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सेना अधिकारी हत्या मामले को दोबारा खोलने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, अभियोजन कहानी अविश्वसनीय पाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का बरी करने का फैसला बरकरार

Shivam Y.

राज पाल सिंह बनाम राजवीर और अन्य, सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के सेना अधिकारी हत्या मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की बरी को बरकरार रखा, साक्ष्यों में विरोधाभास और कमजोर अभियोजन का हवाला दिया।

सेना अधिकारी हत्या मामले को दोबारा खोलने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, अभियोजन कहानी अविश्वसनीय पाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का बरी करने का फैसला बरकरार

सोमवार को आपराधिक अपीलीय अदालत में बैठी सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने लगभग तीन दशक पुराने एक हत्या मामले पर चुपचाप विराम लगा दिया। यह मामला एक भारतीय सेना अधिकारी और पारिवारिक भूमि विवाद से जुड़ा था। अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया, जिसमें तीन आरोपियों को बरी किया गया था, यह कहते हुए कि अभियोजन की कहानी विश्वसनीयता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती।

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पृष्ठभूमि

यह अपील राज पाल सिंह ने दायर की थी, जो जून 1996 में गाजियाबाद में मारे गए कैप्टन प्रवीण कुमार के पिता हैं। इस मामले की जड़ें परिवार के भीतर लंबे समय से चले आ रहे संपत्ति विवाद में थीं। अभियोजन के अनुसार, विवाद सुलझाने के लिए गांव में पंचायत बुलाई गई, जहां बहस तेज हो गई और अगले ही दिन घटनाएं हिंसा में बदल गईं।

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शुरुआत में ट्रायल कोर्ट ने राजवीर, धरम पाल और सुधीर को हत्या का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। लेकिन 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया और साक्ष्यों में खामियां, विरोधाभास और घटनाक्रम को अविश्वसनीय बताते हुए तीनों को बरी कर दिया। इस बरी किए जाने से आहत मृतक के पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

अदालत की टिप्पणियां

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गहराई से विचार किया कि क्या हाईकोर्ट ने आरोपियों को बरी करते समय कोई गंभीर गलती की थी। न्यायाधीशों ने पाया कि अभियोजन की कहानी के कई अहम पहलू संदेह पैदा करते हैं।

पीठ ने टिप्पणी की कि एक सेवारत सेना अधिकारी को तीन लोगों द्वारा एक संकरी सीढ़ी पर जबरन घसीटने का दावा, जिनमें से एक 65 वर्ष का कैंसर रोगी था, “विश्वास पैदा नहीं करता।” हथियार किसके पास थे और कब थे, इसको लेकर भी बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते। खास बात यह रही कि जिस लाइसेंसी बंदूक से गोली चलने का आरोप था, उसे कभी बैलिस्टिक जांच के लिए भेजा ही नहीं गया, ताकि यह साबित हो सके कि वही गोली जानलेवा चोट का कारण बनी।

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आपराधिक कानून के स्थापित सिद्धांतों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि दोषसिद्धि के लिए संदेह से परे प्रमाण जरूरी है। अदालत ने पुराने फैसलों को उद्धृत करते हुए याद दिलाया कि “हो सकता है” और “जरूर साबित होना चाहिए” के बीच का अंतर बहुत बड़ा होता है।

न्यायाधीशों ने यह भी रेखांकित किया कि एक बार आरोपी के बरी हो जाने के बाद उसकी निर्दोषता की धारणा और मजबूत हो जाती है, और अपीलीय अदालत को केवल ठोस और मजबूर करने वाले कारणों पर ही हस्तक्षेप करना चाहिए।

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निर्णय

अंततः सुप्रीम कोर्ट को ऐसा कोई ठोस कारण नहीं दिखा। हाईकोर्ट द्वारा साक्ष्यों के आधार पर अपनाए गए “संभावित दृष्टिकोण” को स्वीकार करते हुए पीठ ने अपील खारिज कर दी और तीनों आरोपियों की बरी को बरकरार रखा। इसके साथ ही यह लंबा चला आ रहा मामला कानूनी रूप से समाप्त हो गया, और अदालत ने आदेश दिया कि आगे कोई कार्यवाही शेष नहीं रहेगी।

Case Title: Raj Pal Singh v. Rajveer & Others

Case No.: Criminal Appeal No. 809 of 2014

Case Type: Criminal Appeal (Challenge to Acquittal in Murder Case)

Decision Date: 16 December 2025

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