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दिल्ली हाईकोर्ट ने पारिवारिक भूमि म्यूटेशन विवाद में आपराधिक केस रद्द किया: धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप नहीं टिके

Vivek G.

वेद प्रकाश और अन्य बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) और अन्य। दिल्ली हाईकोर्ट ने भूमि म्यूटेशन विवाद में धोखाधड़ी व जालसाजी का आपराधिक केस रद्द कर पारिवारिक विवाद को अपराध मानने से इनकार किया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने पारिवारिक भूमि म्यूटेशन विवाद में आपराधिक केस रद्द किया: धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप नहीं टिके
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दिल्ली हाईकोर्ट की एक खचाखच भरी अदालत में यह साफ महसूस हो रहा था कि मामला सिर्फ कागज़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि एक परिवार के भीतर चला आ रहा तनाव भी है। जस्टिस Sanjeev Narula की पीठ ने बुधवार को उस आपराधिक मुकदमे पर विराम लगा दिया, जिसमें एक ही परिवार के कई वारिसों को जमीन के म्यूटेशन को लेकर धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोपों में घसीटा गया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में हर असहमति को अपराध नहीं बनाया जा सकता।

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Background

मामला नजफगढ़ इलाके की पैतृक कृषि भूमि से जुड़ा है, जो दिवंगत चुन्नी लाल के नाम दर्ज थी। उनके बेटे सुखबीर सिंह ने आरोप लगाया था कि उनकी जानकारी और सहमति के बिना म्यूटेशन के लिए आवेदन दिया गया और उस पर उनके फर्जी हस्ताक्षर किए गए।
उन्होंने पुलिस और राजस्व अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन जब कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो अदालत का रुख किया। बाद में उनके निधन के बाद बेटे ने मामला आगे बढ़ाया।

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फोरेंसिक जांच में हस्ताक्षरों को लेकर कोई स्पष्ट राय नहीं आ सकी। इसके बावजूद मजिस्ट्रेट ने खुद हस्ताक्षरों की तुलना करते हुए कई वारिसों को समन जारी कर दिया। सेशंस कोर्ट ने भी उस आदेश को बरकरार रखा, जिसके बाद मामला Delhi High Court पहुंचा।

Court’s Observations

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान जमीन से जुड़े कानून को आम भाषा में समझाया। पीठ ने कहा कि म्यूटेशन सिर्फ राजस्व रिकॉर्ड में नाम दर्ज करने की प्रक्रिया है, इससे मालिकाना हक तय नहीं होता।

अदालत ने टिप्पणी की, “म्यूटेशन के बाद भी शिकायतकर्ता का नाम सह-वारिस के रूप में दर्ज रहा, न तो उसकी हिस्सेदारी छीनी गई और न किसी बाहरी व्यक्ति को फायदा पहुंचा।”
धोखाधड़ी के आरोपों पर कोर्ट ने साफ कहा कि सिर्फ यह कहना काफी नहीं कि किसी ने हस्ताक्षर नहीं किए। यह भी दिखाना जरूरी है कि उससे किसी को वास्तविक नुकसान हुआ या किसी ने गलत तरीके से लाभ उठाया।

जालसाजी के मामले में भी कोर्ट ने कहा कि यह बताना जरूरी है कि फर्जी दस्तावेज बनाया किसने। सभी वारिसों को एक साथ जिम्मेदार ठहराना कानूनन सही नहीं है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता के बेटे ने बाद में एसडीएम के सामने सभी वारिसों के पक्ष में म्यूटेशन पर “नो ऑब्जेक्शन” दिया था, लेकिन यह बात मजिस्ट्रेट के सामने नहीं रखी गई।

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Decision

इन सभी तथ्यों को देखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यह मामला आपराधिक कानून के दायरे में नहीं आता और इसे आगे चलाना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट और सेशंस कोर्ट के समन आदेश रद्द करते हुए सभी आपराधिक कार्यवाहियों को खत्म कर दिया, साथ ही यह स्पष्ट किया कि पक्षकार चाहें तो अपने नागरिक या राजस्व अधिकारों के लिए कानून के अनुसार अलग से कदम उठा सकते हैं।

Case Title: Ved Prakash & Ors. vs State (NCT of Delhi) & Anr.

Case No.: CRL.M.C. 6495/2019 with CRL.M.A. 42827/2019

Case Type: Criminal Miscellaneous Petition under Section 482 CrPC

Decision Date: 24 December 2025

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