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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभियुक्तों की रिवीजन याचिका खारिज की, कहा- धारा 156(3) CrPC के तहत FIR आदेश को इस स्तर पर चुनौती नहीं दी जा सकती

Vivek G.

नहनी और 5 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धारा 156(3) के FIR आदेश के खिलाफ रिवीजन खारिज की, कहा- जांच के चरण में अभियुक्त ऐसी चुनौती नहीं दे सकते।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभियुक्तों की रिवीजन याचिका खारिज की, कहा- धारा 156(3) CrPC के तहत FIR आदेश को इस स्तर पर चुनौती नहीं दी जा सकती
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कोर्ट नंबर 92 में अपेक्षाकृत शांत दोपहर के दौरान, Allahabad High Court ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया कि अभियुक्त किस चरण पर उच्च अदालत का रुख कर सकते हैं और किस पर नहीं। न्यायमूर्ति चवन प्रकाश ने हाथरस से जुड़ी एक आपराधिक रिवीजन पर सुनवाई करते हुए साफ कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस को FIR दर्ज करने का दिया गया निर्देश ऐसा आदेश नहीं है जिसे प्रस्तावित अभियुक्त इस स्तर पर चुनौती दे सकें। अदालत ने पूर्व में तय फुल बेंच के कानून पर भरोसा करते हुए रिवीजन को सीधे खारिज कर दिया।

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पृष्ठभूमि

मामले की शुरुआत हाथरस के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) के समक्ष मंजी द्वारा दाखिल एक प्रार्थना पत्र से हुई थी। उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत आवेदन देकर नहनी और पांच अन्य के खिलाफ FIR दर्ज कराने और जांच के निर्देश देने की मांग की थी।

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मजिस्ट्रेट ने आवेदन पर विचार करने के बाद उसे स्वीकार कर लिया और पुलिस को मामला दर्ज कर जांच करने का आदेश दिया। 30 अक्टूबर 2023 के इस आदेश से असंतुष्ट होकर प्रस्तावित अभियुक्तों ने हाईकोर्ट में आपराधिक रिवीजन दाखिल की।

जब मामला सुनवाई के लिए लगा, तो रिवीजनकर्ताओं की ओर से कोई उपस्थित नहीं था। हालांकि, राज्य की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता (AGA) ने पेश होकर रिवीजन की विचारणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति उठाई।

न्यायालय की टिप्पणियां

अदालत ने इस मुद्दे पर अधिक समय नहीं लगाया। न्यायमूर्ति चवन प्रकाश ने कहा कि यह प्रश्न अब नया नहीं रहा है। AGA ने फादर थॉमस बनाम राज्य सरकार के फुल बेंच निर्णय का हवाला दिया, जिसमें इस कानूनी स्थिति को पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है।

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उस फैसले का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि धारा 156(3) CrPC के तहत पारित आदेश, जिसमें केवल पुलिस को FIR दर्ज कर जांच करने का निर्देश दिया जाता है, एक “अंतरिम आदेश” होता है। सरल शब्दों में, यह प्रक्रिया का एक अस्थायी कदम है, न कि दोष या निर्दोषता पर अंतिम निर्णय।

पीठ ने टिप्पणी की, “फुल बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ऐसा आदेश उस व्यक्ति की ओर से रिवीजन में चुनौती योग्य नहीं है, जिसके खिलाफ न तो संज्ञान लिया गया है और न ही कोई प्रक्रिया जारी की गई है।” साथ ही यह भी जोड़ा गया कि धारा 397(2) CrPC के तहत ऐसे आदेश के खिलाफ रिवीजन पर रोक लागू होती है।

अदालत ने यह भी याद दिलाया कि फुल बेंच ने पहले के उस दृष्टिकोण को खारिज कर दिया था, जिसमें ऐसे आदेशों के खिलाफ रिवीजन की अनुमति दी जाती थी, और साफ किया था कि अभियुक्त जांच की शुरुआती अवस्था में ही रिवीजन दाखिल कर जांच को नहीं रोक सकते।

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निर्णय

मामले के तथ्यों पर स्थापित कानून लागू करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 156(3) CrPC के तहत FIR दर्ज कराने के आदेश के खिलाफ कोई आपराधिक रिवीजन नहीं बनती। चूंकि याचिका स्वयं विचारणीय नहीं थी, इसलिए अदालत ने आरोपों के गुण-दोष में जाना भी जरूरी नहीं समझा।

इसी आधार पर नहनी और अन्य प्रस्तावित अभियुक्तों द्वारा दाखिल आपराधिक रिवीजन को खारिज कर दिया गया, जिससे मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसार पुलिस जांच का रास्ता साफ हो गया।

Case Title: Nahni and 5 Others vs State of Uttar Pradesh and Another

Case No.: Criminal Revision No. 6131 of 2023

Case Type: Criminal Revision

Decision Date: 9 December 2025

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