रांची स्थित झारखंड उच्च न्यायालय में एक जाना-पहचाना मामला फिर से सुनवाई के लिए आया। न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एक मामले में आरोपी सौरभ बर्धन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें अदालत द्वारा निर्धारित समय सीमा चूक जाने के बाद आत्मसमर्पण के लिए और समय मांगा गया था। कागजों पर यह मामला प्रक्रियात्मक प्रतीत होता था, लेकिन मुकदमे की प्रगति पर इसके गंभीर परिणाम हो सकते थे।
पृष्ठभूमि
यह मामला 7 फरवरी 2025 के उस आदेश से जुड़ा है, जिसमें हाईकोर्ट ने सौरव बर्धन को राहत देते हुए एक स्पष्ट शर्त रखी थी। आदेश के अनुसार, उन्हें दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण कर जमानत बांड दाखिल करना था। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट के तरसेम लाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय फैसले के अनुरूप था।
हालांकि, मामला तय योजना के मुताबिक आगे नहीं बढ़ सका। बर्धन बाद में हाईकोर्ट पहुंचे और कहा कि जब वह आत्मसमर्पण के लिए पहुंचे थे, तब उनके जमानत बांड स्वीकार नहीं किए गए और इसी दौरान दो सप्ताह की समयसीमा समाप्त हो गई। जब यह मामला पहले इस महीने अदालत के सामने आया, तो पीठ संतुष्ट नहीं हुई। अदालत ने साफ कहा कि इस दावे के समर्थन में कोई आवेदन या दस्तावेज रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया है। इसके बाद अदालत ने एक पूरक हलफनामा दाखिल करने का समय दिया था।
20 दिसंबर की सुनवाई से पहले वह पूरक हलफनामा दाखिल किया गया। खास बात यह रही कि याचिकाकर्ता ने अपनी मुख्य याचिका में किए गए एक पुराने कथन को वापस ले लिया और यह दलील दी कि जब वह निचली अदालत में आत्मसमर्पण के लिए पहुंचे, तब तक तय समयसीमा पहले ही खत्म हो चुकी थी।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति प्रसाद ने पूरे घटनाक्रम और समयरेखा को बारीकी से देखा। 7 फरवरी का आदेश बिल्कुल स्पष्ट था आदेश की प्रति मिलने के दो सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण किया जाना था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसे समयसीमा की जानकारी नहीं थी और बाद में उसे इस चूक का पता चला, जिसके बाद उसने आदेश में संशोधन के लिए यह याचिका दाखिल की।
प्रवर्तन निदेशालय की ओर से अधिवक्ता अमित कुमार दास ने किसी भी तरह की रियायत का विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता की गैर-हाजिरी के कारण ट्रायल ठप पड़ा है। याचिकाकर्ता के आचरण की ओर इशारा करते हुए ईडी ने कहा कि न तो तय समय में आत्मसमर्पण के लिए गंभीर प्रयास किए गए और न ही मार्च में याचिका दाखिल करने के बाद जल्दी सुनवाई के लिए कोई पहल हुई।
पीठ ने इन दलीलों को नोट किया, लेकिन साथ ही सुप्रीम कोर्ट के तरसेम लाल फैसले में तय कानून को भी ध्यान में रखा, जिसमें आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने और अनावश्यक हिरासत से बचने के बीच संतुलन पर जोर दिया गया है।
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अदालत ने कहा कि “याचिकाकर्ता को आत्मसमर्पण के लिए एक अवसर दिया जाना चाहिए,” लेकिन यह भी साफ किया कि यह खुली छूट नहीं है।
निर्णय
अंततः हाईकोर्ट ने 7 फरवरी 2025 के अपने पूर्व आदेश में सीमित संशोधन किया। सौरव बर्धन को अब 22 दिसंबर 2025 को संबंधित अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने और जमानत बांड पर विचार के लिए उचित आवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।
साथ ही, अदालत ने सख्त चेतावनी भी दी। याचिकाकर्ता के अब तक के आचरण को देखते हुए पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि वह तय तारीख पर आत्मसमर्पण करने में विफल रहता है, तो ट्रायल कोर्ट उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कानून के तहत “सभी आवश्यक कदम” उठाने के लिए स्वतंत्र होगी।
इन टिप्पणियों के साथ आपराधिक विविध याचिका का निस्तारण कर दिया गया।
Case Title: Sourav Bardhan vs The Union of India through Directorate of Enforcement
Case Number: Cr.M.P. No. 939 of 2025
Date of Order: 20 December 2025
Counsel for Petitioner: Mr. Prabhas Chandra Jha, Advocate
Counsel for Respondent (ED): Mr. Amit Kumar Das, Advocate
Mr. Manmohit Bhalla, Advocate







