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नकली 'भाटिया मसाले' मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत रद्द की, गंभीर जालसाजी धाराओं पर जताई चिंता

Shivam Y.

राजकुमार भाटिया बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, MP हाई कोर्ट ने नकली भाटिया मसाले केस में एंटीसिपेटरी बेल कैंसिल कर दी, सेशंस कोर्ट ने गंभीर जालसाजी के आरोपों के बावजूद अर्नेश कुमार को गलत तरीके से अप्लाई किया।

नकली 'भाटिया मसाले' मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत रद्द की, गंभीर जालसाजी धाराओं पर जताई चिंता

ग्वालियर स्थित मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को भाटिया मसाले ब्रांड के कथित दुरुपयोग से जुड़े एक चर्चित मामले में आरोपियों को दी गई तीन अग्रिम जमानतों को रद्द कर दिया। भरी अदालत में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति राजेश कुमार गुप्ता ने साफ कहा कि जब मामले में आजीवन कारावास तक की सजा वाली जालसाजी की धाराएं लगी हों, तब अदालतें हल्के में अग्रिम जमानत नहीं दे सकतीं।

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पृष्ठभूमि

यह मामला राजकुमार भाटिया की शिकायत से शुरू हुआ था, जिन्होंने आरोप लगाया कि बाजार में “भाटिया मसाले” के नाम से नकली पैकेट बेचे जा रहे हैं। इससे न केवल उपभोक्ताओं को गुमराह किया जा रहा है, बल्कि उनके ब्रांड की साख और प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा है।

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पुलिस जांच के दौरान नकली मसाले के पैकेट और असली पैकिंग की नकल करने में इस्तेमाल सामग्री बरामद की गई। शुरुआत में आरोपियों पर धोखाधड़ी और कॉपीराइट कानून के तहत मामला दर्ज हुआ, लेकिन चार्जशीट के अध्ययन के बाद जालसाजी और आपराधिक साजिश जैसी गंभीर धाराएं भी जोड़ दी गईं। इसके बावजूद विजयपुर की सत्र अदालत ने सितंबर 2024 में आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी थी, और सुप्रीम कोर्ट के अर्नेश कुमार फैसले का हवाला दिया था, जिसमें सात साल तक की सजा वाले मामलों में अनावश्यक गिरफ्तारी से बचने की बात कही गई है।

अदालत की टिप्पणियां

शिकायतकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र अदालत एक अहम तथ्य नजरअंदाज कर गई। अदालत ने कहा कि इस मामले में जो बढ़ी हुई धाराएं जोड़ी गई हैं, उनमें कुछ ऐसी हैं जिनमें सात साल से अधिक, यहां तक कि आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।

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पीठ ने टिप्पणी की, “निचली अदालत ने यह मानकर कार्यवाही की कि सभी अपराध अधिकतम सात वर्ष की सजा वाले हैं, जबकि यह तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।” कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि जेएमएफसी पहले ही चार्जशीट देखने के बाद गंभीर जालसाजी से जुड़ी धाराओं के प्रथम दृष्टया प्रमाण पाए जाने की बात कह चुका था।

न्यायमूर्ति गुप्ता ने जमानत रद्द करने से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी हवाला दिया और स्पष्ट किया कि जमानत को हल्के में रद्द नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन यदि जमानत गंभीर आरोपों की अनदेखी करके दी गई हो तो वह टिक नहीं सकती। अदालत ने यह भी कहा कि अर्नेश कुमार के दिशा-निर्देशों को बिना मामले की प्रकृति और बढ़ी हुई धाराओं को देखे लागू करना एक कानूनी गलती है।

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निर्णय

हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता की याचिका स्वीकार करते हुए 24, 27 और 30 सितंबर 2024 को पारित अग्रिम जमानत आदेशों को रद्द कर दिया। अदालत ने आरोपियों को निर्देश दिया है कि वे अब ट्रायल कोर्ट में नियमित जमानत के लिए आवेदन करें। ट्रायल कोर्ट को यह भी कहा गया है कि वह हाईकोर्ट की टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना, कानून के अनुसार और अपने स्तर पर मामले के गुण-दोष के आधार पर जमानत याचिकाओं पर फैसला करे।

Case Title: Rajkumar Bhatia vs The State of Madhya Pradesh & Others

Case Type: Miscellaneous Criminal Case (Anticipatory Bail Cancellation)

Case No.: MCRC No. 43273 of 2025

Date of Judgment: 17 December 2025

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