पूर्वी दिल्ली की एक अदालत में गुरुवार को सुनवाई खत्म होते-होते माहौल अचानक भारी हो गया। मामला कोई साधारण नहीं था-एक मंदिर के भीतर पहली मंज़िल पर जली हुई लाश, बंद सीढ़ियाँ और आरोपी वही, जो रोज़ पूजा कराते थे। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एफटीसी) अनूराग ठाकुर की अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि यह केवल शक का मामला नहीं है, बल्कि परिस्थितियों की ऐसी कड़ी है जो सीधे दोषियों तक जाती है।
Background
सितंबर 2017 की एक सुबह गांधी नगर थाना पुलिस को सूचना मिली कि कैलाश नगर स्थित एक मंदिर के कमरे में किसी व्यक्ति को जला दिया गया है। पुलिस जब मौके पर पहुँची तो पहली मंज़िल के कमरे में बुरी तरह जला शव पड़ा था। पहचान नामुमकिन थी। उस कमरे की सीढ़ियों पर रात में ताला लगता था और उसकी चाबी मंदिर के पुजारी लखन दुबे के पास रहती थी।
शुरुआत में लखन ने दावा किया कि किसी अज्ञात व्यक्ति ने शव बाहर से लाकर यहाँ जला दिया होगा। लेकिन जाँच आगे बढ़ी तो कहानी बदलती चली गई। पूछताछ के दौरान उसकी पत्नी कमलेश टूट गई और उसने स्वीकार किया कि मृतक चंदर शेखर था, जो उनके गाँव का पड़ोसी था। पुलिस के मुताबिक, उसे दिल्ली बुलाया गया, खाने में नींद की दवा मिलाई गई, फिर गला घोंटकर हत्या की गई और पहचान छिपाने के लिए शव को जला दिया गया।
Court’s Observations
अदालत ने माना कि इस मामले में कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अपराध साबित नहीं हो सकता। न्यायाधीश ने कहा, “जब अपराध ऐसी जगह पर होता है जो पूरी तरह आरोपी के नियंत्रण में हो, तो उनसे स्पष्टीकरण की अपेक्षा स्वाभाविक है।”
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ कि मौत आग से नहीं, बल्कि गला दबाने से हुई थी। फॉरेंसिक जाँच में केरोसिन और नींद की दवा के अवशेष मिले। कॉल डिटेल रिकॉर्ड से यह भी सामने आया कि हत्या से ठीक पहले आरोपी और मृतक के बीच लगातार संपर्क था।
अदालत ने देरी से एफएसएल भेजे गए नमूनों और सार्वजनिक गवाहों की कमी पर भी चर्चा की, लेकिन कहा कि केवल इन आधारों पर मज़बूत साक्ष्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। “मात्र संभावना और ठोस संदेह में फर्क होता है,” पीठ ने टिप्पणी की।
Decision
सभी परिस्थितियों को जोड़ते हुए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि लखन दुबे और उसकी पत्नी कमलेश ने मिलकर चंदर शेखर की हत्या की और बाद में सबूत मिटाने की कोशिश की। अदालत ने दोनों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 201 और 120बी के तहत दोषी ठहराया। इसी के साथ मंदिर के उस बंद कमरे से शुरू हुआ यह मामला, कानून की कसौटी पर आकर अपने अंत तक पहुँचा।
Case Title: State vs Lakhan Dubey @ Laxman Prasad & Another
Case No.: Sessions Case No. 361/2018 (FIR No. 432/2017)
Case Type: Murder and Criminal Conspiracy (Sections 302/201/120B IPC)
Decision Date: 26 December 2025














