मंगलवार सुबह दिल्ली उच्च न्यायालय के कोर्टरूम नंबर 123 में बहस की शुरुआत एयर क्वालिटी चार्ट से हुई और धीरे-धीरे सेवा नियमों तक पहुंच गई। एक सरकारी दूरसंचार संस्था में कार्यरत वैज्ञानिक द्वारा दायर याचिका ने उस समस्या को सामने रखा, जिससे हर सर्दी में दिल्ली के कई लोग जूझते हैं-धूल, प्रदूषण और दफ्तर में सांस लेने की दिक्कत। लेकिन सुनवाई के अंत तक अदालत ने पर्यावरणीय नियमों और व्यक्तिगत सेवा अधिकारों के बीच साफ रेखा खींचते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता शुभम वर्मा, जो सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (C-DOT) में साइंटिस्ट-ई के पद पर कार्यरत हैं, ने अदालत का रुख करते हुए आरोप लगाया कि ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के तहत पाबंदी होने के बावजूद उनके कार्यालय परिसर में निर्माण और तोड़फोड़ का काम जारी है। उनका कहना था कि निर्माण स्थल से उड़ने वाली धूल और दिल्ली के पहले से ही खतरनाक एयर क्वालिटी इंडेक्स ने मिलकर उन्हें सांस से जुड़ी समस्याओं में डाल दिया।
वर्मा ने कई निर्देशों की मांग की-निर्माण कार्य रुकवाने, निरीक्षण कराने, वर्क फ्रॉम होम की अनुमति देने और प्रदूषण के कारण जिन दिनों वह कार्यालय नहीं जा सके, उन्हें “ड्यूटी पर” माने जाने तक की। उन्होंने यह भी बताया कि नवंबर में जारी GRAP दिशानिर्देशों में 50 प्रतिशत कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की बात कही गई थी। उनका दावा था कि उन्होंने संबंधित अधिकारियों को कई बार शिकायतें भेजीं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
पिछली सुनवाई के दौरान नियोक्ता ने तत्काल समाधान के तौर पर उन्हें बेंगलुरु ट्रांसफर करने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि, व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और अदालत से ही राहत की मांग पर अड़े रहे।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रदूषण नियंत्रण उपाय अहम जरूर हैं, लेकिन उनकी सीमा भी तय है। पीठ ने कहा कि GRAP और उससे जुड़े दिशानिर्देश मूल रूप से “नियामक उपाय” हैं, जिनका मकसद प्रदूषण पर नियंत्रण करना और आयोग जैसे निकायों को अधिकार देना है, न कि कर्मचारियों की सेवा शर्तों में बदलाव करना।
अदालत ने टिप्पणी की, “GRAP लागू करने का उद्देश्य यह नहीं है कि उससे किसी एक कर्मचारी को लागू करने योग्य व्यक्तिगत अधिकार मिल जाए।” पीठ ने आगे कहा कि ये नियम संस्थानों और नागरिकों पर जिम्मेदारी डालते हैं, न कि कर्मचारियों को विशेष अधिकार देते हैं।
वर्क फ्रॉम होम के मुद्दे पर अदालत ने कहा कि संबंधित GRAP प्रावधान केवल केंद्र सरकार को यह निर्णय लेने का विवेकाधिकार देता है, यह कोई अनिवार्य निर्देश नहीं है। इसके अलावा, अदालत ने यह भी रिकॉर्ड किया कि GRAP स्टेज-III, जिसके तहत वर्क फ्रॉम होम की बात की जा रही थी, 26 नवंबर को ही वापस ले लिया गया था। ऐसे में याचिकाकर्ता का दावा कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं पाया गया।
निर्णय
अदालत ने माना कि प्रदूषण नियमों के नाम पर सेवा शर्तों में बदलाव करने के लिए कोई अनिवार्य आदेश जारी नहीं किया जा सकता। इसलिए याचिका में कोई दम न पाते हुए उसे खारिज कर दिया गया। हालांकि, याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य संबंधी दलीलों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने यह जरूर कहा कि यदि उनकी मेडिकल स्थिति ऐसा मांग करती है, तो वे दिल्ली से बाहर ट्रांसफर के लिए अपने नियोक्ता से अनुरोध कर सकते हैं, जिसे यथासंभव सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाना चाहिए। इन्हीं टिप्पणियों के साथ याचिका का निस्तारण कर दिया गया।
Case Title: Shubham Verma vs Centre for Development of Telematics (C-DOT) & Ors.
Case No.: W.P.(C) 18217/2025
Case Type: Writ Petition (Civil)
Decision Date: 09 December 2025










