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बढ़ते वायु प्रदूषण पर राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, बच्चों पर गंभीर प्रभाव

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट में वायु प्रदूषण को राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई। बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव का मुद्दा सामने।

बढ़ते वायु प्रदूषण पर राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, बच्चों पर गंभीर प्रभाव
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बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) ने पूरे भारत में बिगड़ती वायु गुणवत्ता पर तत्काल ध्यान खींचा, जिसे याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट जैसा बताया। कोर्ट कक्ष में वातावरण गंभीर था। पीठ ने यह भी कहा कि इस मुद्दे को “अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता,” खासकर तब, जब बच्चों का स्वास्थ्य दांव पर हो।

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पृष्ठभूमि

यह याचिका फिट इंडिया मूवमेंट से जुड़े वेलनेस अधिवक्ता ल्यूक क्रिस्टोफर काउंटिन्हो द्वारा दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े ढांचे के बावजूद, कई शहरों और यहां तक कि ग्रामीण इलाकों में भी वास्तविक वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है।

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याचिका में अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया है कि सिर्फ दिल्ली में ही 22 लाख स्कूली बच्चों के फेफड़ों को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंच चुकी है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह स्थिति नीति निर्माण और क्रियान्वयन की असफलता का स्पष्ट संकेत है। याचिका में यह भी बताया गया है कि स्वीकार्य वार्षिक सीमा PM2.5 के लिए 40 μg/m³ है, लेकिन दिल्ली में वास्तविक स्तर 100 μg/m³ से अधिक दर्ज हो रहा है।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान, पीठ ने याचिका में बताए गए स्वास्थ्य प्रभावों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। एक न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “यदि हवा ही विषैला हो, तो संविधान में दी गई अन्य अधिकारों का क्या अर्थ रह जाता है?”

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) जैसी योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन प्रगति असमान और सीमित रही है। NCAP के तहत निगरानी किए गए 130 शहरों में से केवल 25 शहरों में ही कोई उल्लेखनीय सुधार हुआ है। कई शहरों में 2017 के आधार वर्ष से प्रदूषण स्तर और भी खराब हुए हैं।

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याचिका में यह भी बताया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदूषण का ठीक से आकलन ही नहीं किया जाता, जिससे नीतियां मुख्यतः शहरी क्षेत्रों पर केंद्रित रहती हैं।

याचिकाकर्ता ने कहा कि वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक धुआं, पराली जलाना और निर्माण धूल जैसे स्रोतों पर पर्याप्त नियंत्रण नहीं है। पीठ विशेष रूप से इस बात पर चिंतित दिखी कि भारत स्टेज-VI वाहनों के वास्तविक परीक्षण में उत्सर्जन अनुमति सीमा से कई गुना अधिक पाया गया, फिर भी प्रवर्तन कार्रवाई न्यूनतम रही।

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निर्णय

सभी पक्षों को सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की विस्तृत जांच करने पर सहमति व्यक्त की और केंद्र सरकार तथा संबंधित पर्यावरण प्राधिकरणों से जवाब मांगा। पीठ ने कहा कि प्रदूषण के सवाल पर “अनंतकाल तक प्रतीक्षा नहीं की जा सकती,” और यह मामला प्राथमिकता के आधार पर सुना जाएगा।

अब यह मामला अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें अदालत सरकारी जवाबों पर आगे की कार्रवाई पर विचार करेगी।

Case Title: Luke Christopher Countinho v. Union of India & Others

Court: Supreme Court of India

Case Type: Public Interest Litigation (PIL)

Relief Sought: Declaration of National Public Health Emergency due to rising air pollution

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