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पुलिस हथियार छीनने का मामला: हाईकोर्ट ने कांस्टेबल की बर्खास्तगी बहाल की

Vivek G.

जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश और अन्य बनाम बशीर अहमद मीर, 2016 कुलगाम हथियार छीनने मामले में हाईकोर्ट ने पुलिस जांच को सही मानते हुए कांस्टेबल की बर्खास्तगी बहाल कर दी।

पुलिस हथियार छीनने का मामला: हाईकोर्ट ने कांस्टेबल की बर्खास्तगी बहाल की
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श्रीनगर की अदालत में सुबह से ही हलचल थी। फाइलें खुलीं, वकीलों की दलीलें चलीं और आखिरकार डिवीजन बेंच ने वह फैसला सुनाया, जिसका इंतज़ार पुलिस विभाग को वर्षों से था। 2016 के हथियार छीनने की घटना से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को पलटते हुए बर्खास्त कांस्टेबल की सेवा समाप्ति को सही ठहराया।

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Background

मामला मई 2016 का है, जब कुलगाम के आदजिन इलाके में स्थित एक माइनॉरिटी गार्ड पिकेट पर रात के अंधेरे में उग्रवादियों ने हमला किया। ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों को काबू में कर उनके हथियार छीन लिए गए। पुलिस की ओर से यह आरोप रहा कि किसी भी गार्ड ने जवाबी फायरिंग नहीं की।

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इस घटना के बाद संबंधित कांस्टेबल को निलंबित कर विभागीय जांच शुरू की गई। जांच के बाद उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। कांस्टेबल ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि जांच प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं हुआ और उसे अपनी बात रखने का पूरा मौका नहीं मिला। सिंगल जज ने उसकी दलील मान ली थी, जिसे बाद में सरकार ने चुनौती दी।

Court’s Observations

डिवीजन बेंच ने पूरे रिकॉर्ड को ध्यान से देखा और पुलिस नियमों के तहत होने वाली विभागीय जांच की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया। अदालत ने कहा कि आरोपों की जानकारी दी गई, गवाहों के बयान दर्ज हुए और आरोपी को जवाब देने का अवसर भी मिला।
पीठ ने टिप्पणी की, “जांच के हर जरूरी चरण का पालन किया गया है, और यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी को सुनवाई का मौका नहीं मिला।”

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अदालत इस दलील से भी सहमत नहीं हुई कि अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को जांच अधिकारी बनने का अधिकार नहीं था। न्यायालय के अनुसार, कानून में ऐसे अधिकारी को यह जिम्मेदारी सौंपने की अनुमति है।

सबसे अहम टिप्पणी हथियारों को बिना प्रतिरोध सौंपने को लेकर आई। अदालत ने कहा कि ऐसी चूक को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि यह पुलिस बल की छवि और जिम्मेदारी से जुड़ा मामला है।

Decision

अंत में, हाईकोर्ट ने सरकार की अपील स्वीकार करते हुए सिंगल जज का आदेश रद्द कर दिया और कांस्टेबल की बर्खास्तगी को बहाल कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि न तो जांच प्रक्रिया में कोई गंभीर कमी थी और न ही सजा असंगत कही जा सकती है।

Case Title: UT of Jammu & Kashmir & Others vs Bashir Ahmad Mir

Case No.: LPA No. 27/2022

Case Type: Letters Patent Appeal (Service / Police Disciplinary Matter)

Decision Date: 18 December 2025

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