इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 7 नवंबर 2025 को दिए अपने आदेश में रामरतन को जमानत देने से इनकार कर दिया वह अपनी पत्नी प्रेमलता की कथित दहेज हत्या के आरोप में जेल में है। न्यायमूर्ति अमित गोपाल की पीठ ने न केवल जमानत याचिका खारिज की बल्कि एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लैब) से आने वाली विसरा रिपोर्ट में हो रही देरी पर कड़ी नाराजगी जताई। न्यायालय ने इसे “चिंताजनक प्रवृत्ति” बताया जो निष्पक्ष जांच में बाधा डालती है।
पृष्ठभूमि
यह मामला थाना मोहम्मदाबाद, जिला फर्रुखाबाद के केस क्राइम नंबर 26/2024 से जुड़ा है। शिकायतकर्ता अटल बिहारी ने अपनी बहन प्रेमलता की मौत के बाद एफआईआर दर्ज कराई थी। इसमें आरोप लगाया गया कि उसकी शादी 14 जनवरी 2020 को रामरतन से हुई थी और शादी के बाद से ही ससुराल वाले मोटरसाइकिल और एक लाख रुपये के अतिरिक्त दहेज की मांग कर रहे थे।
शिकायत में कहा गया कि जब यह मांग पूरी नहीं हुई तो प्रेमलता को अक्सर प्रताड़ित किया गया। कई बार रिश्तेदारों ने समझौता कराया, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ। 4 फरवरी 2024 को सुबह करीब 4 बजे प्रेमलता के ससुर मुन्ना लाल ने फोन कर बताया कि वह बीमार है और उसे शहर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है। परिवार जब अस्पताल पहुंचा, तब तक वह आईसीयू में थी और दोपहर तीन बजे डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके चेहरे, गर्दन और शरीर पर चोटें पाई गईं। चूंकि मौत का कारण स्पष्ट नहीं था, इसलिए विसरा (आंतरिक अंगों के नमूने) जांच के लिए संरक्षित किया गया।
न्यायालय के अवलोकन
जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अमित गोपाल ने एफएसएल रिपोर्ट में देरी को लेकर गंभीर चिंता जताई। अदालत ने 10 अक्टूबर 2025 को दिए गए अपने पूर्व आदेश का हवाला देते हुए फर्रुखाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) से स्पष्टीकरण मांगा था कि रिपोर्ट आई है या नहीं।
एसएसपी ने दाखिल शपथपत्र में बताया कि प्रेमलता का विसरा 22 फरवरी 2024 को झांसी की फॉरेंसिक साइंस लैब भेजा गया था। इसके बावजूद मार्च, अप्रैल, जून और अगस्त 2024 में कई बार याद दिलाने के बावजूद रिपोर्ट सितंबर 2024 में तैयार हुई और फरवरी 2025 में जांच अधिकारी को मिली।
अदालत ने कहा - “जांच विसरा रिपोर्ट प्राप्त किए बिना ही पूरी कर ली गई और चार्जशीट दाखिल कर दी गई। यह तथ्य अत्यंत चिंताजनक है।”
न्यायमूर्ति गोपाल ने लिखा - “मृतका की मृत्यु के कारण की पुष्टि नहीं हुई और यह दर्शाता है कि जांच कुछ हद तक अधूरी रही।”
न्यायालय ने कहा कि विसरा रिपोर्ट ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण कड़ी होती है।
“यह परिस्थितिजन्य साक्ष्य की एक कड़ी है और इसे समय पर जांच एजेंसी तक पहुंचना चाहिए,” आदेश में कहा गया।
इसके साथ ही न्यायालय ने मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और स्वास्थ्य महानिदेशक, उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया कि ऐसी रिपोर्टें “अनावश्यक देरी के बिना” तुरंत जांच एजेंसियों तक पहुंचें।
पीठ ने टिप्पणी की -
“विसरा रिपोर्टों के शीघ्र प्रेषण की एक सुदृढ़ प्रक्रिया और व्यवस्था होनी चाहिए ताकि जांच पूरी और प्रभावी हो सके।”
अदालत में प्रस्तुत तर्क
रामरतन के वकील, एडवोकेट शाद खान (हबलदार सिंह कठेरिया की ओर से) ने तर्क दिया कि उनका मुवक्किल निर्दोष है और उसे झूठा फंसाया गया है। उन्होंने बताया कि रामरतन के पिता ने ही प्रेम लता को अस्पताल में भर्ती कराया था। बचाव पक्ष ने आगे दावा किया कि मृतका गुस्सैल स्वभाव की थी और वैवाहिक दूरी के कारण अवसाद से ग्रस्त थी, जिसके कारण उसने ज़हर खा लिया।
वकील ने उत्तर प्रदेश के डीजीपी द्वारा जारी 2013 के एक परिपत्र का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ऐसे मामलों में विसरा रिपोर्ट के बिना आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान जांच में इस नियम की अनदेखी की गई।
राज्य की ओर से एजीए अजय सिंह ने ज़मानत का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि चूँकि मृतका की मृत्यु विवाह के सात साल के भीतर अपने ससुराल में हुई थी, और विसरा परीक्षण में ऑर्गेनोक्लोरो कीटनाशक (एक ज़हरीला रसायन) की उपस्थिति की पुष्टि हुई थी, इसलिए यह मामला सीधे तौर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B के तहत दहेज हत्या के दायरे में आता है।
अभियोजन पक्ष ने दलील दी,
"आवेदक मुख्य आरोपी का पति है और उसकी भूमिका को सह-आरोपी के बराबर नहीं माना जा सकता।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सास-ससुर को पहले ही अलग-अलग आधार पर जमानत दी जा चुकी है।
न्यायालय का निर्णय
दोनों पक्षों को सुनने और अभिलेखों का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने पाया कि कोई ऐसा आधार नहीं है जिस पर जमानत दी जा सके।
अदालत ने कहा कि मृतका की मृत्यु विवाह के सात वर्षों के भीतर अस्वाभाविक परिस्थितियों में हुई और उस पर दहेज की मांग व उत्पीड़न के लगातार आरोप हैं।
विसरा जांच में ज़हर की पुष्टि होने के कारण अदालत ने कहा कि रामरतन का मामला उसके माता-पिता से भिन्न है जिन्हें पहले ही जमानत मिल चुकी है।
“मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, यह जमानत के योग्य मामला नहीं है,” आदेश में कहा गया।
नतीजतन, अदालत ने रामरतन की जमानत अर्जी खारिज कर दी। साथ ही, अदालत ने एक बार फिर राज्य सरकार को निर्देश दिया कि फॉरेंसिक रिपोर्टों के समय पर संप्रेषण के लिए ठोस तंत्र बनाया जाए और इस आदेश की प्रति संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों तक एक सप्ताह में भेजी जाए।
यह मामला अब सत्र न्यायालय में सुनवाई के लिए जारी रहेगा, जहां साक्ष्य प्रक्रिया चल रही है।
Case Title: Ramratan vs. State of Uttar Pradesh
Case Type & Number: Criminal Misc. Bail Application No. 30824 of 2025
Date of Order: November 7, 2025










