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सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की वैज्ञानिक परिभाषा तय की, विशेषज्ञ मंजूरी तक दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में नई खनन लीज पर रोक

Shivam Y.

अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं का संरक्षण और परिभाषा, सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की वैज्ञानिक परिभाषा तय की और चार राज्यों में नई खनन लीज पर विशेषज्ञ योजना तक रोक लगा दी।

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की वैज्ञानिक परिभाषा तय की, विशेषज्ञ मंजूरी तक दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में नई खनन लीज पर रोक

गुरुवार की सुबह भरी अदालत में सुप्रीम कोर्ट ने आखिर उस सवाल पर साफ रेखा खींच दी, जो सालों से पर्यावरण से जुड़े मामलों में उलझन पैदा कर रहा था - अरावली पहाड़ियां आखिर मानी किसे जाएं। विस्तृत फैसले में अदालत ने केंद्र सरकार की वैज्ञानिक परिभाषा को स्वीकार किया और चार राज्यों में नई खनन लीज पर पूरी तरह रोक लगा दी, जब तक विशेषज्ञों द्वारा तैयार योजना सामने नहीं आ जाती। यह फैसला, जिसका पर्यावरण से जुड़े लोगों को लंबे समय से इंतजार था, देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला को लेकर अदालत के सख्त रुख का संकेत देता है।

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पृष्ठभूमि

यह मामला दशकों पुराने टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद पर्यावरण प्रकरण से जुड़ा है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर जंगलों और नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करता रहा है। दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैली अरावली पहाड़ियों में खनन लंबे समय से विवाद का विषय रहा है, क्योंकि इसकी कोई एक समान परिभाषा तय नहीं थी। अलग-अलग राज्यों और विभागों ने “अरावली भूमि” की अलग-अलग व्याख्या की, जिससे कानूनी खामियों के सहारे खनन को बढ़ावा मिलता रहा। इसी को देखते हुए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने एक विशेषज्ञ समिति बनाई थी, ताकि वैज्ञानिक और एकरूप परिभाषा तय की जा सके।

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अदालत की टिप्पणियां

29 पन्नों के फैसले को लिखते हुए मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि अदालत समिति की सिफारिशों को पूरी तरह स्वीकार कर रही है। न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और एन.वी. अंजारिया की पीठ ने कहा कि संरक्षण और भूमि उपयोग से जुड़े फैसलों के लिए स्पष्ट परिभाषा बेहद जरूरी है।

अदालत ने दर्ज किया कि अधिसूचित अरावली जिलों में आसपास की भूमि से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचा कोई भी भू-आकृतिक स्वरूप “अरावली पहाड़ी” माना जाएगा। वहीं, दो या उससे अधिक ऐसी पहाड़ियां यदि 500 मीटर की दूरी के भीतर हों, तो उन्हें “अरावली रेंज” माना जाएगा। न्यायाधीशों ने टिप्पणी की कि यह तरीका वैज्ञानिक है, व्यावहारिक है और इसमें मनमानी की गुंजाइश कम है।

अरावली को थार मरुस्थल के पूर्व की ओर फैलाव को रोकने वाली “हरी दीवार” बताते हुए पीठ ने कहा कि बेकाबू खनन का जैव विविधता, भूजल और जलवायु संतुलन पर गंभीर असर पड़ता है। अदालत ने कहा, “हम कोर या अछूते क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध से जुड़ी सिफारिशों को भी स्वीकार करते हैं,” और साफ कर दिया कि पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जाएगी।

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जब तक पर्यावरण मंत्रालय भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के साथ मिलकर सतत खनन प्रबंधन योजना (MPSM) को अंतिम रूप नहीं देता, तब तक अरावली पहाड़ियों और रेंज में कोई नई खनन लीज नहीं दी जाएगी। पहले से चल रही खदानें जारी रह सकती हैं, लेकिन केवल समिति की सिफारिशों का सख्ती से पालन करते हुए। अदालत ने अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया कि वे ऐसे क्षेत्रों की स्पष्ट पहचान करें, जहां खनन पूरी तरह प्रतिबंधित होगा या केवल दुर्लभ और वैज्ञानिक रूप से उचित परिस्थितियों में ही अनुमति दी जाएगी। इसके साथ ही अदालत ने अरावली के भविष्य को लेकर लंबे समय से चली आ रही अनिश्चितता पर विराम लगा दिया।

Case Title: In Re: Protection and Definition of Aravali Hills and Ranges

Case No.: Suo Motu Proceedings in T.N. Godavarman Thirumulpad v. Union of India (Environmental Matter)

Case Type: Suo Motu Environmental / Forest Conservation Case

Decision Date: November 21, 2025

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