वर्षों से चली आ रही प्रक्रियात्मक खींचतान को विराम देते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पंचकूला स्थित एक संपत्ति की बिक्री से जुड़े डिक्री के निष्पादन को बहाल कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि यदि खरीदार की मंशा सौदा पूरा करने की स्पष्ट हो, तो केवल धन जमा करने में हुई थोड़ी सी देरी के आधार पर वैध अनुबंध को विफल नहीं किया जा सकता।
पृष्ठभूमि
यह विवाद दो दशक से भी पुराना है। दिसंबर 2004 में डॉ. अमित आर्य ने कालका, पंचकूला में स्थित एक छोटे भूखंड को खरीदने के लिए कमलेश कुमारी से समझौता किया था। एक लाख रुपये बतौर अग्रिम दिए गए, लेकिन बिक्री विलेख (सेल डीड) आगे चलकर निष्पादित नहीं हो सका।
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डॉ. आर्य ने सिविल कोर्ट में विशिष्ट निष्पादन की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया-सरल शब्दों में, अदालत से यह आदेश मांगा कि वादा की गई बिक्री पूरी कराई जाए। 2011 में ट्रायल कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला देते हुए शेष राशि मिलने पर दो महीने के भीतर बिक्री विलेख निष्पादित करने का निर्देश दिया। यह डिक्री प्रथम अपील से लेकर द्वितीय अपील तक कायम रही और अंततः हाई कोर्ट ने भी इसे बहाल किया।
मामला तब उलझा जब निष्पादन की बारी आई। हालांकि डॉ. आर्य ने निष्पादन याचिका दायर कर दी थी, लेकिन पूरी शेष राशि जमा करने में दो महीने की अवधि से लगभग 27 दिन की देरी हो गई। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने बाद में डिक्री को “निष्पादन योग्य नहीं” मानते हुए बिक्री की प्रक्रिया पर ब्रेक लगा दिया।
अदालत की टिप्पणियां
अपील की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने व्यावहारिक रुख अपनाया। पीठ ने कहा कि कानून स्वयं ऐसे मामलों में समय बढ़ाने की अनुमति देता है। पुराने फैसलों का हवाला देते हुए न्यायालय ने रेखांकित किया कि केवल देरी से यह नहीं माना जा सकता कि खरीदार ने अनुबंध छोड़ दिया है।
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पीठ ने टिप्पणी की, “वास्तविक कसौटी यह है कि क्या खरीदार का आचरण उसके हिस्से के दायित्व को पूरा करने से साफ इनकार दर्शाता है।”
इस मामले में निचली अदालतों ने पहले ही यह निष्कर्ष निकाला था कि डॉ. आर्य सौदा पूरा करने के लिए तैयार और इच्छुक थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 27 दिन की देरी को घातक मानना एक अत्यधिक तकनीकी दृष्टिकोण होगा, जिससे अदालतों को बचना चाहिए।
अदालत ने डिक्री के “विलय” (मर्जर) के सिद्धांत पर भी स्पष्टता दी। जब हाई कोर्ट ने द्वितीय अपील का अंतिम निर्णय गुण-दोष के आधार पर दे दिया, तो कानून की नजर में वही अंतिम डिक्री प्रभावी रही। ऐसे में ट्रायल कोर्ट द्वारा तय दो महीने की अवधि को अलग-थलग तरीके से पढ़ना सही नहीं था।
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निर्णय
हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निष्पादन अदालत के उस आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें विक्रेता की आपत्तियों को खारिज किया गया था। अदालत ने निर्देश दिया कि विशिष्ट निष्पादन की डिक्री को कानून के अनुसार आगे बढ़ाते हुए निष्पादित किया जाए। इसके साथ ही, लंबे समय से लटका यह भूमि सौदा निष्पादन के स्तर पर ही अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया।
Case Title: Dr. Amit Arya v. Kamlesh Kumari
Case No.: Civil Appeal arising out of SLP (C) No. 20091 of 2022
Case Type: Civil Appeal (Specific Performance / Execution of Decree)
Decision Date: 19 December 2025










