सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में माहौल थोड़ा तनावपूर्ण था, जब अदालत ने लगभग नौ साल पुरानी जमानत रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया और इसे “न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग” कहा। कोर्ट नंबर 67 में सुनवाई करते हुए जस्टिस कृष्ण पहल ने एक सीधा और स्पष्ट आदेश सुनाया, जिसने मौजूद वकीलों को एक-दूसरे की ओर देखते हुए धीमे-धीमे चर्चा करने पर मजबूर कर दिया। यह मामला गाज़ियाबाद के पुराने हत्या मुकदमे से जुड़ा था, लेकिन याचिका ऐसे व्यक्ति ने दायर की थी जिसे अदालत ने उस मूल मामले का “पूरी तरह अजनबी” बताया।
Background (पृष्ठभूमि)
आवेदक निखिल कुमार ने अदालत से 2016 में आरोपी अमीर को दी गई जमानत को रद्द करने की मांग की थी। यह जमानत 2012 के हत्या मामले-(केस क्राइम नंबर 1310/2012, थाना साहिबाबाद, गाज़ियाबाद)-से संबंधित थी।
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मामले में मोड़ तब आया, जब आवेदक ने कहा कि अमीर ने जमानत पर छूटने के बाद 2017 में उसके पिता की हत्या कर दी। इस संबंध में एक अलग एफआईआर-केस क्राइम नंबर 3080/2017-दर्ज भी हुई थी, जो अभी विचाराधीन है।
निखिल के वकील का तर्क था कि आरोपी के खिलाफ 23 आपराधिक मामलों का इतिहास है और जमानत मिलने पर उसके दोबारा गंभीर अपराध करने की आशंका है।
वहीं, प्रतिवादी की ओर से खासा कड़ा रुख अपनाया गया। अमीर के वकील ने कहा कि निखिल का 2012 के मामले से “दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है।” उनका कहना था कि कानून सिर्फ उसी व्यक्ति को हस्तक्षेप की अनुमति देता है, जिसे उसी मामले में चोट या नुकसान हुआ हो-यानी ‘विक्टिम’।
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Court’s Observations (अदालत की टिप्पणियाँ)
सुनवाई के दौरान जस्टिस पहल की टिप्पणियाँ काफ़ी सख़्त थीं। एक मौके पर उन्होंने कहा, “विक्टिम राइट्स के विस्तारित दायरे को व्यक्तिगत बदले के हथियार में नहीं बदला जा सकता।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में 2009 के संशोधन और नए BNSS 2023 के अनुसार ‘विक्टिम’ वही है, जिसे उसी मामले में हानि पहुँची हो। अदालत ने कहा कि निखिल 2017 के मामले में पीड़ित हो सकता है, लेकिन 2012 के मामले में नहीं।
कोर्ट ने वकील के आचरण पर भी असंतोष जताया। जस्टिस पहल ने कहा कि “वकील ने अदालत के प्रति अपने दायित्व नहीं निभाए,” और उन्हें ऐसे निरर्थक आवेदन दायर करने से मना करना चाहिए था।
इसके अलावा अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, गाज़ियाबाद की रिपोर्ट के अनुसार आरोपी पहले से जेल में है, इसलिए जमानत रद्द करने का अनुरोध और भी निरर्थक हो जाता है।
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Decision (निर्णय)
सुनवाई समाप्त करते हुए बेंच ने जमानत रद्द करने की याचिका को “निर्मूल” बताते हुए खारिज कर दिया। अदालत ने आवेदक पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया और निर्देश दिया कि यह राशि दो सप्ताह के भीतर हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी में जमा की जाए। साथ ही, मामले को अनुपालन के लिए 9 दिसंबर 2025 को सूचीबद्ध किया गया। आदेश के साथ, अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि ऐसे प्रकार की याचिकाएँ भविष्य में स्वीकार नहीं की जाएँगी।
Case Title: Nikhil Kumar vs. State of U.P. & Another
Case No.: Criminal Misc. Bail Cancellation Application No. 355 of 2025
Case Type: Bail Cancellation Application
Decision Date: 24 November 2025









