शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट द्वारा बीच में ही खत्म कर दिए गए एक चेक बाउंस मामले को दोबारा ज़िंदा कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि आपराधिक शिकायतों को शुरुआती स्तर पर ही खत्म करने में अदालतों को बेहद सतर्क रहना चाहिए। भरी हुई अदालत में बैठकर सुनवाई देखने वालों के लिए संकेत स्पष्ट था - पीठ इस बात से खुश नहीं थी कि एक सामान्य कारोबारी विवाद में हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर ब्रेक लगा दिया।
यह मामला एक ऐसे व्यापारिक लेन-देन से जुड़ा था जो बिगड़ गया और आखिरकार शीर्ष अदालत तक पहुंचा। सवाल अहम था: ट्रायल शुरू होने से पहले ही क्या हाईकोर्ट आपराधिक कार्यवाही को खत्म कर सकता है?
पृष्ठभूमि
इस विवाद की जड़ें साल 2013 में हैं, जब एम/एस श्री ओम सेल्स ने अभय कुमार उर्फ अभय पटेल को सामान सप्लाई किया। शिकायतकर्ता के मुताबिक, उन सामानों के भुगतान के लिए ₹20 लाख का एक चेक दिया गया था। जब यह चेक बैंक में लगाया गया, तो वह दो बार बाउंस हो गया - वजह थी खाते में पर्याप्त राशि न होना।
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कानूनी मांग नोटिस भेजने और आरोपी की ओर से भुगतान से इनकार के बाद, फर्म ने चेक बाउंस कानून के तहत मजिस्ट्रेट की अदालत का रुख किया। ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान लिया और आरोपी को समन जारी किया। यहीं से मामला मुड़ा। आरोपी ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए पूरी शिकायत ही रद्द कर दी गई। हाईकोर्ट का कहना था कि चेक किसी वैध देनदारी के भुगतान के लिए जारी नहीं किया गया था।
अदालत की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट इस सोच से सहमत नहीं हुआ। पीठ ने कहा कि इस शुरुआती चरण में अदालतों को केवल यह देखना होता है कि शिकायत में प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं, न कि विवादित तथ्यों का फैसला करना।
पीठ ने टिप्पणी की, “शिकायत में अपराध के सभी आवश्यक तत्व स्पष्ट रूप से मौजूद हैं,” और यह भी जोड़ा कि एक बार चेक और उसके बाउंस होने की बात सामने आ जाए, तो कानून यह मानकर चलता है कि चेक किसी देनदारी को चुकाने के लिए ही दिया गया था।
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जजों ने याद दिलाया कि इस कानूनी अनुमान को चुनौती दी जा सकती है - लेकिन ट्रायल के दौरान। यह जांच करना कि चेक वाकई किसी कर्ज या देनदारी से जुड़ा था या नहीं, “अनावश्यक गहराई वाली जांच” के समान है, जिसे हाईकोर्ट को इस स्तर पर नहीं करना चाहिए था।
कड़ी भाषा में पीठ ने कहा कि मामलों को समय से पहले खत्म कर देना दोनों पक्षों को सबूत पेश करने का उचित मौका छीन सकता है। अदालत में सुनाए गए एक वाक्य ने खास ध्यान खींचा, जिसमें कहा गया कि “प्री-ट्रायल चरण में आपराधिक प्रक्रिया को खत्म करना गंभीर और अपूरणीय परिणाम ला सकता है।”
फैसला
अपील स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के 2019 के आदेश को रद्द कर दिया और चेक बाउंस शिकायत को दोबारा संबंधित मजिस्ट्रेट की अदालत में बहाल कर दिया। अब मामला कानून के अनुसार आगे बढ़ेगा और आरोपी को ट्रायल के दौरान अपना बचाव रखने की पूरी छूट होगी।
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हालांकि, पीठ ने यह भी साफ किया कि उसने इस बात पर कोई राय नहीं दी है कि चेक वास्तव में किसी देनदारी के भुगतान के लिए जारी किया गया था या नहीं। अदालत ने कहा कि यह सवाल ट्रायल कोर्ट दोनों पक्षों को सुनने और सबूत देखने के बाद स्वतंत्र रूप से तय करेगा।
Case Title: M/s Sri Om Sales v. Abhay Kumar @ Abhay Patel & Another
Case Type: Criminal Appeal (Cheque Bounce – Negotiable Instruments Act)
Case No.: Criminal Appeal No. 5588 of 2025 (arising out of SLP (Crl.) No. 8703 of 2019)
Date of Judgment 19 December 2025









