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मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने लापता महिला को स्वेच्छा से वयस्क घोषित किया, खुली अदालत में व्यक्तिगत बातचीत के बाद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बंद की

Shivam Y.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने महिला के स्वेच्छा से वयस्क होने की पुष्टि करते हुए, उसके दस्तावेज़ वापस सौंपते हुए और आगे के आदेश देने से इनकार करते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बंद कर दी। - संदीप चौधरी बनाम पुलिस अधीक्षक एवं अन्य

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने लापता महिला को स्वेच्छा से वयस्क घोषित किया, खुली अदालत में व्यक्तिगत बातचीत के बाद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बंद की

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में एक संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण सुनवाई में, मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बंद कर दिया, यह पुष्टि करने के बाद कि विवाद के केंद्र में युवती अपनी "स्वयं की इच्छा" से घर से चली गई थी और वह अधिकारियों से आगे कोई हस्तक्षेप नहीं चाहती थी।

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Background

यह याचिका संदीप चौधरी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि संबंधित युवती जिसे कानूनी भाषा में “कॉर्पस” कहा जाता है को अवैध रूप से रोका गया है। पुलिस उसे वन स्टॉप सेंटर, जबलपुर से लेकर आई, और उसके साथ उप-निरीक्षक सुनील तांतव्य तथा कांस्टेबल वर्षा सैनी मौजूद थे। युवती के माता-पिता भी उपस्थित हुए और उसकी आयु व पहचान साबित करने के लिए हायर सेकेंडरी मार्कशीट और आधार कार्ड सहित कई दस्तावेज कोर्ट में जमा किए।

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उत्पादन के बाद, कोर्ट ने उसके साथ व्यक्तिगत बातचीत की जो कि हेबियस कॉर्पस मामलों में सामान्य प्रक्रिया है। युवती ने साफ कहा कि वह वयस्क है और अपनी इच्छा से अपने माता-पिता का घर छोड़ा है। उसने यह भी बताया कि उसके कुछ मूल दस्तावेज अब भी माता-पिता के पास हैं, जिसके बाद पीठ ने सुनिश्चित किया कि उसकी मार्कशीट और आधार कार्ड तुरंत उसे सौंप दिए जाएँ।

Court’s Observations

संक्षिप्त बातचीत के दौरान खंडपीठ इस निष्कर्ष पर पहुँची कि युवती स्वतंत्र रूप से निर्णय ले रही है और उस पर किसी प्रकार का दबाव या अवैध बंधन नहीं है। इसी बीच मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “उसने कहा है कि वह अपनी मर्जी से घर से गई थी,” जिससे संकेत मिला कि कोर्ट को किसी भी ज़बरदस्ती का कोई आधार नहीं मिला।

आम पाठकों के लिए बता दें कि हेबियस कॉर्पस याचिका तब दायर की जाती है जब किसी व्यक्ति के अवैध रूप से रोके जाने का आरोप होता है। लेकिन जब कोर्ट यह पाता है कि व्यक्ति वयस्क है और स्वतंत्र रूप से निर्णय ले रहा है, तो याचिका अपने आप निरर्थक हो जाती है।

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न्यायाधीशों ने यह भी माना कि चूँकि युवती अपने माता-पिता के घर वापस नहीं जाना चाहती, इसलिए कोर्ट उसे मजबूर नहीं कर सकता। सुनवाई के बाद एक उपस्थित व्यक्ति ने अनौपचारिक तौर पर कहा,

“पीठ ने पूरे मामले को बहुत सीधा-सादा ढंग से निपटाया कोई ड्रामा नहीं, बस स्पष्टता।”

Decision

किसी भी अवैध बंदीकरण के सबूत न मिलने और युवती को वयस्क मानते हुए, जिसने स्पष्ट रूप से माता-पिता के पास नहीं लौटने की इच्छा जताई, खंडपीठ ने कहा कि “और किसी आदेश की आवश्यकता नहीं है।” इसके साथ ही हेबियस कॉर्पस याचिका उसी समय समाप्त कर दी गई।

Case Title:- Sandeep Choudhary v. Superintendent of Police & Others

Case Number:- Writ Petition No. 43434 of 2025

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