बेंगलुरु में डीजे हाली हिंसा मामले से जुड़े एक अहम फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने अभियुक्त अफ़ज़ल बाशा की ज़मानत अपील खारिज कर दी। अदालत ने साफ कहा कि मामले में प्रथम दृष्टया गंभीर सामग्री मौजूद है और मुकदमे में हुई देरी के लिए अभियुक्त स्वयं जिम्मेदार हैं। यह फैसला 2 दिसंबर 2025 को न्यायमूर्ति के.एस. मुदागल और न्यायमूर्ति वेंकटेश नाइक टी. की खंडपीठ ने सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 11 अगस्त 2020 की उस हिंसक घटना से जुड़ा है, जब बेंगलुरु के डीजे हाली पुलिस थाने पर भारी भीड़ ने हमला किया था। शुरुआत एक कथित आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट से हुई, जिसके बाद धार्मिक भावनाएं भड़क गईं। शिकायत दर्ज होने के बावजूद, कुछ ही घंटों में सैकड़ों लोग पुलिस थाने के बाहर इकट्ठा हो गए।
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आरोप है कि भीड़ ने पुलिस स्टेशन में घुसकर तोड़फोड़ की, सरकारी वाहनों में आग लगा दी और पुलिसकर्मियों पर हमला किया। हालात इतने बिगड़ गए कि पुलिस को लाठीचार्ज, आंसू गैस और अंततः फायरिंग करनी पड़ी। इस घटना में दो लोगों की मौत हुई और कई पुलिसकर्मी घायल हुए।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने मामले की जांच की और कुल 145 से अधिक लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। अफ़ज़ल बाशा इस मामले में अभियुक्त संख्या 5 हैं और उन पर UAPA सहित कई गंभीर धाराओं में आरोप लगाए गए हैं।
अफ़ज़ल बाशा की ओर से दलील दी गई कि-
- उनका नाम शुरुआती एफआईआर में नहीं था
- वे पिछले लगभग पाँच वर्षों से न्यायिक हिरासत में हैं, जबकि अब तक ट्रायल शुरू नहीं हुआ
- कई सह-आरोपियों को ज़मानत मिल चुकी है, इसलिए समानता (parity) के आधार पर उन्हें भी राहत मिलनी चाहिए
- उनकी मां गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं और उन पर आश्रित हैं
बचाव पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ पुराने फैसलों का भी हवाला दिया, जिनमें लंबी हिरासत को ज़मानत का आधार माना गया था।
अदालत की टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया। अदालत ने कहा कि-
“ज़मानत के स्तर पर अदालत को यह देखना होता है कि आरोप प्रथम दृष्टया सही प्रतीत होते हैं या नहीं।”
अदालत ने गवाहों के बयानों, कॉल डिटेल रिकॉर्ड और मोबाइल फोन से मिले डिजिटल साक्ष्यों का हवाला दिया। रिकॉर्ड के मुताबिक, घटना के समय अभियुक्त की लोकेशन डीजे हाली पुलिस स्टेशन के आसपास पाई गई और वे लगातार अन्य आरोपियों से संपर्क में थे।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एफआईआर कोई “एनसाइक्लोपीडिया” नहीं होती। अगर बाद की जांच में मजबूत सामग्री सामने आती है, तो सिर्फ एफआईआर में नाम न होना अभियुक्त के पक्ष में निर्णायक नहीं हो सकता।
पाँच साल की हिरासत के मुद्दे पर अदालत ने सख्त रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा कि-
“रिकॉर्ड से साफ है कि ट्रायल में देरी अभियोजन की वजह से नहीं, बल्कि अभियुक्तों की रणनीतिक अर्जियों के कारण हुई।”
अदालत ने विस्तार से बताया कि कैसे बार-बार अलग-अलग आरोपियों द्वारा ज़मानत, डिस्चार्ज, ट्रांसफर और अन्य याचिकाएं दायर की गईं, जिससे कार्यवाही आगे नहीं बढ़ पाई। ऐसे में अभियुक्त देरी का लाभ नहीं ले सकते।
सह-आरोपियों को मिली ज़मानत पर अदालत ने कहा कि जिन लोगों को राहत दी गई, वे UAPA की धाराओं के तहत आरोपी नहीं थे। इसलिए अफ़ज़ल बाशा उनके समान स्थिति में नहीं हैं।
मां की बीमारी के तर्क पर कोर्ट ने दस्तावेज़ों के आधार पर कहा कि वे अकेले आश्रित नहीं हैं और परिवार के अन्य सदस्य भी मौजूद हैं।
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अंतिम फैसला
सभी तथ्यों और दलीलों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराया। अदालत ने कहा कि—
- अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्टया गंभीर साक्ष्य हैं
- UAPA की धारा 43D(5) के तहत ज़मानत पर कानूनी रोक लागू होती है
- ट्रायल में देरी के लिए अभियुक्त स्वयं जिम्मेदार हैं
नतीजतन, अफ़ज़ल बाशा की ज़मानत अपील खारिज कर दी गई।
Case Title: Afzal Basha vs National Investigation Agency
Case No.: Criminal Appeal No. 1425/2025
Case Type: Criminal Appeal (Bail under UAPA)
Decision Date: 2 December 2025















