गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के एक 2010 के हत्या मामले में सात लोगों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया। अदालत ने अभियोजन के कमजोर साक्ष्यों और अनुत्तरित सवालों पर कड़ी टिप्पणी की। खचाखच भरे कोर्टरूम में सुनवाई के दौरान पीठ ने साफ कहा कि महज संदेह, चाहे वह कितना भी मजबूत क्यों न हो, ठोस सबूतों की जगह नहीं ले सकता।
पृष्ठभूमि
यह मामला जुलाई 2010 में बलौदा बाजार के पास एक गांव में गोरईलाल की मौत से जुड़ा है। अभियोजन के अनुसार, गोरईलाल पर तालाब के पास कुछ ग्रामीणों ने लाठी और पत्थरों से हमला किया, जिससे उसकी मौत हो गई। उसकी मां परसबाई ने उसी दिन एफआईआर दर्ज कराई और सात आरोपियों के नाम लिए।
Read also:- जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पदोन्नति और पूर्वलाभ विवाद में 1979 बैच के पुलिस अधिकारियों की वरिष्ठता बहाल की, दशकों पुरानी कानूनी लड़ाई का अंत
ट्रायल कोर्ट ने सभी आरोपियों को हत्या और दंगा करने का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। वर्ष 2021 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने उनकी अपीलें खारिज कर दोषसिद्धि को बरकरार रखा। इसके बाद आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दलील दी कि पूरा मामला लगभग एक ही गवाह पर टिका है, जिसकी गवाही खुद आपस में मेल नहीं खाती।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति विपुल एम. पंचोली की अगुवाई वाली पीठ ने साक्ष्यों की गहराई से जांच की और वह संतुष्ट नजर नहीं आई। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन की मुख्य गवाह, मृतक की मां, ने अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग बयान दिए। एक जगह उन्होंने कहा कि उन्होंने हमला होते देखा, जबकि बाद में स्वीकार किया कि जब वह मौके पर पहुंचीं, तब उनका बेटा पहले से घायल था और आरोपी केवल वहां खड़े थे।
Read also:- कर्नाटक हाई कोर्ट ने ₹2.33 करोड़ के होटल विवाद में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर लगी रोक हटाई, न्यायिक एकरूपता और CPC धारा 10 के दुरुपयोग पर जताई चिंता
पीठ ने टिप्पणी की, “दोषसिद्धि लगभग पूरी तरह पीडब्ल्यू-4 पर आधारित है, जिसकी गवाही में महत्वपूर्ण विरोधाभास हैं।” अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि जिस पोती ने सबसे पहले हमले की जानकारी दी थी, उसे अभियोजन ने गवाह के रूप में पेश ही नहीं किया। इस चूक को कोर्ट ने अभियोजन की कहानी में बड़ी कमी माना।
स्वतंत्र गवाह, जिनमें गांव का सरपंच भी शामिल था, hostile हो गए। न्यायाधीशों ने हथियारों की बरामदगी पर भी संदेह जताया और कहा कि जब्ती मेमो ठीक से साबित नहीं किए जा सके। मेडिकल साक्ष्य पर आते हुए कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर को मृतक के शरीर पर तीन चीरे जैसे घाव मिले, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो सका कि ये चोटें दिखाए गए एक पत्थर या लाठियों से कैसे लगीं। पीठ ने कहा, “यह मानना कठिन है कि ऐसी चोटों को निश्चित रूप से कथित हथियारों से जोड़ा जा सके।”
Read also:- केरल हाईकोर्ट ने बस में उत्पीड़न के आरोपी पालक्काड निवासी को जमानत देने से इनकार किया, कहा- नए BNSS कानून में गंभीर आरोप असाधारण राहत में बाधा
फैसला
इन तमाम पहलुओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन आरोपियों के खिलाफ संदेह से परे मामला साबित करने में असफल रहा। नतीजतन, अदालत ने अपीलें स्वीकार कर लीं और ट्रायल कोर्ट व हाई कोर्ट दोनों के फैसलों को रद्द कर दिया। सभी आरोपी, जो पहले से जमानत पर थे, उनके जमानती बांड भी समाप्त कर दिए गए, और इस तरह यह लंबा आपराधिक मामला यहीं खत्म हो गया।
Case Title: Punimati & Anr. vs The State of Chhattisgarh & Ors.; Dayalu & Ors. vs State of Chhattisgarh
Case No.: Criminal Appeal Nos. 3647–3648 of 2025
Case Type: Criminal Appeal (Murder conviction under IPC Sections 302, 148, 149)
Decision Date: 18 December 2025










