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दिल्ली उच्च न्यायालय ने पड़ोसी से मारपीट और जातिगत दुर्व्यवहार के मामले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, उनकी पत्नी और ड्राइवर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया।

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने पड़ोसी पर हमले और जातिगत दुर्व्यवहार के मामले में डीसीपी, उनकी पत्नी और ड्राइवर के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया है और कहा है कि मामलों की सुनवाई के दौरान ही जांच होनी चाहिए। - एस.के. सिंह बनाम दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य और अन्य

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पड़ोसी से मारपीट और जातिगत दुर्व्यवहार के मामले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, उनकी पत्नी और ड्राइवर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया।

शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट के गलियारों में माहौल कुछ अलग ही था, जब न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने एक ऐसे पड़ोसी विवाद से जुड़े मामले में विस्तृत फैसला सुनाया, जो अब गंभीर आपराधिक आरोपों का रूप ले चुका है। यह मामला इसलिए भी खास माना जा रहा है क्योंकि इसमें एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और उनके परिवार पर हमला, धमकी और जाति आधारित अपमान के आरोप लगे हैं।

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पृष्ठभूमि

ये अपीलें एस.के. सिंह, जो उस समय पुलिस उपायुक्त (कम्युनिकेशन) के पद पर तैनात थे, उनकी पत्नी मंजू सिंह और उनके ड्राइवर संदीप कुमार दहिया द्वारा दायर की गई थीं। उन्होंने रोहिणी ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें जुलाई 2021 की एक घटना से जुड़े मामलों में संज्ञान लिया गया था।

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अभियोजन के अनुसार, यह विवाद किंग्सवे कैंप, दिल्ली में शिकायतकर्ता के घर पर चल रहे निर्माण कार्य को लेकर शुरू हुआ। बात बहस से आगे बढ़ी और आरोप है कि गाली-गलौज, धमकी और शारीरिक हिंसा तक पहुंच गई। शिकायतकर्ता, जो एक सहायक उपनिरीक्षक की बेटी है, ने दावा किया कि उसके सिर पर बल्ले से वार किया गया, उसे जाति से जुड़ी गालियां दी गईं और घर खाली कराने सहित गंभीर धमकियां दी गईं। इसके बाद आईपीसी की विभिन्न धाराओं और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की गई। मंजू सिंह की ओर से एक क्रॉस-एफआईआर भी दर्ज कराई गई, जिसमें शिकायतकर्ता के परिवार पर आरोप लगाए गए।

अपीलकर्ताओं का कहना था कि उन्हें झूठे तरीके से फंसाया गया है, आरोप बाद के बयानों में बढ़ाए गए और जातिगत आरोप जानबूझकर देर से जोड़े गए। उनका यह भी तर्क था कि एस.के. सिंह अपने आधिकारिक कर्तव्य का पालन कर रहे थे और आवश्यक अनुमति (सैंक्शन) भी नहीं ली गई।

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अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति ओहरी ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की हाई कोर्ट की शक्ति सीमित है। पीठ ने टिप्पणी की,

“संज्ञान के चरण पर अदालत से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह ट्रायल कोर्ट की तरह साक्ष्यों का मूल्यांकन करे।” अदालत ने यह भी कहा कि बयानों में विरोधाभास या सुधार जैसे मुद्दे ट्रायल के दौरान जांचे जाएंगे।

अदालत ने ध्यान दिलाया कि एफआईआर और बाद के बयानों में प्रत्येक आरोपी की भूमिका का उल्लेख किया गया है। जहां मंजू सिंह पर बल्ले से हमला करने का आरोप है, वहीं एस.के. सिंह पर परिवार को धमकाने, रास्ता रोकने और बल्ला सौंपने का आरोप लगाया गया है। ड्राइवर के खिलाफ आरोप बाद के बयानों में सामने आए। जांच रिकॉर्ड में सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल से रिकॉर्ड किए गए वीडियो भी शामिल हैं।

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महत्वपूर्ण रूप से, न्यायाधीश ने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराध बनते हैं या नहीं, और कौन-सी धाराएं अंततः लागू होंगी, यह सब आरोप तय होने के चरण पर देखा जाएगा। अदालत ने कहा,

“संज्ञान अपराध का लिया जाता है, आरोपी का नहीं,” और यह स्पष्ट किया कि ट्रायल आगे बढ़ने के लिए प्रथम दृष्टया पर्याप्त सामग्री मौजूद है।

निर्णय

ट्रायल कोर्ट के आदेश में कोई कानूनी खामी न पाते हुए, हाई कोर्ट ने सभी अपीलें खारिज कर दीं और एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया। पीठ ने माना कि यह मामला उन दुर्लभ श्रेणियों में नहीं आता, जहां प्रारंभिक स्तर पर ही आपराधिक कार्यवाही रोकी जानी चाहिए।

बयानों की विश्वसनीयता, सुधार और विशेष धाराओं की लागूता से जुड़े सभी सवाल ट्रायल कोर्ट के लिए खुले छोड़े गए, जो कानून के अनुसार उनका निर्णय करेगा।

Case Title: SK Singh vs State of NCT of Delhi & Anr

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