Logo
Court Book - India Code App - Play Store

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने चेक बाउंस समझौते के बाद जारी वारंट पर उठाए सवाल: ट्रायल कोर्ट को प्रक्रिया सुधारने का निर्देश

Vivek G.

सज्जाद अहमद मलिक बनाम गुलज़ार अहमद वानी, चेक बाउंस समझौते के बाद वारंट जारी करने पर जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की रोक, ट्रायल कोर्ट को सही कानूनी प्रक्रिया अपनाने का निर्देश।

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने चेक बाउंस समझौते के बाद जारी वारंट पर उठाए सवाल: ट्रायल कोर्ट को प्रक्रिया सुधारने का निर्देश
Join Telegram

श्रीनगर स्थित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में शुक्रवार को एक चेक बाउंस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने ट्रायल कोर्ट की कार्यप्रणाली पर साफ नाराज़गी जताई। मामला सुनते हुए न्यायमूर्ति संजय धर ने कहा कि समझौता होने के बावजूद आरोपी के खिलाफ वारंट जारी करना कानून के दायरे से बाहर है। अदालत का यह हस्तक्षेप उन मामलों के लिए अहम माना जा रहा है, जहां समझौते के बाद भी निचली अदालतें भुगतान की निगरानी करती रहती हैं।

Read in English

Background

यह विवाद गुलज़ार अहमद वानी द्वारा दायर एक शिकायत से जुड़ा है, जो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज की गई थी। शिकायत के अनुसार, साजद अहमद मलिक ने ₹17.18 लाख का चेक जारी किया था, जो बैंक से अनादरित हो गया।

Read also:- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभियुक्तों की रिवीजन याचिका खारिज की, कहा- धारा 156(3) CrPC के तहत FIR आदेश को इस स्तर पर चुनौती नहीं दी जा सकती

मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के बीच 15 अक्टूबर 2024 को समझौता हो गया। इस समझौते के तहत आरोपी ने अलग-अलग किश्तों में राशि चुकाने का वादा किया। 6 नवंबर 2024 को ट्रायल मजिस्ट्रेट ने दोनों पक्षों के बयान भी दर्ज कर लिए।

आमतौर पर, ऐसे मामलों में समझौता दर्ज होने के बाद शिकायत का निपटारा कर दिया जाता है। लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ।

Court’s Observations

हाईकोर्ट के समक्ष यह बात सामने आई कि ट्रायल मजिस्ट्रेट ने शिकायत को समाप्त करने के बजाय भुगतान की शर्तों की निगरानी शुरू कर दी। बाद में, शर्तों के पालन न होने पर आरोपी के खिलाफ वारंट भी जारी कर दिए गए।

Read also:- कलकत्ता हाईकोर्ट ने एमएसटीसी को सीडीए नियमों के तहत ग्रेच्युटी से नुकसान वसूली की अनुमति दी, एकल न्यायाधीश का आदेश पलटा

इस पर न्यायमूर्ति संजय धर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह तरीका कानून के अनुरूप नहीं है। अदालत ने टिप्पणी की, “समझौते के बाद ट्रायल कोर्ट का काम शिकायत का निपटारा करना होता है, न कि भुगतान की निगरानी करना।”

अदालत ने यह भी समझाया कि अगर समझौते की शर्तों का पालन नहीं होता है, तो शिकायतकर्ता के पास अलग रास्ता होता है। वह रकम की वसूली के लिए अलग से कार्यवाही शुरू कर सकता है। ट्रायल कोर्ट को खुद को वसूली अदालत की तरह नहीं देखना चाहिए।

न्यायालय के अनुसार, भुगतान न होने की स्थिति में कानून कुछ उपाय देता है, लेकिन उनका इस्तेमाल तभी हो सकता है जब मामला विधिवत तरीके से आगे बढ़े। “यहां अपनाई गई प्रक्रिया कानून के मुताबिक नहीं है,” पीठ ने कहा।

Read also:- उन्नाव रेप केस: दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सजा निलंबन पर CBI की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

Decision

इन परिस्थितियों को देखते हुए हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए ट्रायल मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह मामले में वही प्रक्रिया अपनाए जो कानून में निर्धारित है। अदालत ने स्पष्ट किया कि पहले शिकायत को समझौते के आधार पर समाप्त किया जाए और उसके बाद ही किसी अन्य कानूनी विकल्प पर विचार हो। आदेश की प्रति ट्रायल कोर्ट को भेजने के निर्देश भी दिए गए।

Case Title: Sajad Ahmad Malik vs Gulzar Ahmad Wani

Case Number: CRM(M) No. 826/2025 (with CrlM Nos. 2086/2025 & 2087/2025)

Case Type: Criminal Petition (Cheque Bounce / Section 138 Negotiable Instruments Act)

Decision Date: 26 December 2025

Recommended Posts