कलकत्ता हाईकोर्ट के ओरिजिनल साइड की एक अदालत में, एक सामान्य-सी दिखने वाली प्रक्रिया संबंधी अर्जी ने पूरे बचाव का भविष्य तय कर दिया। न्यायमूर्ति अनिरुद्ध रॉय ने साफ कर दिया कि वाणिज्यिक मुकदमों में ढिलाई की कोई गुंजाइश नहीं है। एक बार समय खत्म हुआ, तो वह सचमुच खत्म हो जाता है।
यह आदेश वीलाइन होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड और खेतावत प्रॉपर्टीज लिमिटेड के बीच चल रहे विवाद में आया, लेकिन इसका असर वाणिज्यिक अदालतों में लड़ रहे कई कारोबारियों पर पड़ेगा।
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पृष्ठभूमि
यह मुकदमा हाईकोर्ट के वाणिज्यिक डिवीजन के समक्ष लंबित एक वाणिज्यिक विवाद है। प्रतिवादी खेतावत प्रॉपर्टीज को 18 अप्रैल 2025 को समन की तामील हुई थी। वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम के तहत, प्रतिवादी को अपना लिखित बयान दाखिल करने के लिए 30 दिन मिलते हैं, और अधिकतम 120 दिन तक का समय तभी मिल सकता है जब अदालत कारण दर्ज करते हुए अनुमति दे।
यहां 120 दिन की समय-सीमा लगभग 17 अगस्त 2025 को समाप्त हो गई। इससे कुछ दिन पहले, 6 अगस्त को, मामला समन्वय पीठ के समक्ष उल्लेखित हुआ, जहां विभाग में लिखित बयान जमा करने की “अनुमति” दी गई, लेकिन यह अदालत की स्वीकृति के अधीन थी।
इसके बाद प्रतिवादी ने 19 अगस्त को समय बढ़ाने की औपचारिक अर्जी दायर की। वादी ने कड़ा विरोध किया और कहा कि कानूनन समय-सीमा समाप्त हो चुकी है और प्रतिवादी का बचाव स्वतः ही समाप्त हो गया है।
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अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति रॉय ने विस्तार से यह स्पष्ट किया कि वाणिज्यिक मुकदमों में कानून क्या अनुमति देता है और किस बात को बिल्कुल माफ नहीं करता। अदालत ने कहा कि साधारण दीवानी मामलों के विपरीत, वाणिज्यिक विवादों में देरी रोकने के लिए सख्त व्यवस्था बनाई गई है।
पीठ ने टिप्पणी की, “कानून में ‘shall’ शब्द का बार-बार प्रयोग किया गया है,” और यह रेखांकित किया कि 120 दिन पूरे होने के बाद “प्रतिवादी लिखित बयान दाखिल करने का अधिकार खो देता है और अदालत उसे रिकॉर्ड पर लेने की अनुमति नहीं दे सकती।”
अदालत ने यह दलील भी खारिज कर दी कि मौखिक अनुमति या केवल विभाग में कागजात जमा करना, विधिसम्मत दाखिला माना जा सकता है। पहले दी गई अनुमति स्पष्ट रूप से “इस अदालत की स्वीकृति के अधीन” थी, और न्यायाधीश के अनुसार, स्वीकृति का अर्थ है-कारणों के आधार पर पारित एक लिखित आदेश।
बिना ऐसी औपचारिक अर्जी के, जो 120 दिन के भीतर दायर की गई हो, अदालत ने कहा कि उसके पास कोई अधिकार ही नहीं बचता। साधारण शब्दों में, समय-सीमा निकल जाने के बाद, अदालत भी बचाव को पुनर्जीवित नहीं कर सकती।
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निर्णय
अदालत ने यह मानते हुए कि प्रतिवादी 120 दिन की अनिवार्य अवधि के भीतर कोई औपचारिक लिखित अर्जी दाखिल करने में विफल रहा, निर्देश दिया कि पहले से जमा किया गया लिखित बयान फाइल से हटा दिया जाए। अब यह मुकदमा एकतरफा (अप्रतिरक्षित) वाणिज्यिक मुकदमे के रूप में आगे बढ़ेगा।
समय बढ़ाने की अर्जी को भी यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि वह कानूनन निर्धारित अवधि के बाद दायर की गई थी।
Case Title: Veeline Holdings Private Limited vs Khetawat Properties Limited
Case No.: IA No. GA-COM/2/2025 in CS-COM/825/2024
Case Type: Commercial Civil Suit (Original Side, Commercial Division)
Decision Date: 17 December 2025










