बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट की आम तौर पर खचाखच भरी अदालत में उद्योगपति अनिल डी. अंबानी और तीन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से जुड़ी एक लंबी और अहम सुनवाई हुई। विवाद का केंद्र यह है कि क्या बैंक कई साल पहले कराए गए फॉरेंसिक ऑडिट के आधार पर नए सिरे से फ्रॉड की कार्रवाई शुरू कर सकते हैं, खासकर तब जब उस ऑडिट को करने वाले ऑडिटर की योग्यता पर ही सवाल उठ रहे हों। यह मामला न्यायमूर्ति मिलिंद एन. जाधव के समक्ष सुना गया, जिन्होंने दोपहर तक चली विस्तृत दलीलों को धैर्यपूर्वक सुना।
पृष्ठभूमि
अंबानी ने इंडियन ओवरसीज बैंक, आईडीबीआई बैंक लिमिटेड और बैंक ऑफ बड़ौदा के खिलाफ अलग-अलग दीवानी वाद दायर किए हैं। तीनों बैंकों ने भारतीय रिज़र्व बैंक की 2024 की फ्रॉड प्रबंधन रूपरेखा के तहत उन्हें “फ्रॉड” घोषित करने के इरादे से कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं।
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ये नोटिस मुख्य रूप से अक्टूबर 2020 में रिलायंस कम्युनिकेशंस और उससे जुड़ी समूह कंपनियों के संबंध में तैयार की गई एक फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट पर आधारित हैं। अंबानी की ओर से दलील दी गई कि करीब चार साल बाद इस रिपोर्ट को फिर से निकाला गया और बिना उन्हें दस्तावेज़ों तक पूरी पहुंच दिए या प्रभावी जवाब का अवसर दिए, इसे ही कार्रवाई का एकमात्र आधार बनाया गया।
चुनौती का एक अहम आधार यह भी था कि ऑडिट फर्म और रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति पंजीकृत चार्टर्ड अकाउंटेंट नहीं थे, जिससे अंबानी के अनुसार, नए आरबीआई निर्देशों के तहत पूरी प्रक्रिया ही कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण हो जाती है।
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कोर्ट की टिप्पणियां
अदालत को बताया गया कि 2024 के आरबीआई मास्टर निर्देश स्पष्ट रूप से यह अनिवार्य करते हैं कि बाहरी फॉरेंसिक ऑडिट संबंधित क़ानूनों के तहत योग्य ऑडिटर द्वारा ही किया जाना चाहिए। अंबानी की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि यह कोई मामूली तकनीकी चूक नहीं, बल्कि “क्षेत्राधिकार से जुड़ी खामी” है, जो पूरी कार्रवाई की जड़ पर चोट करती है।
“पीठ ने यह टिप्पणी की कि मामला केवल प्रक्रिया का नहीं है, बल्कि यह देखने का है कि कारण बताओ नोटिसों की नींव ही कानूनी रूप से टिकाऊ है या नहीं,” अदालत की यह टिप्पणी सुनकर वहां मौजूद वकीलों के बीच हल्की सहमति दिखाई दी। न्यायाधीश ने उन दस्तावेज़ों और परिशिष्टों की देर से आपूर्ति पर भी चिंता जताई, जिन पर बैंक भरोसा कर रहे हैं।
वहीं बैंकों ने तर्क दिया कि ऑडिट 2016 के आरबीआई ढांचे के तहत कराया गया था, जिसमें ऐसी योग्यता का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था, और 2024 के निर्देशों को पिछली तारीख से लागू नहीं किया जा सकता। बैंकों का यह भी कहना था कि अंबानी 2020 से इस ऑडिट से अवगत थे और अब बहुत देर से इस मुद्दे को उठा रहे हैं।
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निर्णय
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अंतरिम राहत पर विचार सुरक्षित रखा, लेकिन यह साफ किया कि पुराने फॉरेंसिक ऑडिट पर निर्भरता और मौजूदा नियामकीय मानकों के पालन को लेकर गंभीर सवाल उठते हैं। फिलहाल मामला अंतरिम आवेदनों के स्तर पर ही है और अदालत को यह तय करना है कि क्या बैंक विवादित फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर आगे बढ़ सकते हैं या इन कानूनी मुद्दों की गहराई से जांच होने तक उन्हें रुकना होगा।
Case Title: Anil D. Ambani v. Indian Overseas Bank & Ors.
Case No.: Suit (L) No. 35923 of 2025 with Interim Applications (L) Nos. 35924 & 35925 of 2025
Case Type: Civil Suit – Interim Applications challenging bank fraud show-cause notices
Decision Date: 24 December 2025














