सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गुजरात हाईकोर्ट को कड़ी टिप्पणी करते हुए एक लंबे समय से चल रहे दहेज मृत्यु मामले में अंतिम समय पर किए गए हस्तक्षेप को पलट दिया। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को बहाल कर दिया, जिसमें एक नाबालिग बच्ची को अभियोजन पक्ष की गवाह के रूप में बुलाने से इनकार किया गया था। पीठ ने साफ कहा कि आपराधिक मुकदमों को केवल अनुमान के आधार पर अनावश्यक रूप से लंबा नहीं खींचा जा सकता, खासकर जब मामला इतना संवेदनशील हो और यादें इतनी नाज़ुक हों।
पृष्ठभूमि
यह मामला नवंबर 2017 में एक महिला की मौत से जुड़ा है, जिसे कथित तौर पर आत्महत्या बताया गया। महिला के पिता ने लगभग एक महीने बाद एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें पति और ससुराल वालों पर क्रूरता, दहेज उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप लगाए गए। आरोपों में आईपीसी की धारा 498A और दहेज प्रतिषेध अधिनियम के प्रावधान शामिल थे।
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मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के 21 गवाहों की गवाही पहले ही दर्ज हो चुकी थी। इसके बाद सितंबर 2023 में अभियोजन ने मृतका की बेटी आशीवी को गवाह के रूप में पेश करने की अनुमति मांगी। घटना के समय बच्ची की उम्र करीब चार साल नौ महीने थी। दावा किया गया कि वह उस समय घर में मौजूद थी जब उसकी मां की मृत्यु हुई।
ट्रायल कोर्ट इस दलील से सहमत नहीं हुआ। अदालत ने कहा कि न तो एफआईआर में और न ही पहले दर्ज किसी बयान में बच्ची की मौजूदगी का ज़िक्र है, और इसलिए आवेदन खारिज कर दिया गया। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस आदेश को पलटते हुए बच्ची की गवाही की अनुमति दे दी, कुछ सुरक्षा उपायों के साथ। इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
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न्यायालय की टिप्पणियां
दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लेकर साफ रुख अपनाया। पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई ठोस आधार नहीं है जिससे यह साबित हो कि बच्ची घटना के समय मौजूद थी। अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन का यह मान लेना कि वह प्रत्यक्षदर्शी थी, महज़ अटकल पर आधारित है।
न्यायालय ने समय के अंतर को भी अहम माना। घटना के वक्त बच्ची बहुत कम उम्र की थी और अब वह लगभग ग्यारह साल की हो चुकी है। पीठ ने टिप्पणी की कि “इतनी कम उम्र की स्मृतियां आसानी से प्रभावित हो सकती हैं और बाहरी प्रभावों के अधीन होती हैं।” यह भी नोट किया गया कि बच्ची वर्षों से अपने ननिहाल में रह रही है, जिससे सिखाए-पढ़ाए जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
कानूनी पहलू पर अदालत ने स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 311 के तहत अदालतों को गवाह बुलाने की व्यापक शक्ति जरूर है, लेकिन इसका इस्तेमाल बेहद सोच-समझकर किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि मुकदमे के इतने अंतिम चरण में ऐसी गवाही की अनुमति देने से केवल सुनवाई लंबी होगी और अभियुक्तों को नुकसान पहुंचेगा।
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फैसला
इन सभी कारणों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश में दखल देकर कानूनी गलती की। अदालत ने अपीलें स्वीकार करते हुए 27 नवंबर 2024 के हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और 30 मार्च 2024 के ट्रायल कोर्ट के आदेश को बहाल कर दिया। साथ ही ट्रायल कोर्ट को कानून के अनुसार आगे की कार्यवाही जारी रखने का निर्देश दिया गया।
Case Title: Mayankkumar Natwarlal Kankana Patel & Anr. vs State of Gujarat & Anr.
Case No.: Criminal Appeal arising out of SLP (Crl.) Nos. 1167–1168 of 2025
Case Type: Criminal Appeal (Dowry Death / Abetment to Suicide – Evidence Issue)
Decision Date: 19 December 2025









