जब संदीप सिंह ठाकुर की अपील सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आई, तो अदालत का माहौल असामान्य रूप से शांत था। मामला मूल रूप से हाईकोर्ट द्वारा सजा निलंबन से इनकार किए जाने को चुनौती देने तक सीमित था। लेकिन सुनवाई के दौरान घटनाक्रम कुछ ऐसा बदला, जिसकी शायद ही किसी ने कल्पना की हो। अंत में, पीठ ने केवल अंतरिम राहत तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि अपने असाधारण अधिकारों का प्रयोग करते हुए पूरे आपराधिक मामले को ही समाप्त कर दिया।
पृष्ठभूमि
यह अपील मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश से जुड़ी थी, जिसमें संदीप सिंह ठाकुर की सजा निलंबन की मांग खारिज कर दी गई थी। ठाकुर को सागर की सत्र अदालत ने शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म और धोखाधड़ी का दोषी ठहराया था। ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता के तहत उन्हें दस साल की कठोर कारावास की सजा और जुर्माना सुनाया था।
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रिकॉर्ड के अनुसार, शिकायतकर्ता और आरोपी की मुलाकात कई वर्ष पहले सोशल मीडिया के जरिए हुई थी। दोनों के बीच संबंध बने, लेकिन जब तय समय पर शादी नहीं हो सकी, तो रिश्ते में दरार आ गई। इसके बाद महिला ने पुलिस से संपर्क किया, एफआईआर दर्ज हुई और अंततः ठाकुर की गिरफ्तारी, मुकदमा और सजा हुई।
जब सुप्रीम कोर्ट में सजा निलंबन से इनकार के खिलाफ अपील की सुनवाई हुई, तो शुरुआत में मामला सीमित दायरे में ही था। लेकिन कार्यवाही के दौरान पीठ को महसूस हुआ कि कागजों में दर्ज आरोपों से परे, इस विवाद में व्यक्तिगत पहलू कहीं अधिक गहरे हैं।
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अदालत की टिप्पणियां
पीठ ने इसे “दुर्लभ मामलों में से एक” बताते हुए कहा कि अदालत को लगा कि दोनों पक्षों के बीच सुलह की संभावना मौजूद है। न्यायाधीशों ने अपीलकर्ता और अभियोजिका से, उनके माता-पिता की मौजूदगी में, चैंबर में बातचीत की।
फैसले में दर्ज है कि “पीठ ने माना कि आपसी सहमति से बने संबंध को एक गलतफहमी के कारण आपराधिक रंग दे दिया गया।” अदालत ने यह भी कहा कि शादी की तारीख टलने से उत्पन्न असुरक्षा की भावना ने शिकायत दर्ज कराने की स्थिति पैदा की।
इन संवादों के बाद अदालत ने अपीलकर्ता को अंतरिम जमानत दे दी। कुछ समय बाद दोनों पक्षों ने अदालत को बताया कि वे विवाह कर चुके हैं और साथ रह रहे हैं। न्यायालय को यह भी बताया गया कि दोनों परिवार इस घटनाक्रम से संतुष्ट हैं।
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फैसला
शादी और दोनों पक्षों की संयुक्त मांग को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग किया। अदालत ने एफआईआर को रद्द कर दिया, दोषसिद्धि और सजा को निरस्त कर दिया, और हाईकोर्ट में लंबित अपील को निरर्थक घोषित कर दिया।
पीठ ने कहा कि बदली हुई परिस्थितियों में आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। इसके साथ ही, यह अपील निपटा दी गई और सोशल मीडिया से शुरू होकर देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचे इस मामले का अंत हो गया।
Case Title: Sandeep Singh Thakur vs State of Madhya Pradesh & Another
Case No.: Criminal Appeal No. 5256 of 2025
Case Type: Criminal Appeal (against rejection of suspension of sentence; conviction under IPC)
Decision Date: December 5, 2025















