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गुजरात हाई कोर्ट ने 4वें काउंसलिंग राउंड के दौरान प्रक्रिया संबंधी गलती के बाद मेधावी MBBS छात्रा का एडमिशन बचाने के लिए हस्तक्षेप किया

Shivam Y.

पटेल स्तुति वैशालकुमार बनाम भारत संघ और अन्य, गुजरात हाई कोर्ट ने चौथे राउंड की काउंसलिंग के दौरान हुई प्रोसेस में चूक के बाद MBBS स्टूडेंट की सीट बचाई, उसका एडमिशन रेगुलर कर दिया और थोड़ी सी पेनल्टी लगाई।

गुजरात हाई कोर्ट ने 4वें काउंसलिंग राउंड के दौरान प्रक्रिया संबंधी गलती के बाद मेधावी MBBS छात्रा का एडमिशन बचाने के लिए हस्तक्षेप किया

गुजरात हाई कोर्ट में शुक्रवार की सुबह की सुनवाई काफी तनावपूर्ण रही, जब जस्टिस निरज़र एस. देसाई ने एक 18 वर्षीय मेडिकल अभ्यर्थी के भविष्य को बचाने के लिए तुरंत हस्तक्षेप किया। एक छोटी-सी प्रक्रिया संबंधी चूक के कारण उसका MBBS एडमिशन रद्द होने की कगार पर था, जबकि उसी समय 4वीं राउंड की काउंसलिंग चल रही थी। कोर्टरूम का माहौल लगातार गंभीर बना हुआ था।

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पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, स्तुति पटेल, पहले से ही नरेंद्र मोदी मेडिकल कॉलेज में कुछ दिनों तक पढ़ चुकी थीं, क्योंकि उन्होंने N.D. देसाई मेडिकल कॉलेज, नडियाद से अपना विकल्प अपग्रेड कर लिया था। उन्होंने फीस का अंतर भी भर दिया था, कॉलेज के व्हाट्सऐप ग्रुप में शामिल हो गई थीं, यहां तक कि उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर भी कर दिए थे।

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लेकिन एक प्रक्रिया-पिछले राउंड के प्रोविजनल एडमिशन ऑर्डर को हेल्पडेस्क पर जमा करना-छूट गई। इसी वजह से उनकी सीट को सिस्टम में “नॉट रिपोर्टेड” दिखा दिया गया और चल रहे स्ट्रे राउंड में वह सीट किसी और को दिए जाने का खतरा खड़ा हो गया।

उनके वकील ने दलील दी कि यह गलती कॉलेज स्टाफ द्वारा गलत सलाह मिलने के कारण हुई, जबकि एडमिशन कमेटी का कहना था कि पूरी गलती छात्रा की लापरवाही थी और नियम किसी के लिए नहीं तोड़े जा सकते।

कोर्ट की टिप्पणियाँ

जस्टिस देसाई ने काफी व्यावहारिक और मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि एक “छोटी लेकिन भारी गलती” के कारण एक मेधावी छात्रा का करियर नष्ट नहीं होना चाहिए।

बेंच ने नोट किया कि:

  • छात्रा के खिलाफ किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या धोखाधड़ी का आरोप नहीं है।
  • उन्होंने अपग्रेडेशन के बाद ₹1.63 लाख की फीस भी जमा की थी।
  • केवल एक दस्तावेज जमा न करने की चूक थी, जो हेल्पडेस्क पर “कुछ ही मिनटों” में पूरी हो सकती थी।

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सुनवाई के दौरान जज ने यह भी कहा, “कभी-कभी एक बहुत होनहार छात्र भी प्रशासनिक कदमों पर ध्यान नहीं देता। क्या इससे उसका भविष्य खत्म हो जाना चाहिए?”

एडिशनल एडवोकेट जनरल ने नियमों को समान रूप से लागू करने की दलील दी, लेकिन जज ने स्पष्ट किया कि नियमों की कठोरता मेधावी छात्रा को हटा कर किसी कम रैंक वाले छात्र को सीट देने का कारण नहीं बननी चाहिए।

एक दिलचस्प मोड़ पर कोर्ट ने पूछा कि क्या छात्रा MBBS पूर्ण करने के बाद छह महीने अतिरिक्त ग्रामीण सेवा देने को तैयार है। वकील ने तुरंत सहमति दी और छात्रा-जो कोर्ट में मौजूद थी-ने कहा कि वह दिन के अंत तक यह हलफनामा दे देगी।

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निर्णय

हाई कोर्ट ने अंततः छात्रा का MBBS एडमिशन नियमित कर दिया और निर्देश दिया कि जिस सीट पर वह पहले से पढ़ रही थी, उसे ही 4वें राउंड में उसे आवंटित किया जाए।

जस्टिस देसाई ने उस पर ₹5,000 का सांकेतिक जुर्माना भी लगाया, जो गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को दिया जाएगा। साथ ही निर्देश दिया कि वह सभी लंबित दस्तावेजी प्रक्रियाएँ “दिन के दौरान ही, तुरंत” पूरी करे।

इसके साथ ही अदालत ने याचिका को पूरी तरह स्वीकार करते हुए छात्रा के मेडिकल करियर को सुरक्षित कर दिया।

Case Title: Patel Stuti Vaishalkumar vs. Union of India & Others (Gujarat High Court, 17 Nov 2025)

Case Type: Special Civil Application No. 15274/2025

Court: Gujarat High Court, Ahmedabad

Judge: Justice Nirzar S. Desai

Petitioner: Stuti Patel, 18-year-old NEET-qualified MBBS aspirant

Respondents: Union of India, ACPUGMEC, concerned medical colleges

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