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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने न्यायिक अधिकारी के आवास पर जमानत के दबाव से जुड़े मामले में FIR रद्द करने से इनकार किया

Shivam Y.

गुरदेव शर्मा एवं अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य, एचपी हाईकोर्ट ने जज के आवास पर जमानत के लिए दबाव डालने से जुड़े मामले में एफआईआर रद्द करने से इनकार किया।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने न्यायिक अधिकारी के आवास पर जमानत के दबाव से जुड़े मामले में FIR रद्द करने से इनकार किया

मंडी में एक न्यायिक अधिकारी के घर के बाहर हुई तनावपूर्ण घटना अब पूरी तरह से ट्रायल की ओर बढ़ेगी। बुधवार को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने आरोपियों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एफआईआर रद्द करने की मांग की गई थी। अदालत ने साफ कहा कि आरोपों के अनुसार किया गया आचरण कानूनी सीमा से बाहर जाता है और इस स्तर पर उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। यह फैसला न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने सुनाया, जिन्होंने मामले को विस्तार से सुना और कानूनी प्रक्रिया को शॉर्टकट से मोड़ने की कोशिशों पर सख्त रुख अपनाया।

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पृष्ठभूमि

यह मामला 2 अक्टूबर 2021 का है। शिकायतकर्ता मंडी में पदस्थ अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट थीं। उस दिन वह अपने सरकारी आवास पर थीं, जब एक अन्य मामले में आरोपी को उनके सामने पेश किया गया और उसे पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया। इसके बाद जमानत अर्जी दाखिल हुई, जिसे अगले दिन के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया।

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एफआईआर के अनुसार, यहीं से मामला बिगड़ा। वकील के चले जाने के बाद आरोपी के कुछ रिश्तेदार कथित तौर पर मजिस्ट्रेट के आवास के बाहर ही डटे रहे। आरोप है कि उन्होंने रास्ता रोक लिया, नारेबाजी की और तुरंत जमानत देने की मांग करने लगे। अधिकारी ने बाद में बताया कि इस कारण वह, उनके बुजुर्ग माता-पिता और लगभग चार साल का बच्चा घर के भीतर ही फंसे रहे, जब तक कि लोग वहां से नहीं हटे।

पुलिस ने घर में घुसपैठ और लोक सेवक के काम में बाधा डालने से जुड़ी धाराओं में एफआईआर दर्ज की। 2022 में चार्जशीट दाखिल हुई और इस साल ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय करने की नोटिस जारी कर दी। इसके बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट का रुख करते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की।

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कोर्ट की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति कैंथला ने बचाव पक्ष की दलीलों को सख्ती से खारिज किया। एक अहम तर्क यह दिया गया था कि जिस इमारत में अधिकारी थीं, वह अदालत के रूप में इस्तेमाल होती है, इसलिए वहां प्रवेश को अतिक्रमण नहीं कहा जा सकता। अदालत ने इस दलील को ही विरोधाभासी बताया। पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता आवास को अदालत बताकर प्रवेश का अधिकार नहीं जता सकते, जब तक वे यह स्वीकार न करें कि उस समय शिकायतकर्ता न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्य कर रही थीं।”

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि उस समय न्यायिक कार्य समाप्त हो चुका था। रिमांड का आदेश पारित हो चुका था और जमानत अर्जी अगले दिन के लिए तय थी। आदेश के शब्दों में, “न्यायिक कार्य समाप्त होने के बाद आवास के बाहर बैठकर जमानत की मांग करते हुए शोर मचाना किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता।”

कानून को सरल शब्दों में समझाते हुए अदालत ने कहा कि आपराधिक अतिक्रमण केवल जबरन घुसने तक सीमित नहीं है। किसी को डराने या दबाव बनाने के उद्देश्य से किसी के परिसर में प्रवेश करना या वहां बने रहना भी अपराध हो सकता है। आरोपों के आधार पर अदालत ने प्रथम दृष्टया आपराधिक अतिक्रमण और गलत तरीके से बंधक बनाने का मामला बनता पाया। न्यायमूर्ति कैंथला ने टिप्पणी की, “नागरिकों को अपनी शिकायतों के लिए कानूनी रास्ता अपनाने का अधिकार है, न कि किसी न्यायिक अधिकारी को डराने-धमकाने का।”

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अदालत ने याचिका दाखिल करने में हुई देरी को भी गंभीरता से लिया। एफआईआर के साढ़े तीन साल बाद याचिका दायर की गई, और इसके लिए कोई ठोस कारण नहीं बताया गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि जब ट्रायल शुरू हो चुका हो, तब इतनी देरी से लाई गई याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

निर्णय

अंततः हाईकोर्ट ने एफआईआर और उससे जुड़ी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सामग्री मौजूद है और इस स्तर पर वह मिनी ट्रायल नहीं कर सकती। याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसकी टिप्पणियां केवल इस याचिका के निपटारे तक सीमित हैं और ट्रायल कोर्ट में मामले के गुण-दोष पर कोई असर नहीं डालेंगी। अब यह मामला सक्षम ट्रायल कोर्ट के समक्ष आगे बढ़ेगा।

Case Title: Gurdev Sharma & Others vs State of Himachal Pradesh & Others

Case Type: Criminal Miscellaneous (Petition for Quashing FIR)

Case Number: Cr. MMO No. 1098 of 2025

Date of Judgment: 17 December 2025

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