चंडीगढ़ के एक व्यस्त चौराहे पर हुई एक सामान्य ट्रैफिक जांच धीरे-धीरे गंभीर कानूनी विवाद में बदल गई। 9 दिसंबर को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने साफ कर दिया कि वह इस मामले में प्रक्रिया को बीच में रोकने के पक्ष में नहीं है। न्यायमूर्ति सूर्य प्रताप सिंह ने पार्काश सिंह मारवाह द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। आरोप है कि उन्होंने खुद को न्यायिक मजिस्ट्रेट बताकर पुलिसकर्मियों के सरकारी काम में बाधा डाली।
पृष्ठभूमि
यह एफआईआर 18 मई 2024 की घटना से जुड़ी है। पुलिस के अनुसार, एक एएसआई और एक कांस्टेबल सेक्टर 45/46/49/50 के चौराहे पर वाहनों की जांच कर रहे थे, तभी उनकी नजर एक स्कॉर्पियो गाड़ी पर पड़ी, जिसकी नंबर प्लेट आंशिक रूप से ढकी हुई थी। जब गाड़ी को रुकने का इशारा किया गया, तो चालक कथित तौर पर ज़ेब्रा क्रॉसिंग पार कर गया और ड्राइविंग लाइसेंस दिखाने से इनकार कर दिया।
पुलिस का कहना है कि चालक ने खुद को न्यायिक मजिस्ट्रेट बताया, दोबारा पूछने पर भी उसने सहमति में सिर हिलाया और गाड़ी के शीशे पर “जज” का स्टिकर लगा हुआ था। स्थिति तब और बिगड़ गई जब, एफआईआर के मुताबिक, उसने कांस्टेबल से बदसलूकी की और तेज़ी से गाड़ी भगा ले गया। बाद में जांच में सामने आया कि वह वाहन किसी मजिस्ट्रेट के नाम पर पंजीकृत नहीं था।
मारवाह ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए दावा किया कि यह मामला मनगढ़ंत है। उन्होंने कहा कि पहले उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और चंडीगढ़ प्रशासन के खिलाफ शिकायतें की थीं, उसी का बदला उनसे लिया गया। उनका यह भी आरोप था कि घटना के समय पुलिसकर्मी वर्दी में नहीं थे और दो दिन बाद उन्हें अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया। इन आधारों पर उन्होंने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत हाईकोर्ट की असाधारण शक्तियों का हवाला देते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की।
अदालत की टिप्पणियां
अदालत याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमत नहीं हुई। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता का उस स्थान पर गाड़ी चलाते हुए मौजूद होना एक स्वीकार किया गया तथ्य है। पुलिस का संस्करण सही है या याचिकाकर्ता का, यह केवल ट्रायल के दौरान साक्ष्यों के आधार पर ही तय किया जा सकता है।
पीठ ने टिप्पणी की, “इस स्तर पर अदालत दोनों पक्षों के बयानों की विश्वसनीयता का आकलन नहीं कर सकती,” और जोड़ा कि ऐसा करना न्याय में चूक का कारण बन सकता है। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों का भी उल्लेख किया, जिनमें कहा गया है कि जब तक एफआईआर में कोई अपराध सामने आता है, तब तक हाईकोर्ट को जांच में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
सरकारी कर्मचारी के काम में बाधा डालने (धारा 186 आईपीसी) के आरोप पर कानूनी रोक के तर्क को भी अदालत ने इस स्तर पर स्वीकार नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में प्रतिरूपण और धोखाधड़ी जैसे स्वतंत्र आरोप भी हैं, जिन्हें अलग-अलग देखा जा सकता है और जिन पर कार्रवाई चल सकती है।
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मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर मांगी गई छूट को भी खारिज कर दिया गया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने घटना के समय किसी मानसिक बीमारी का दावा नहीं किया है। “ऐसा कोई दावा, यदि उपलब्ध हो, तो ट्रायल कोर्ट के समक्ष उठाया जा सकता है,” न्यायाधीश ने कहा।
निर्णय
अंततः हाईकोर्ट ने माना कि एफआईआर रद्द करने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं बनती। अदालत ने कहा कि जांच और मुकदमे को अपने सामान्य रास्ते पर चलने दिया जाना चाहिए। इसी के साथ याचिका और सभी लंबित आवेदन खारिज कर दिए गए।
Case Title: Parkash Singh Marwah vs. State of UT Chandigarh & Others
Case No.: CRM-M No. 51611 of 2024 (O&M)
Case Type: Criminal Miscellaneous Petition (Quashing of FIR)
Decision Date: 09 December 2025









