कोर्टरूम नंबर 1 में माहौल गंभीर था। सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर उस पर्यावरणीय मामले पर सुनवाई कर रहा था, जिसने पिछले कुछ वर्षों से सबका ध्यान खींच रखा है - ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, यानी गोडावण, को विलुप्त होने से बचाने की लड़ाई। यह मामला शुरू से ही दो ध्रुवों के बीच फंसा रहा है: एक तरफ वन्यजीव संरक्षण, दूसरी तरफ भारत के तेज़ी से बढ़ते नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य। शुक्रवार को पीठ ने आखिरकार एक विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किया, जिसमें दोनों पक्षों को संतुलित रखने की कोशिश साफ दिखी।
पृष्ठभूमि
यह याचिकाएँ, जिनका नेतृत्व संरक्षणवादी एम.के. रंजीतसिंह कर रहे हैं, वर्ष 2019 में दायर की गई थीं। तब सामने आए आँकड़ों से पता चला था कि राजस्थान और गुजरात के रेगिस्तानी इलाकों में ओवरहेड बिजली लाइनों से टकराने के कारण ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की संख्या खतरनाक स्तर तक गिर चुकी है।
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अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सख़्त रुख अपनाते हुए लगभग 99,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों पर लगभग रोक लगा दी थी। लेकिन इस आदेश से ऊर्जा मंत्रालयों और नवीकरणीय ऊर्जा कंपनियों में चिंता फैल गई। उनका कहना था कि इससे देश के सबसे बड़े सोलर और विंड एनर्जी क्षेत्रों में परियोजनाएँ ठप हो जाएँगी।
मार्च 2024 तक अदालत ने भी यह महसूस किया कि पूरी तरह की रोक व्यावहारिक नहीं है। इसके बाद अदालत ने वैज्ञानिक आधार पर समाधान सुझाने के लिए एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि गोडावण अपने बड़े शरीर, सामने की कमजोर दृष्टि और धीमी प्रजनन प्रक्रिया के कारण बेहद संवेदनशील पक्षी है। अदालत ने टिप्पणी की, “एक वयस्क पक्षी की मृत्यु भी इस प्रजाति के अस्तित्व पर विनाशकारी असर डाल सकती है।”
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साथ ही, अदालत ने यह भी साफ किया कि संरक्षण के नाम पर तकनीकी और पर्यावरणीय वास्तविकताओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। पीठ ने माना कि सभी हाई-वोल्टेज लाइनों को ज़मीन के नीचे डालना न तो तकनीकी रूप से संभव है और न ही पर्यावरण की दृष्टि से पूरी तरह सुरक्षित।
एक अहम टिप्पणी में अदालत ने कहा कि यदि भारत समय रहते जीवाश्म ईंधन से दूरी नहीं बनाता, तो जलवायु परिवर्तन कई प्रजातियों को ही समाप्त कर सकता है। अदालत ने विशेषज्ञ समिति की इस राय को स्वीकार किया कि संरक्षण और स्वच्छ ऊर्जा को विरोधी नहीं, बल्कि साथ-साथ चलने वाले लक्ष्य के रूप में देखना चाहिए।
पीठ ने यह भी चेतावनी दी कि बिना विशेषज्ञों की सलाह के दिए गए “व्यापक और सामान्य आदेश” नुकसानदेह साबित हो सकते हैं।
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फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम निर्देशों में विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को लगभग पूरी तरह स्वीकार कर लिया। राजस्थान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का प्राथमिक संरक्षण क्षेत्र अब लगभग 14,013 वर्ग किलोमीटर होगा, जबकि गुजरात में यह संशोधित क्षेत्र 740 वर्ग किलोमीटर तय किया गया है।
इन संशोधित प्राथमिक क्षेत्रों में, लो-वोल्टेज लाइनों को छोड़कर, नई ओवरहेड बिजली लाइनें केवल तय किए गए पावर कॉरिडोर के माध्यम से ही बिछाई जा सकेंगी। कई मौजूदा 33 केवी और उससे अधिक क्षमता वाली लाइनों को समयबद्ध तरीके से भूमिगत या पुनः मार्गित करना अनिवार्य होगा, और सभी प्रमुख सुरक्षा उपाय 2028 से पहले पूरे करने होंगे।
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अदालत ने फिलहाल बर्ड फ्लाइट डाइवर्टर लगाने को अनिवार्य नहीं किया, यह कहते हुए कि उनकी प्रभावशीलता अभी वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं है और लागत भी काफी अधिक है। हालांकि, भविष्य में होने वाले अध्ययनों के आधार पर इस पर दोबारा विचार की गुंजाइश छोड़ी गई है। प्राथमिक आवास क्षेत्रों में तय क्षमता से अधिक की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं पर भी रोक लगाई जाएगी।
मामले का समापन करते हुए पीठ ने कंपनियों को कड़ा संदेश दिया। अदालत ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण कोई दान नहीं, बल्कि दायित्व है। गोडावण के इलाकों में काम कर रही कंपनियों को “गोडावण के घर में मेहमान” की तरह व्यवहार करना होगा और अपने बुनियादी ढांचे से होने वाले नुकसान की ज़िम्मेदारी उठानी होगी।
Case Title: M.K. Ranjitsinh & Others vs Union of India & Others
Case Type: Writ Petition (Civil) with Civil Appeal
Case No.: W.P. (C) No. 838 of 2019; C.A. No. 3570 of 2022 (with connected matters)
Date of Judgment: 19 December 2025









