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पटना हाई कोर्ट ने अररिया हत्या मामले में उम्रकैद की सजा पलटी, अवैध सबूतों पर निर्भरता को लेकर ट्रायल कोर्ट पर सवाल

Shivam Y.

विजय कुमार यादव उर्फ ​​विवेक कुमार उर्फ ​​गोलू बनाम बिहार राज्य, पटना हाई कोर्ट ने अररिया मर्डर केस में उम्रकैद की सज़ा को पलट दिया, और पुलिस के कबूलनामे और बिना सबूत वाले इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के कारण सज़ा को गैर-कानूनी ठहराया।

पटना हाई कोर्ट ने अररिया हत्या मामले में उम्रकैद की सजा पलटी, अवैध सबूतों पर निर्भरता को लेकर ट्रायल कोर्ट पर सवाल

पटना हाई कोर्ट ने अररिया जिले के करीब नौ साल पुराने हत्या मामले में दी गई उम्रकैद की सजा को रद्द कर दिया है। अदालत ने ट्रायल कोर्ट पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि दोषसिद्धि ऐसे सबूतों पर आधारित थी, जिन्हें कानून मान्यता नहीं देता। डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि सजा का आधार मुख्य रूप से पुलिस के सामने दिया गया कथित इकबालिया बयान और कमजोर जब्ती थी, जो कानूनी कसौटी पर खरी नहीं उतरती।

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पृष्ठभूमि

यह मामला दिसंबर 2016 का है, जब अररिया जिले के दिवारी फाटक पुल के पास एक अज्ञात व्यक्ति का शव बरामद हुआ था। बाद में उसकी पहचान नियाज अहमद के रूप में हुई। विजय कुमार यादव उर्फ विवेक कुमार उर्फ गोलू को गिरफ्तार कर हत्या और साक्ष्य मिटाने के आरोप में अभियुक्त बनाया गया।

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2018 में सत्र न्यायालय ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 201 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। आरोपी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। इस बीच, अपील पर विस्तृत सुनवाई तक वह सात साल से अधिक समय जेल में बिता चुका था।

न्यायालय की टिप्पणियां

अपील की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बिबेक चौधुरी और न्यायमूर्ति डॉ. अंशुमन की पीठ ने अभियोजन साक्ष्यों की बारीकी से जांच की। अदालत ने इस मामले को “अस्वीकार्य साक्ष्यों के आधार पर दी गई सजा का क्लासिक उदाहरण” बताया।

पीठ ने पाया कि जिन गवाहों को जब्ती का साक्षी बताया गया था, उन्होंने अभियोजन का साथ नहीं दिया। उन्होंने अदालत में साफ कहा कि वे आरोपी के घर से एटीएम कार्ड, मोबाइल फोन और दस्तावेजों की कथित बरामदगी के समय मौजूद ही नहीं थे। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने उन बरामदगियों पर भरोसा किया।

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सबसे गंभीर बात यह रही कि दोषसिद्धि का बड़ा आधार जांच अधिकारी के सामने दिया गया आरोपी का कथित इकबालिया बयान था। पीठ ने दोहराया कि कानून बिल्कुल स्पष्ट है-“पुलिस अधिकारी के सामने किया गया कोई भी इकबालिया बयान आरोपी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।” अदालत ने यह भी कहा कि केवल मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया गया बयान ही वैधानिक होता है।

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य भी अदालत की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। कॉल डिटेल रिकॉर्ड, एटीएम स्वाइप रसीद और सीसीटीवी फुटेज बिना आवश्यक प्रमाणपत्र के पेश किए गए थे। जिस ज्वेलरी शॉप में एटीएम से भुगतान किए जाने का दावा किया गया, उसके मालिक को गवाह तक नहीं बनाया गया। इसके अलावा, किसी भी स्वतंत्र गवाह ने आरोपी की पहचान नहीं की।

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निर्णय

अंततः हाई कोर्ट ने अभियोजन मामले को गंभीर खामियों और कानूनी उल्लंघनों से भरा पाया। अपील स्वीकार करते हुए अदालत ने 2018 की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया और आदेश दिया कि विजय कुमार यादव को तुरंत रिहा किया जाए, यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो। पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि इन “गंभीर गलतियों” के कारण आरोपी को सात साल से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा, जबकि उसके खिलाफ वैधानिक रूप से टिकाऊ सजा नहीं थी।

Case Title: Vijay Kumar Yadav @ Vivek Kumar @ Golu vs The State of Bihar

Case Type: Criminal Appeal (DB)

Case No.: Criminal Appeal (DB) No. 673 of 2018

Date of Judgment: 17 December 2025

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