होने लगा कि यह दलील अदालत को ज़्यादा प्रभावित नहीं कर रही है।
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अदालत के अवलोकन (Court’s Observations)
पोस्टमार्टम रिपोर्ट इस मामले में अदालत की सोच का सबसे अहम आधार बनी। रिपोर्ट में चार चाकू वार दर्ज थे, वह भी शरीर के महत्वपूर्ण हिस्सों पर, और यह भी कि मुख्य धमनियाँ-कॉमन कैरोटिड और सबक्लेवियन-कट चुकी थीं। पीठासीन न्यायाधीशों ने टिप्पणी की, “ऐसी चोटें सामान्य परिस्थितियों में मृत्यु का कारण बनती ही हैं।”
अदालत ने यह भी कहा कि कुमार ने कोई रक्षा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया, और न ही धारा 313 के तहत दिए अपने बयान में यह कहा कि उन पर हमला हुआ था या उन्हें अपनी रक्षा करनी पड़ी।
आत्मरक्षा की दलील पर जस्टिस मनोज मिश्रा ने स्पष्ट टिप्पणी की: “ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है कि मृतक के पास कोई हथियार था या उसने आरोपी पर हमला किया था। Exception 2 आपको कोई राहत नहीं देता।”
जब अचानक लड़ाई (sudden fight) की दलील दी गई, तो जस्टिस उज्जल भुइयाँ ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि कानून के अनुसार “लड़ाई” का मतलब दोनों ओर से हमला होना चाहिए। पीठ ने कहा, “लड़ाई द्विपक्षीय होती है। यहाँ ऐसे किसी आदान-प्रदान का कोई सबूत नहीं है।”
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अदालत ने भगवान मुँजाजी पावड़े मामले का हवाला भी दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि यदि आरोपी हथियारबंद हो और मृतक निहत्था, तो अचानक झगड़े वाला अपवाद आसानी से लागू नहीं होता।
जहाँ तक यह दावा था कि आरोपी को अचानक और गंभीर उकसावा मिला, अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा: “रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो दिखाए कि उकसावा इतना तीव्र था कि आरोपी ने आत्मसंयम खो दिया हो।”
वस्तुतः अदालत ने चार गहरे चाकू वारों को-जो एक निहत्थे व्यक्ति पर किए गए-क्रूर कृत्य बताया।
निर्णय (Decision)
जब सभी तर्क अदालत की टिप्पणियों से ध्वस्त होते चले गए, परिणाम लगभग तय सा हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी ऐसा तत्व नहीं है जिसकी वजह से हत्या की सज़ा को कम किया जा सके।
और इसी के साथ, जस्टिस मिश्रा ने अंतिम पंक्ति पढ़ी: “अपील खारिज की जाती है।”
सभी लंबित आवेदनों को भी निपटाया गया।
Case Title: Surender Kumar vs. State of Himachal Pradesh
Case Number: Criminal Appeal No. /2025 (Arising out of SLP (Crl) No. 5532/2025)
Case Type: Criminal Appeal – Conviction under Section 302 IPC
Decision Date: 09 December 2025










