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सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय नियुक्ति नियमों को स्पष्ट किया, कोचीन यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर विवाद में वेट-लिस्ट दावे पर सामुदायिक रोटेशन को प्राथमिकता

Vivek G.

राधिका टी. बनाम कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और अन्य, सुप्रीम कोर्ट ने कोचीन यूनिवर्सिटी के फैसले को सही ठहराया, कहा कि इस्तीफे के बाद वेट-लिस्ट उम्मीदवार को स्वतः नियुक्ति का अधिकार नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय नियुक्ति नियमों को स्पष्ट किया, कोचीन यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर विवाद में वेट-लिस्ट दावे पर सामुदायिक रोटेशन को प्राथमिकता

जब सुप्रीम कोर्ट ने कोचीन यूनिवर्सिटी द्वारा वेट लिस्ट से नियुक्ति से इनकार को चुनौती देने वाली अनुसूचित जाति की उम्मीदवार की अपील पर सुनवाई शुरू की, तो अदालत कक्ष में अच्छी-खासी मौजूदगी थी। मामला भले ही केमिस्ट्री के एक एसोसिएट प्रोफेसर पद से जुड़ा था, लेकिन इसने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया - क्या रैंक लिस्ट में अगला नाम होना अपने-आप नियुक्ति का अधिकार देता है, अगर चुना गया उम्मीदवार इस्तीफा दे दे? गुरुवार को अदालत ने इस पर साफ रुख अपनाते हुए विश्वविद्यालय के पक्ष में फैसला सुनाया।

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पृष्ठभूमि

विवाद की शुरुआत 2019 में कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा जारी उस भर्ती अधिसूचना से हुई, जिसमें इनऑर्गेनिक केमिस्ट्री में एसोसिएट प्रोफेसर के एक पद को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया था। चयन प्रक्रिया के बाद डॉ. अनिता सी. कुमार को पहला स्थान मिला और उनकी नियुक्ति हुई, जबकि अपीलकर्ता राधिका टी. रैंक लिस्ट में दूसरे नंबर पर रहीं।

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मार्च 2022 में स्थिति तब बदली जब डॉ. अनिता ने दूसरी यूनिवर्सिटी में नौकरी मिलने के बाद इस्तीफा दे दिया। इसके बाद राधिका ने विश्वविद्यालय से नियुक्ति की मांग की और कहा कि यूनिवर्सिटी कानून के तहत रैंक लिस्ट दो साल तक वैध थी। लेकिन विश्वविद्यालय ने उनका दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि नई रिक्ति सामुदायिक रोटेशन के अनुसार भरी जानी होगी, जो उस समय लैटिन कैथोलिक/एंग्लो इंडियन श्रेणी के पक्ष में थी।

यह मामला केरल हाई कोर्ट में कई दौर की सुनवाई से गुजरा, लेकिन हर बार राधिका को राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

न्यायालय की टिप्पणियां

जस्टिस एन. वी. अंजारिया की अगुवाई वाली पीठ ने कोचीन यूनिवर्सिटी अधिनियम के दो अहम प्रावधानों पर गौर किया। एक प्रावधान रैंक लिस्ट को दो साल तक जीवित रखता है, जबकि दूसरा सभी विभागों में सामुदायिक रोटेशन को अनिवार्य करता है। सवाल यह था कि इन दोनों का तालमेल कैसे बैठाया जाए।

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कोर्ट ने कहा कि रैंक लिस्ट की वैधता का मतलब यह नहीं है कि आरक्षण के नियमों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए। पीठ ने टिप्पणी की, “रैंक लिस्ट चयन की अवधि तय करती है, लेकिन वास्तविक नियुक्ति का तरीका सामुदायिक रोटेशन से तय होता है।”

अदालत ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि रोटेशन को तब तक रोका जाए जब तक रैंक लिस्ट की अवधि खत्म न हो जाए। ऐसा करने से, न्यायालय के अनुसार, आरक्षण का नियम दो साल तक बेअसर हो जाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस्तीफा देने वाली प्रोफेसर के पास पद पर कोई ‘लियन’ नहीं बचा था और इस आधार पर नियुक्ति से इनकार करना कानूनी तौर पर गलत था।

सरल शब्दों में कहें तो, जब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पद पर नियुक्ति हो चुकी थी और उस पर काम भी किया गया था, तो आरक्षण की शर्त पूरी मानी जाएगी। इसके बाद पैदा हुई रिक्ति को रोटेशन के अगले क्रम के अनुसार ही भरना होगा।

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निर्णय

अपीलों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के फैसलों को बरकरार रखा और कहा कि कोचीन यूनिवर्सिटी ने वेट लिस्ट से नियुक्ति के बजाय सामुदायिक रोटेशन लागू कर सही कदम उठाया। पीठ ने दोहराया कि कानून के दोनों प्रावधानों को साथ-साथ लागू किया जाना चाहिए, न कि एक को दूसरे की कीमत पर। अदालत ने बिना किसी लागत के मामले का निपटारा कर दिया।

Case Title: Radhika T. vs Cochin University of Science and Technology & Others

Case No.: Civil Appeal Nos. of 2025 (arising out of SLP (C) Nos. 10079–10080 of 2025)

Case Type: Civil Appeal (Service / University Appointment Matter)

Decision Date: 18 December 2025

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