संविधानिक वैधता को सुदृढ़ करते हुए, राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर बेंच ने एक अहम फैसला सुनाते हुए जयपुर के एक व्यक्ति के खिलाफ धारा 497 भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दर्ज व्यभिचार का मामला रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति आनंद शर्मा द्वारा 3 नवंबर 2025 को पारित आदेश में स्पष्ट कहा गया कि जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2019) में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के बाद धारा 497 के तहत कोई भी अभियोजन जारी नहीं रह सकता even अगर वह फैसला आने से पहले दर्ज किया गया हो।
पृष्ठभूमि
यह मामला एक पति द्वारा अपनी पत्नी के कथित संबंध को लेकर दायर शिकायत से शुरू हुआ। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी, जो सेंट सोल्जर स्कूल, जयपुर में शिक्षिका थी, अपने पूर्व छात्र के साथ “अनैतिक शारीरिक संबंध” में थी। इस शिकायत पर थाना वैशाली नगर (दक्षिण), जयपुर में एफआईआर संख्या 434/2013 दर्ज हुई।
जांच के बाद पुलिस ने नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें कहा गया कि आरोप केवल संदेह और अनुमान पर आधारित हैं और कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला। इसके बावजूद, पुनरीक्षण याचिका के बाद मामला पुनः विचार हेतु वापस भेजा गया और 2017 में ट्रायल कोर्ट ने धारा 497 आईपीसी के तहत संज्ञान ले लिया।
आरोपी ने इस आदेश को चुनौती देते हुए पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसे 2018 में खारिज कर दिया गया। अदालत ने माना कि जोसेफ शाइन का फैसला केवल आगे के मामलों पर लागू होगा। इसके बाद आरोपी ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अदालत के अवलोकन
न्यायमूर्ति आनंद शर्मा ने इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या सुप्रीम कोर्ट का जोसेफ शाइन में दिया गया निर्णय जिसने धारा 497 को असंवैधानिक घोषित किया पूर्व प्रभाव से भी लागू होता है।
न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि संविधान पीठ ने इस प्रावधान को अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन मानते हुए रद्द किया था और अपने आदेश में इसका प्रभाव केवल भविष्य के मामलों तक सीमित नहीं किया।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा,
“असंवैधानिक घोषित किए गए प्रावधान की घोषणा में कोई ऐसी शर्त नहीं है जो इसके प्रभाव को भविष्य तक सीमित करे। एक बार कोई कानून असंवैधानिक घोषित हो जाता है तो वह शुरू से ही शून्य (void ab initio) हो जाता है और उस पर आधारित कोई अभियोजन जारी नहीं रह सकता यहां तक कि लंबित मामलों में भी नहीं।”
राज्य की यह दलील कि जोसेफ शाइन फैसला केवल भविष्य के लिए लागू होगा, अदालत ने अस्वीकार की। न्यायमूर्ति शर्मा ने तेलंगाना, पंजाब-हरियाणा, बॉम्बे, पटना और दिल्ली हाईकोर्ट के कई निर्णयों का हवाला दिया जिनमें सभी ने यह माना कि धारा 497 के तहत चल रहे मुकदमे भी समाप्त माने जाएंगे।
अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों को जारी रखना, जो अब असंवैधानिक घोषित कानून पर आधारित हैं, “न्याय की प्रक्रिया का गंभीर दुरुपयोग” और “न्याय के साथ अन्याय” होगा।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“संविधान द्वारा प्रदत्त समानता, गरिमा और निजता के अधिकारों को पूर्ण रूप से बनाए रखने के लिए इस निर्णय का प्रतिगामी (retrospective) प्रभाव आवश्यक है, जिससे ऐसे सभी लंबित अभियोजन स्वतः समाप्त हो जाएंगे।”
अदालत का निर्णय
न्यायमूर्ति आनंद शर्मा ने ट्रायल और पुनरीक्षण न्यायालयों के आदेशों को “कानून की दृष्टि से अस्थिर” बताते हुए निरस्त कर दिया। अदालत ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए पूरे मामले को समाप्त कर दिया।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा:
“सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 497 आईपीसी की असंवैधानिकता की घोषणा प्रतिगामी प्रभाव के साथ लागू होती है, जिससे इस प्रावधान पर आधारित सभी लंबित अभियोजन स्वतः शून्य हो जाते हैं।”
इसी के साथ अदालत ने 20 फरवरी 2017 और 20 नवंबर 2018 के आदेशों को निरस्त कर दिया तथा एफआईआर संख्या 434/2013 के तहत दर्ज सभी कार्यवाहियों को भी रद्द कर दिया।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय पक्षकारों के बीच चल रहे किसी भी नागरिक या वैवाहिक विवाद को प्रभावित नहीं करेगा।
इसके साथ ही याचिका का निस्तारण किया गया और अदालत ने एक बार फिर यह दोहराया कि व्यभिचार अब भारत में अपराध नहीं, बल्कि एक नैतिक या वैवाहिक विषय भर रह गया है।










