सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना मुआवज़े के एक बड़े अवार्ड में हस्तक्षेप करते हुए उसे कम कर दिया और साफ कहा कि मृतक की आय तय करते समय ट्रिब्यूनल अनुमान और कयास के आधार पर नहीं चल सकता। भरी हुई अदालत में बैठी पीठ ने यह पाया कि पहले तय की गई आय वास्तविक साक्ष्यों से काफी आगे निकल गई थी।
पृष्ठभूमि
यह मामला 29 अगस्त 2017 की एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा है। मृतक, जिसे उसके परिजनों ने दो ट्रकों का मालिक और ट्रांसपोर्टर बताया, तेज़ रफ्तार में चल रहे एक अन्य वाहन की टक्कर से मारा गया। उसकी पत्नी और तीन बच्चों ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल का दरवाज़ा खटखटाया। ट्रिब्यूनल ने माना कि हादसा लापरवाह और तेज़ ड्राइविंग के कारण हुआ।
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असल विवाद मुआवज़े की रकम को लेकर था। ट्रिब्यूनल ने मृतक की मासिक आय ₹95,000 मान ली और उसी आधार पर मुआवज़ा तय कर दिया। हाईकोर्ट ने भी इस आकलन को बरकरार रखा। इसके खिलाफ नेशनल इंश्योरेंस कंपनी सुप्रीम कोर्ट पहुँची और कहा कि इतनी आय मानने का कोई ठोस आधार नहीं है।
अदालत की टिप्पणियाँ
जस्टिस के. विनोद चंद्रन की अगुवाई वाली पीठ इस तर्क से खास प्रभावित नहीं दिखी। अदालत ने टिप्पणी की, “जो व्यक्ति ₹95,000 प्रतिमाह कमाता है, वह निश्चित रूप से आयकर देता होगा,” और इस बात पर ज़ोर दिया कि कोई भी आयकर रिटर्न पेश नहीं किया गया।
बीमा कंपनी का कहना था कि ट्रिब्यूनल ने दो ट्रकों के लोन की ईएमआई देखकर अपने-आप ऊँची आय मान ली, जो सही तरीका नहीं है। अदालत ने कहा कि केवल ईएमआई चुकाने से यह मान लेना कि आय उससे दोगुनी है, उचित नहीं है। न्यायालय ने यह भी नोट किया कि मृतक ने कई बार ईएमआई चुकाने में चूक की थी, जिससे यह संकेत मिलता है कि आय नियमित नहीं थी।
अदालत ने व्यक्तिगत आय और व्यवसायिक आय के बीच अंतर भी स्पष्ट किया। चूँकि मृतक ट्रकों का मालिक था, उसका व्यवसाय उसकी मृत्यु के बाद भी चल सकता था। पीठ ने कहा, “हमारी राय में पीड़ित की मृत्यु से उसके व्यवसाय से होने वाली आय पूरी तरह बंद नहीं हो जाती।”
प्रणय सेठी मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने दोहराया कि मुआवज़ा न तो बहुत कम होना चाहिए और न ही किसी तरह का बोनस। अदालत ने कहा कि किसी हादसे से पीड़ित परिवार को अप्रत्याशित लाभ मिलने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
निर्णय
सभी पहलुओं पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बीमा कंपनी द्वारा पहले ही जमा किए गए ₹50 लाख, आश्रितों की हानि के लिए पर्याप्त हैं, भले ही यह ट्रिब्यूनल द्वारा तय की गई राशि का लगभग आधा हो। दावा दायर करने की तारीख से 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देने का अधिकार भी दावेदारों को दिया गया।
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इसके अलावा, अदालत ने दांपत्य संग-साथ (consortium), संपत्ति की हानि और अंतिम संस्कार खर्च के लिए दी गई राशि को बरकरार रखा और पत्नी व बच्चों के लिए कुल ₹1.6 लाख की अतिरिक्त राशि स्वीकृत की। बीमा कंपनी को निर्देश दिया गया कि शेष राशि ब्याज सहित एक महीने के भीतर अदा की जाए। इन संशोधनों के साथ अपील स्वीकार कर ली गई।
Case Title: M/s National Insurance Co. Ltd. vs Neeru Devi & Others
Case No.: Civil Appeal arising out of SLP (C) No. 19462 of 2025
Case Type: Motor Accident Compensation – Civil Appeal
Decision Date: 15 December 2025










