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दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रस्ट के सिविल मुकदमे का रास्ता साफ किया, तकनीकी आपत्तियों के आधार पर चोइथराम फाउंडेशन केस को शुरुआती स्तर पर खारिज करने से इनकार

Vivek G.

सतीश मोतियानी एवं अन्य बनाम टी. चोइथराम फाउंडेशन एवं अन्य, दिल्ली हाईकोर्ट ने चोइथराम फाउंडेशन ट्रस्ट के मुकदमे को आगे बढ़ने दिया, तकनीकी आपत्तियों और समय-सीमा के आधार पर खारिज करने से इनकार।

दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रस्ट के सिविल मुकदमे का रास्ता साफ किया, तकनीकी आपत्तियों के आधार पर चोइथराम फाउंडेशन केस को शुरुआती स्तर पर खारिज करने से इनकार
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शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट की अदालत में माहौल शांत लेकिन सतर्क था, जब एक चर्चित सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट के नियंत्रण को लेकर चल रहे विवाद पर सुनवाई पूरी हुई। सुनवाई के अंत में पीठ का संदेश काफी साफ था-तकनीकी आपत्तियों के सहारे मुकदमे को पूरी तरह सुने बिना बंद नहीं किया जा सकता, खासकर जब मामला ट्रस्ट की संपत्ति और उसके प्रबंधन से जुड़ा हो।

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दिल्ली हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने टी. चोइथराम फाउंडेशन के कथित ट्रस्टियों द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिससे ट्रस्ट द्वारा दायर सिविल मुकदमे के आगे बढ़ने का रास्ता साफ हो गया।

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पृष्ठभूमि

यह विवाद टी. चोइथराम फाउंडेशन से जुड़ा है, जो वर्ष 1971 में स्थापित एक सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट है। फाउंडेशन ने वर्ष 2021 में सिविल कोर्ट का रुख करते हुए आरोप लगाया था कि कई व्यक्तियों को वर्षों के दौरान ट्रस्टी के रूप में गलत तरीके से नियुक्त किया गया, जो ट्रस्ट डीड के प्रावधानों का उल्लंघन है।

ट्रस्ट का कहना था कि 1990 के दशक से की गई ये नियुक्तियां शुरू से ही अवैध थीं। मुकदमे में यह घोषणा मांगी गई थी कि प्रतिवादी वैध ट्रस्टी नहीं हैं और उन्हें ट्रस्ट के कार्यों में हस्तक्षेप से रोका जाए।

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इसके जवाब में प्रतिवादियों ने मुकदमे को शुरुआत में ही खारिज करने की मांग की। उनका तर्क दो हिस्सों में था। पहला, उन्होंने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 के तहत अदालत की पूर्व अनुमति के बिना यह मुकदमा चल ही नहीं सकता। दूसरा, उन्होंने दावा किया कि मामला समय-सीमा से बाहर है, क्योंकि ट्रस्ट को इन नियुक्तियों की जानकारी दशकों पहले ही थी।

अदालत की टिप्पणियां

सिंगल जज के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने दोनों पक्षों को याद दिलाया कि किसी वादपत्र को शुरुआती स्तर पर खारिज करना एक गंभीर कदम होता है। अदालत ने कहा कि “वादपत्र खारिज करने की शक्ति अत्यंत कठोर है”, क्योंकि इससे बिना सबूत और बिना ट्रायल के ही मुकदमे का अंत हो जाता है।

धारा 92 के मुद्दे पर पीठ अपीलकर्ताओं की दलीलों से सहमत नहीं दिखी। अदालत ने कहा कि यह मुकदमा किसी बाहरी व्यक्ति या लाभार्थियों द्वारा ट्रस्ट के प्रशासन पर नियंत्रण पाने के लिए नहीं दायर किया गया है। बल्कि यह स्वयं ट्रस्ट की ओर से दायर किया गया है, जिसमें आरोप है कि कुछ लोग बिना अधिकार के पदों पर काबिज हैं।

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पीठ ने टिप्पणी की कि ट्रस्ट की संपत्ति को कथित कब्जाधारियों से बचाने के लिए दायर मुकदमा अपने आप धारा 92 के दायरे में नहीं आ जाता। अदालत ने कहा, “धारा 92 ट्रस्ट के लिए एक ढाल है, न कि कथित गलत करने वालों के हाथ में हथियार।” अदालत ने यह भी जोड़ा कि यदि अनुमति की आवश्यकता मान भी ली जाए, तो उसका अभाव अधिक से अधिक एक सुधार योग्य त्रुटि है।

सीमा (लिमिटेशन) के सवाल पर अदालत ने कहा कि केवल तारीखें देखकर इस मुद्दे का फैसला नहीं किया जा सकता। ट्रस्ट ने “लगातार जारी गलत” (continuing wrong) का आरोप लगाया है, यानी हर दिन अवैध नियंत्रण बने रहने से नया कारण पैदा होता है। यह तय करना कि यह दावा सही है या नहीं, सबूतों के बिना संभव नहीं है। अदालत ने कहा कि यह तथ्य और कानून का मिला-जुला प्रश्न है, जिसे प्रारंभिक स्तर पर तय नहीं किया जा सकता।

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फैसला

अंततः डिवीजन बेंच ने सिंगल जज के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। अपील खारिज कर दी गई, विवादित आदेश बरकरार रखा गया और सिविल मुकदमे को कानून के अनुसार आगे बढ़ाने का निर्देश दिया गया। सभी लंबित अर्जियां भी बंद कर दी गईं, जिससे ट्रस्ट के आरोपों पर अब पूरा ट्रायल होने का रास्ता साफ हो गया।

Case Title: Satish Motiani & Ors vs T. Choithram Foundation & Ors

Case No.: FAO(OS) 150/2025 (with connected applications)

Case Type: Civil Appeal (against refusal to reject plaint)

Decision Date: 20 December 2025

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