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सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम डिक्री के बाद बेदखली दोबारा खोलने से उप-पट्टेदारों को रोका, निष्पादन आपत्तियों की अनुमति देने वाला कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश रद्द

Vivek G.

जक्कव्वा एवं अन्य बनाम प्रहलाद गौड़ा एवं अन्य, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप-पट्टेदार निष्पादन आपत्तियों के जरिए बेदखली दोबारा नहीं खोल सकते, कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश रद्द, शीघ्र निष्पादन का निर्देश।

सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम डिक्री के बाद बेदखली दोबारा खोलने से उप-पट्टेदारों को रोका, निष्पादन आपत्तियों की अनुमति देने वाला कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर कर्नाटक से जुड़े एक लंबे समय से चल रहे संपत्ति विवाद पर विराम लगाते हुए कहा कि जब मूल किरायेदारी का मुद्दा अंतिम रूप से तय हो चुका हो, तब उप-पट्टेदार बेदखली की कार्यवाही को दोबारा नहीं खोल सकते। कोर्ट नंबर 12 में सुनवाई करते हुए पीठ ने साफ किया कि निष्पादन अदालतों को वर्षों की मुकदमेबाजी के बाद फिर से ट्रायल कोर्ट नहीं बनाया जा सकता।

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पृष्ठभूमि

इस मामले की जड़ें वर्ष 2009 में दायर एक बंटवारे के मुकदमे में हैं, जिसे जक्कव्वा और सवक्का ने धारवाड़ ज़िले में पारिवारिक संपत्तियों के विभाजन और कब्जे के लिए दाखिल किया था। विवादित भूमि का एक हिस्सा पहले इंडियन कॉटन कंपनी लिमिटेड को पट्टे पर दिया गया था, जिसे 1964 में सिद्धलिंगप्पा बुल्ला को हस्तांतरित कर दिया गया।

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सिद्धलिंगप्पा बुल्ला ने आगे चलकर इस संपत्ति को उप-पट्टे पर दे दिया। 1999 में उनकी मृत्यु के बाद यह सवाल उठा कि क्या किरायेदारी जारी रह सकती है। ट्रायल कोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट ने बार-बार यह कहा कि पट्टा स्थायी नहीं था और सिद्धलिंगप्पा बुल्ला की मृत्यु के साथ ही किरायेदारी अधिकार समाप्त हो गए। इससे जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट भी पहले ही इस निष्कर्ष की पुष्टि कर चुका था।

इसके बावजूद, जब डिक्रीधारकों ने निष्पादन कार्यवाही शुरू की, तो उप-पट्टेदार सामने आए और सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 21 नियम 97 के तहत आपत्तियां दाखिल कर दीं, जो आम तौर पर स्वतंत्र अधिकार जताने वाले तीसरे पक्ष के लिए होती है।

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न्यायालय की टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट इस दलील से सहमत नहीं हुआ। पीठ ने कहा कि प्रतिवादी “किसी भी स्वतंत्र अधिकार का दावा नहीं कर रहे हैं” और उनका कब्जा पूरी तरह सिद्धलिंगप्पा बुल्ला से निकला हुआ है, जिनकी किरायेदारी पहले ही समाप्त हो चुकी है।

स्थापित कानून का हवाला देते हुए न्यायालय ने एक पुराने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को याद किया। पीठ ने कहा, “कानून यह नहीं कहता कि उप-पट्टेदार को पक्षकार बनाया ही जाए,” और आगे जोड़ा कि मूल किरायेदार के खिलाफ पारित बेदखली डिक्री उप-पट्टेदार पर भी बाध्यकारी होती है। यह स्थिति भले ही कठोर लगे, लेकिन अदालत के अनुसार उप-पट्टेदार यह जोखिम जानते-समझते उठाता है।

निष्पादन के स्तर पर ऐसी आपत्तियों को स्वीकार करना, पीठ के मुताबिक, पूरे मामले को पिछले दरवाजे से दोबारा खोलने जैसा होगा। अदालत ने टिप्पणी की कि “वे अपने कम-दाता, सिद्धलिंगप्पा बुल्ला, से ऊंचा दर्जा नहीं मांग सकते,” जिनके कानूनी उत्तराधिकारियों के दावे सुप्रीम कोर्ट तक खारिज हो चुके थे।

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फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर 2024 के कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए अपीलें स्वीकार कर लीं और निष्पादन अदालत द्वारा धारा 21 नियम 97 के तहत आपत्तियां सुनने के फैसले को भी निरस्त कर दिया। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि उप-पट्टेदार निष्पादन कार्यवाही में सीमित दावों के लिए हस्तक्षेप कर सकते हैं, जैसे कि भूमि पर किए गए निर्माण के मूल्य की प्रतिपूर्ति का दावा।

अदालत ने लंबी देरी का हवाला देते हुए निष्पादन अदालत को निर्देश दिया कि बेदखली की प्रक्रिया को यथाशीघ्र पूरा किया जाए, और बेहतर होगा कि यह काम छह महीने के भीतर समाप्त हो। लंबित आवेदन, यदि कोई हों, तो उन्हें भी निस्तारित मान लिया गया।

Case Title: Jakkavva & Anr. vs. Prahlad Gowda & Ors.

Case No.: Civil Appeal arising out of SLP (C) No. 1183 of 2025 with SLP (C) No. 4761 of 2025

Case Type: Civil Appeal (Property / Execution Proceedings)

Decision Date: 09 December 2025

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