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चेक बाउंस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला: आपराधिक मुकदमे को रोकने के लिए सिर्फ पूर्व डायरेक्टर का इस्तीफा देना काफी नहीं है।

Vivek G.

दिनेश कुमार पांडे बनाम मैसर्स सिंह फिनलीज़ प्राइवेट लिमिटेड और अन्य। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि निदेशक का इस्तीफा चेक बाउंस केस खत्म करने का आधार नहीं, ट्रायल में तय होंगे विवादित तथ्य।

चेक बाउंस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला: आपराधिक मुकदमे को रोकने के लिए सिर्फ पूर्व डायरेक्टर का इस्तीफा देना काफी नहीं है।
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दिल्ली हाई कोर्ट में बुधवार को सुनवाई के दौरान माहौल गंभीर था। एक तरफ याचिकाकर्ता का तर्क था कि वह अब कंपनी का निदेशक नहीं है, दूसरी ओर अदालत बार-बार यही देख रही थी कि कानून इतनी आसानी से रास्ता नहीं देता। जस्टिस Sanjeev Narula ने साफ संकेत दिए कि चेक बाउंस जैसे मामलों में जिम्मेदारी केवल कागज़ी इस्तीफे से खत्म नहीं हो जाती।

Read in English

अदालत ने पूर्व निदेशक दिनेश कुमार पांडे की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले इस स्तर पर रद्द नहीं किए जा सकते।

Background

मामला एक नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी, एम/एस सिंह फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड, द्वारा दिए गए कर्ज से जुड़ा है। कंपनी ने दो निजी कंपनियों-साउथ सेंटर ऑफ एकेडमी प्राइवेट लिमिटेड और सम्पूर्ण एकेडमी प्राइवेट लिमिटेड-को करोड़ों रुपये का ऋण दिया था।

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रिकॉर्ड के मुताबिक, कर्ज की किश्तों के भुगतान के लिए जारी किए गए कई चेक मार्च 2024 में “फंड्स इंसफिशिएंट” यानी खाते में पर्याप्त रकम न होने के कारण बाउंस हो गए। इसके बाद कानूनी नोटिस भेजे गए, लेकिन तय समय में भुगतान नहीं हुआ।

दिनेश कुमार पांडे इन कंपनियों के निदेशक रह चुके थे और वही संबंधित चेकों पर हस्ताक्षरकर्ता भी थे। उनका दावा था कि चेक बाउंस होने से पहले ही उन्होंने निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था और इसका उल्लेख एमसीए पोर्टल पर दर्ज है। इसी आधार पर उन्होंने हाई कोर्ट से आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की।

Court’s Observations

सुनवाई के दौरान अदालत ने यह स्पष्ट किया कि चेक बाउंस का अपराध एक ही दिन में पूरा नहीं होता। “यह कई चरणों वाली प्रक्रिया है-चेक जारी करना, उसका बैंक में प्रस्तुत होना, बाउंस होना, नोटिस भेजना और फिर भुगतान न होना,” पीठ ने टिप्पणी की।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल निदेशक ही नहीं थे, बल्कि चेक पर हस्ताक्षरकर्ता भी थे। इस स्थिति में कानून उनके खिलाफ जिम्मेदारी का अनुमान मानकर चलता है। “सिर्फ यह कहना कि मैंने इस्तीफा दे दिया था, अपने-आप में निर्णायक सबूत नहीं है,” पीठ ने मौखिक रूप से संकेत दिया।

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि इस्तीफे का समय और उसकी वास्तविकता खुद विवादित है। शिकायतकर्ता का आरोप है कि खातों में डिफॉल्ट शुरू होने के बाद इस्तीफा दिया गया, ताकि बाद में जिम्मेदारी से बचा जा सके। ऐसे तथ्य, अदालत के अनुसार, ट्रायल में साक्ष्यों के आधार पर ही तय हो सकते हैं।

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Decision

अंततः दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि इस स्तर पर मामले को रद्द करना उचित नहीं होगा। अदालत ने कहा कि शिकायतों में चेक बाउंस से जुड़े सभी जरूरी तत्व मौजूद हैं और याचिकाकर्ता के बचाव तर्क तथ्यों की जांच मांगते हैं।

इन कारणों से कोर्ट ने सभी याचिकाएं खारिज कर दीं और स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए स्वतंत्र होंगे।

Case Title: Dinesh Kumar Pandey vs M/s Singh Finlease Pvt. Ltd. & Anr.

Case No.: CRL.M.C. 8175/2025, 8176/2025, 8177/2025 & 8178/2025 (with connected applications)

Case Type: Criminal Miscellaneous Petitions (Cheque Dishonour – Section 138 NI Act)

Decision Date: 24 December 2025 (pronounced); uploaded on 25 December 2025

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