इस सप्ताह भरी अदालत में सुप्रीम कोर्ट ने शिवकला चार्म्स आवास परियोजना से जुड़े एक लंबे समय से अटके विवाद में हस्तक्षेप किया। लगभग बीस साल पहले इस परियोजना में पैसा लगाने वाले कई खरीदार आज भी न तो मकान पा सके हैं और न ही पैसा वापस। परियोजना, जिसमें धोखाधड़ी और अधूरी निर्माण की शिकायतें जुड़ी हैं, वर्षों से प्रशासनिक उलझनों में फंसी रही। अदालत ने महसूस किया कि केवल मुकदमेबाज़ी से समाधान संभव नहीं, इसलिए उसने एक अधिक सक्रिय कदम उठाया।
पृष्ठभूमि
विवाद 2004 से शुरू होता है, जब एक सहकारी आवास समिति को ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (GNIDA) से चार टावरों वाली आवासीय परियोजना के लिए भूमि आवंटित की गई। आवास खरीददारों ने समझौते किए, बैंक ऋण लिया और भुगतान किया। लेकिन बाद में पाया गया कि धन का दुरुपयोग हुआ, कई फर्जी और दोहरी बुकिंग की गईं। 2011 में GNIDA ने बकाया रकम के कारण भूमि की लीज़ रद्द कर दी, जिसके बाद निर्माण पूरी तरह ठप हो गया।
कई शिकायतें दर्ज हुईं, आर्थिक अपराध शाखा की जांचें चलीं, और सहकारी अधिकारियों द्वारा पूछताछ शुरू हुई। समय के साथ खरीदारों ने अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया। अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, जहाँ कई लोग स्वयं को वास्तविक आवंटी बताते हुए हस्तक्षेप याचिकाएं लेकर आए।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ ने पाया कि मामला अत्यधिक जटिल हो चुका है। वास्तविक आवंटियों की पहचान, रद्द की गई भूमि लीज़ का आंशिक पुनर्स्थापन, बकाया भूमि शुल्क का विभाजन, और अधूरे टावरों की संरचनात्मक सुरक्षा-ये सभी मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं। अदालत ने माना कि केवल तर्क-वितर्क से यह विवाद अनिश्चितकाल तक खिंचता रहेगा।
पीठ ने टिप्पणी की: “मूल आवंटी लगभग 20 साल से संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने पैसा, समय और मानसिक शांति सब खो दी। अब ज़रूरत है समन्वित प्रशासनिक समाधान की।”
GNIDA के असहयोगपूर्ण रवैये पर भी अदालत ने नाराज़गी जताई।
फ़ैसला
स्थिति को सुलझाने के लिए अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस पंकज नक़वी की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र समिति गठित की है।
समिति के मुख्य कार्य:
- भुगतान दस्तावेज़ों की जांच कर वास्तविक आवंटियों की सूची बनाना।
- यह पता लगाना कि कौन आवंटी परियोजना को मिलकर पूरा करने को तैयार हैं।
- GNIDA से बातचीत कर आंशिक लीज़ पुनर्स्थापन के विकल्प तलाशना।
- भूमि बकाया का न्यायसंगत लागत-वितरण फ़ॉर्मूला तैयार करना।
- सभी हितधारकों के साथ मिलकर टाइम-लाइन आधारित निर्माण योजना बनाना।
- यदि कुछ टावरों में वास्तविक आवंटी उपलब्ध न हों, तो उन टावरों को पारदर्शी बोली प्रक्रिया के माध्यम से नीलाम करने की संभावना पर विचार करना, ताकि निर्माण पूरा हो सके और बकाया चुकाया जा सके।
अदालत ने निर्देश दिया कि सभी संबंधित प्राधिकरण एवं बैंक समिति के साथ पूर्ण सहयोग करेंगे। जांच खर्च का आधा भाग आवंटी और आधा भाग उत्तर प्रदेश सरकार वहन करेगी।
समिति अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद मामला फिर सूचीबद्ध होगा।
आदेश का उद्देश्य स्पष्ट है-खरीदारों को वह मकान दिलाना, जिसके लिए उन्होंने सालों पहले भुगतान किया था।
Case Title: Ravi Prakash Srivastava & Others vs State of Uttar Pradesh & Others (Shivkala Charms Housing Project Dispute)
Case Type: Special Leave Petitions (Civil)
Court: Supreme Court of India
Bench: Justice Vikram Nath & Justice Sandeep Mehta
SLP Numbers: SLP (C) No. 9792 of 2017 & SLP (C) No. 15548 of 2017
Date of Judgment: 7 November 2025










