अदालत कक्ष में सन्नाटा था, जब पीठ ने उस विवाद को समेटा जो लगभग एक दशक से सैकड़ों दंत स्नातकों पर मंडरा रहा था। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि राजस्थान को 2016 में BDS प्रवेश के लिए NEET पात्रता मानकों में ढील देने का कोई अधिकार नहीं था। अदालत ने इस पूरी कवायद को कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण बताया। फैसले ने लंबे समय से चली आ रही अनिश्चितता को खत्म किया, लेकिन उन छात्रों के लिए असहजता भी छोड़ी, जिन्हें लगता था कि उनकी भर्तियां सुरक्षित हैं।
पृष्ठभूमि
यह मामला 2016 में राजस्थान सरकार के उस फैसले से जुड़ा है, जिसमें बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (BDS) पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए न्यूनतम NEET परसेंटाइल घटाया गया था। बड़ी संख्या में सीटें खाली रहने के कारण राज्य ने पहले कट-ऑफ में 10 परसेंटाइल की कमी की और फिर “विशेष आपात स्थिति” का हवाला देते हुए अतिरिक्त 5 परसेंटाइल की छूट दे दी। निजी डेंटल कॉलेजों ने इसी आधार पर ऐसे छात्रों को प्रवेश दे दिया, जो सामान्य NEET मानकों पर खरे नहीं उतरते थे।
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समस्या तब शुरू हुई जब डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (DCI) ने आपत्ति जताई और कहा कि NEET कट-ऑफ घटाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है, वह भी परिषद से परामर्श के बाद। बाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप किया। एकल न्यायाधीश ने 10+5 परसेंटाइल तक की छूट से हुई भर्तियों को संरक्षण दिया, लेकिन इससे आगे दाखिला पाने वाले छात्रों को बाहर करने का आदेश दिया। डिवीजन बेंच ने मोटे तौर पर इसी दृष्टिकोण को बरकरार रखा और कॉलेजों पर भारी लागत भी लगाई।
न्यायालय की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट अपने आकलन में स्पष्ट और कठोर था। अदालत ने कहा कि NEET केवल एक प्रवेश परीक्षा नहीं, बल्कि चिकित्सा और दंत शिक्षा में समान और उच्च मानक बनाए रखने की राष्ट्रीय व्यवस्था है। पीठ ने टिप्पणी की, “न्यूनतम अर्हता परसेंटाइल घटाने की शक्ति केवल केंद्र सरकार के पास है,” और जोड़ा कि ऐसी शक्ति “किसी राज्य द्वारा अपने स्तर पर ग्रहण या प्रयोग नहीं की जा सकती।”
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राजस्थान के बचाव को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि 2016 में केंद्र की ओर से लिखे गए पत्र में प्रयुक्त वाक्यांश “आवश्यक कार्रवाई जैसा उचित समझा जाए” को वैधानिक शक्ति के प्रत्यायोजन के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता। न्यायाधीशों ने साफ किया कि न तो डेंटिस्ट्स एक्ट और न ही 2007 के विनियमों में ऐसी किसी प्रत्यायोजन की व्यवस्था है। इसी गलत धारणा के आधार पर राज्य ने कट-ऑफ एक नहीं, बल्कि दो बार घटाया।
अदालत ने उन निजी कॉलेजों की भी कड़ी आलोचना की, जिन्होंने इससे भी आगे बढ़कर शून्य या नकारात्मक NEET स्कोर वाले छात्रों को दाखिला दे दिया। पीठ के अनुसार, सीटें भरने की होड़ में उठाया गया यह कदम “अमानक दंत चिकित्सकों” को जन्म देने का जोखिम पैदा करता है, जबकि नियामक ढांचा ठीक इसके उलट उद्देश्य के लिए बनाया गया है।
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निर्णय
अपीलों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की उस सोच को पलट दिया, जिसमें राजस्थान की 10+5 परसेंटाइल की छूट को वैध माना गया था। अदालत ने कहा कि राज्य द्वारा की गई सभी कट-ऑफ कटौतियां शुरुआत से ही अवैध थीं, क्योंकि ऐसा करने का अधिकार उसके पास कभी था ही नहीं। इसलिए, राज्य-स्तरीय इन ढीलों के आधार पर दी गई भर्तियां कानून की कसौटी पर टिक नहीं सकतीं। कोर्ट ने दोहराया कि NEET मानकों में राज्यों द्वारा ढील नहीं दी जा सकती और योग्यता व जनस्वास्थ्य की रक्षा के लिए इन्हें समान रूप से लागू किया जाना चाहिए
Case Title: Siddhant Mahajan and Others vs State of Rajasthan and Others
Case No.: Civil Appeal Nos. ……… of 2025 (arising out of SLP (Civil) Nos. 14014–14019 of 2023 and connected matters)
Case Type: Civil Appeal (BDS/NEET Admission Dispute)
Decision Date: 2025








