पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा दर्ज एक कथित नार्को-टेरर नेटवर्क मामले में आरोपी अमित गंभीर को जमानत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह मामला साधारण जमानत याचिका से कहीं आगे जाता है। सुनवाई के दौरान कोर्टरूम में सन्नाटा था, जब पीठ ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर जोर दिया।
पृष्ठभूमि
यह मामला जून 2019 का है, जब अटारी सीमा पर कस्टम अधिकारियों ने पाकिस्तान से आयातित सेंधा नमक से भरे एक ट्रक को रोका। शुरू में यह एक सामान्य जांच लग रही थी, लेकिन तलाशी के दौरान सच्चाई सामने आई। नमक की खेप के भीतर सैकड़ों किलो हेरोइन और अन्य मादक पदार्थ छिपाए गए थे, जिनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत जांच एजेंसियों के अनुसार ₹72,000 करोड़ से अधिक बताई गई।
जांच आगे बढ़ने पर NIA ने मामला अपने हाथ में लिया और एक बड़े षड्यंत्र का खुलासा होने का दावा किया, जिसमें तस्कर, विदेशी हैंडलर और अवैध पैसों के जरिए जुड़े लोग शामिल थे। अमित गंभीर का नाम बाद में पूरक आरोपपत्रों में सामने आया। एजेंसी का आरोप है कि उसने ₹4 करोड़ से अधिक की हवाला राशि के लेनदेन में अहम भूमिका निभाई। गंभीर जनवरी 2020 से न्यायिक हिरासत में है और यह जमानत के लिए उसका चौथा प्रयास था।
अदालत की टिप्पणियां
डिवीजन बेंच ने कहा कि आरोप किसी छोटे या इक्का-दुक्का लेनदेन तक सीमित नहीं हैं। अदालत ने टिप्पणी की, “यह कुछ हजार या कुछ लाख रुपये का मामला नहीं है,” और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री की ओर इशारा किया, जिससे दुबई तक दिरहम में की गई बार-बार और बड़ी धनराशि के ट्रांसफर का संकेत मिलता है।
पीठ ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत जमानत पर लगी सख्त पाबंदी का भी उल्लेख किया, जिसके अनुसार तभी जमानत दी जा सकती है जब प्रथम दृष्टया कोई मामला न बनता हो। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि जमानत के स्तर पर मामले की गहराई से सुनवाई नहीं की जाती, बल्कि यह देखा जाता है कि आरोप रिकॉर्ड के आधार पर Prima Facie सही प्रतीत होते हैं या नहीं।
अदालत ने उन सह-आरोपियों के साथ समानता के आधार पर जमानत देने की दलील भी खारिज कर दी, जिन्हें पहले राहत मिल चुकी है, यह कहते हुए कि उनकी भूमिका अलग थी। लंबी हिरासत के मुद्दे पर पीठ ने चिंता जरूर जताई, लेकिन यह भी जोड़ा कि केवल लंबी कैद ही राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े गंभीर आरोपों को नजरअंदाज करने का आधार नहीं बन सकती। पीठ ने कहा, “देश में तस्करी से लाई गई मादक पदार्थों की कमाई को हवाला के जरिए विदेश भेजकर आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना हल्के में नहीं लिया जा सकता।”
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निर्णय
इन सभी पहलुओं को देखते हुए हाई कोर्ट ने माना कि अमित गंभीर के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही प्रतीत होते हैं और उसे नियमित जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। इसी के साथ उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई। हालांकि, अदालत ने निचली अदालत को यह निर्देश भी दिया कि मामले की सुनवाई में तेजी लाई जाए, क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में गवाह हैं और मुकदमे को अनावश्यक रूप से लंबित नहीं रखा जाना चाहिए।
Case Title: Amit Gambhir vs National Investigation Agency
Case No.: CRA-D-986-2023 (O&M)
Case Type: Criminal Appeal (Bail under UAPA & NDPS Act)
Decision Date: 19 December 2025













