सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में कथित भूमि आवंटन अनियमितताओं से जुड़े एक लंबे समय से चले आ रहे आपराधिक मामले पर विराम लगा दिया। अदालत ने पूर्व मंत्री और भाजपा नेता आर. अशोक के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया। सुनवाई के दौरान यह साफ दिखा कि पीठ सिर्फ प्रक्रियागत खामियों से ही नहीं, बल्कि इस बात से भी असहज थी कि पहले कई बार क्लीन चिट मिलने के बावजूद मामला बार-बार सामने लाया गया।
पृष्ठभूमि
यह मामला FIR संख्या 5/2018 से जुड़ा है, जिसे एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने दर्ज किया था। आरोप था कि 1998 से 2007 के बीच, जब आर. अशोक अवैध कब्जों के नियमितीकरण की समिति के अध्यक्ष थे, उस दौरान सरकारी भूमि के अवैध आवंटन किए गए।
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खास बात यह रही कि इसी तरह की शिकायतों की पहले ही दो बार कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा जांच की जा चुकी थी-पहली बार 2012 में और फिर संशोधित जांच के बाद 2014 में। दोनों ही मौकों पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि अशोक के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए कोई ठोस सामग्री नहीं है। इसके बावजूद, जनवरी 2018 में एक नई शिकायत के आधार पर प्रारंभिक जांच हुई और FIR दर्ज कर दी गई, जिसके बाद अशोक ने पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति विपुल एम. पंचोली की पीठ ने रिकॉर्ड की बारीकी से जांच की और अपनी टिप्पणी में कोई नरमी नहीं बरती। अदालत ने विशेष रूप से इस बात पर ध्यान दिया कि सार्वजनिक सेवक के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले आवश्यक सरकारी स्वीकृति पूरी तरह अनुपस्थित थी।
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पीठ ने कहा, “रिकॉर्ड में कहीं भी यह नहीं दिखता कि कोई स्वीकृति प्राप्त की गई हो,” और आगे कहा कि ऐसी स्वीकृति के बिना जांच शुरू करना ही कानूनन प्रतिबंधित था।
अदालत ने शिकायतों के समय और उनके पैटर्न पर भी सवाल उठाए। उसने नोट किया कि तीनों शिकायतें कथित घटनाओं के कई वर्षों बाद और प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल से जुड़े व्यक्तियों द्वारा की गई थीं। पीठ ने टिप्पणी की, “इन सभी तथ्यों को एक साथ देखने पर दुर्भावना और अपीलकर्ता को निशाना बनाने के सुनियोजित प्रयास की ओर संकेत मिलता है।”
अदालत ने यह भी दोहराया कि आपराधिक कानून का इस्तेमाल किसी को परेशान करने के हथियार के रूप में नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब वैधानिक प्राधिकरण पहले ही आरोपों को निराधार बता चुके हों।
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निर्णय
अपील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने FIR और उससे उत्पन्न सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि यह मामला State of Haryana v. Bhajan Lal में तय सिद्धांतों के अंतर्गत आता है। पीठ ने स्पष्ट किया कि स्वीकृति का अभाव, बार-बार की गई जांचों में आरोपी को क्लीन चिट मिलना और स्पष्ट राजनीतिक उद्देश्य-ये सभी कारण इस मामले को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बनाते हैं।
अदालत ने सह-आरोपी लाभार्थी को भी इस निर्णय का लाभ दिया, यह कहते हुए कि उसका भूमि आवंटन पहले ही प्राधिकरण द्वारा सही ठहराया जा चुका है और उसे चुनौती नहीं दी गई। इस प्रकार, दोनों अपीलें स्वीकार की गईं और मामला यहीं समाप्त कर दिया गया।
Case Title: R. Ashok vs State of Karnataka & Others
Case No.: Criminal Appeal arising out of SLP (Crl.) No. 9070 of 2018
Case Type: Criminal Appeal (Quashing of FIR under Prevention of Corruption allegations)
Decision Date: 16 December 2025










