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सुप्रीम कोर्ट ने करुणामूलक नियुक्तियों पर हाई कोर्ट का आदेश रद्द किया, कहा 'अनंत करुणा की अनुमति नहीं'

Vivek G.

नगर पंचायत के निदेशक एवं अन्य बनाम एम. जयबाल एवं अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्त लोगों को उच्च पद देने के मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को पलट दिया और कहा कि विलंबित दावों और “अंतहीन अनुकंपा” की अनुमति नहीं दी जा सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने करुणामूलक नियुक्तियों पर हाई कोर्ट का आदेश रद्द किया, कहा 'अनंत करुणा की अनुमति नहीं'

गुरुवार को खचाखच भरे अदालत कक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने करुणामूलक नियुक्तियों की सीमाओं पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने मद्रास हाई कोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया, जिसमें दो सफाई कर्मचारियों-जिन्हें करुणामूलक आधार पर नियुक्त किया गया था-को जूनियर असिस्टेंट के पद पर पदोन्नति देने की अनुमति दी गई थी। न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की अगुवाई वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि मानवीय आधार पर दी गई नियुक्ति बाद में “सीढ़ी” बनकर उच्च पद मांगने का साधन नहीं बन सकती।

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पृष्ठभूमि

यह मामला कई साल पहले शुरू हुआ, जब एम. जयरबल और एस. वीरमणि, दोनों सरकारी सफाई कर्मचारियों के दिवंगत पुत्र, करुणामूलक आधार पर सफाई कर्मचारी के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने स्वयं इसी पद के लिए आवेदन किया था और नियुक्ति मिलते ही कार्यभार ग्रहण कर लिया।

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हालांकि, क्रमशः तीन वर्ष और लगभग नौ वर्ष बाद, दोनों ने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और जूनियर असिस्टेंट के पद पर पुनर्नियुक्ति की मांग रखी। दोनों का कहना था कि वे योग्य हैं और उन्हें पता चला है कि कुछ अन्य लोगों को ऐसी परिस्थितियों में उच्च पद दिए गए थे।

एकल न्यायाधीश ने यह याचिका स्वीकार की, और डिवीजन बेंच ने भी उसे कायम रखा। इसके बाद राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

अदालत के अवलोकन

सुनवाई के दौरान पीठ ने लंबी देरी पर कई बार सवाल उठाए, यह कहते हुए कि करुणामूलक नियुक्ति का उद्देश्य तत्काल आर्थिक संकट को दूर करना होता है। न्यायमूर्ति बिंदल ने एक बिंदु पर टिप्पणी की, “जिस क्षण उन्होंने वही पद स्वीकार किया, जिसके लिए उन्होंने आवेदन किया था, उस समय उनका आर्थिक संकट समाप्त हो चुका था।”

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अदालत ने उमेश कुमार नागपाल सहित अपने पुराने निर्णयों का पुनः उल्लेख करते हुए कहा कि करुणामूलक नियुक्ति अधिकार नहीं, बल्कि एक रियायत है। पीठ ने कहा, “करुणामूलक नियुक्ति को बार-बार विकल्प नहीं बनाया जा सकता। अन्यथा यह अनंत करुणा का मामला बन जाएगा।”

प्रतिवादियों द्वारा यह दलील दी गई कि अन्य लोगों को भी इसी प्रकार उच्च पद दिए गए हैं, जिसे अदालत ने सीधा नकार दिया। अदालत ने अपने ही पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा, “नकारात्मक भेदभाव का दावा नहीं किया जा सकता। अदालत किसी प्राधिकरण को यह नहीं कह सकती कि वह की गई गलती को दोहराए।”

अदालत ने निर्णय के पृष्ठ 5 पर दी गई तालिका-जिसमें नियुक्ति की तिथियाँ और याचिकाएँ दायर करने की तिथियाँ दर्ज हैं-की ओर भी संकेत किया। पीठ के अनुसार यह तालिका स्पष्ट रूप से दिखाती है कि इतनी देरी के बाद किया गया दावा करुणामूलक नियुक्ति की तात्कालिकता की मूल भावना को कमजोर करता है।

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निर्णय

एक संक्षिप्त और स्पष्ट आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और जयरबल व वीरमणि की दोनों याचिकाएँ खारिज कर दीं। अदालत ने कहा कि एक बार करुणामूलक नियुक्ति स्वीकार कर ली जाए, तो वह अध्याय समाप्त हो जाता है; बाद में उन्नत पद की मांग केवल इस आधार पर नहीं की जा सकती कि प्रत्याशी अधिक योग्य है या किसी और को बेहतर पद मिला है।

निर्णय के अंत में अदालत ने यह भी दृढ़ता से कहा कि नियमों की अनभिज्ञता पुराने दावों को पुनर्जीवित नहीं कर सकती और करुणामूलक नियुक्तियाँ अपवाद हैं-न कि करियर उन्नति का कोई वैकल्पिक मार्ग।

Case Title: The Director of Town Panchayat & Others vs. M. Jayabal & Another

Case No.: Civil Appeal Nos. 12640–12643 of 2025 (with connected Civil Appeal Nos. 12644–12647 of 2025)

Case Type: Civil Appeals arising out of SLP (Civil) Nos. 8776–8779 of 2023 and 8780–8783 of 2023

Decision Date: 12 December 2025

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