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दिल्ली हाईकोर्ट: सिविल डिफेंस वॉलंटियर्स की बिना सुनवाई बर्खास्तगी असंवैधानिक, कोर्ट की सख्त टिप्पणी

Vivek G.

दीपक कुमार बनाम डायरेक्टरेट ऑफ सिविल डिफेंस और अन्य; फारूक खान बनाम डायरेक्टरेट ऑफ सिविल डिफेंस और अन्य। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सिविल डिफेंस वॉलंटियर्स को बिना कारण और सुनवाई के हटाना असंवैधानिक है, न्यायिक समीक्षा पर रोक अस्वीकार्य।

दिल्ली हाईकोर्ट: सिविल डिफेंस वॉलंटियर्स की बिना सुनवाई बर्खास्तगी असंवैधानिक, कोर्ट की सख्त टिप्पणी
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कोविड-19 के कठिन दौर में तैनात सिविल डिफेंस वॉलंटियर्स की भूमिका अहम रही, लेकिन उसी दौर में बिना कारण बताए हटाए गए दो वॉलंटियर्स को अब दिल्ली हाईकोर्ट से राहत मिली है। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि सिर्फ “डिसमिसल सिंप्लिसिटर” कह देने से कोई आदेश न्यायसंगत नहीं हो जाता।

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अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कानून के नाम पर अदालतों के दरवाजे पूरी तरह बंद नहीं किए जा सकते।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला दो याचिकाओं से जुड़ा है - दीपक कुमार और फारूक खान, जो दिल्ली सरकार के सिविल डिफेंस विभाग में वॉलंटियर के तौर पर तैनात थे। दोनों को वर्ष 2020 में कोविड ड्यूटी के दौरान सेवा से हटा दिया गया।

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बर्खास्तगी का आदेश सिविल डिफेंस एक्ट, 1968 की धारा 6(2) के तहत जारी किया गया, जिसमें अधिकारियों को यह अधिकार है कि वे किसी वॉलंटियर को “अवांछनीय” मानते हुए बिना कारण बताए हटा सकें।

दोनों याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि:

  • उन्हें कोई कारण नहीं बताया गया
  • न ही सुनवाई का मौका दिया गया
  • और अपील भी बिना ठोस वजह के खारिज कर दी गई

इसके साथ ही उन्होंने एक्ट की धारा 14(1) को भी चुनौती दी, जो अदालत में ऐसे आदेशों को चुनौती देने पर रोक लगाती है।

अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने बर्खास्तगी आदेशों की गहराई से जांच की।

अदालत ने कहा कि भले ही आदेश में कारण न लिखे गए हों, लेकिन परिस्थितियाँ खुद बता रही हैं कि बर्खास्तगी का आधार आरोप थे।

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पीठ ने टिप्पणी की,

“यदि किसी वॉलंटियर को कथित कदाचार या आरोपों के आधार पर हटाया गया है, तो उसे साधारण बर्खास्तगी नहीं कहा जा सकता।”

दीपक कुमार के मामले में सरकार ने खुद स्वीकार किया कि उन्हें कोविड ड्यूटी जॉइन न करने के कारण हटाया गया। वहीं फारूक खान के मामले में बाद में एनजीओ से जुड़े एक एफआईआर का हवाला दिया गया, जबकि याचिकाकर्ता का नाम एफआईआर में था ही नहीं।

अदालत ने साफ कहा कि:

  • ऐसे मामलों में धारा 6(1) लागू होती है
  • जिसमें जांच और सुनवाई अनिवार्य है
  • और धारा 6(2) का सहारा लेकर प्रक्रिया से बचा नहीं जा सकता

अदालत ने सिविल डिफेंस एक्ट की धारा 14(1) पर भी गंभीर सवाल उठाए। इस धारा के तहत किसी भी अदालत में चुनौती देने पर रोक है।

पीठ ने कहा,

“न्यायिक समीक्षा संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। कोई भी कानून अदालतों के अधिकार को पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकता।”

अदालत ने स्पष्ट किया कि संवैधानिक अदालतों के अधिकारों को कानून के जरिए खत्म नहीं किया जा सकता, खासकर जब मामला प्राकृतिक न्याय और मौलिक अधिकारों से जुड़ा हो।

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अदालत का अंतिम फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि:

  • दोनों याचिकाकर्ताओं की बर्खास्तगी वास्तव में दंडात्मक (stigmatic) थी
  • बिना सुनवाई आदेश देना प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है
  • धारा 6(2) का उपयोग जांच से बचने के लिए नहीं किया जा सकता
  • धारा 14(1) अदालतों के अधिकार को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकती

इन कारणों से अदालत ने बर्खास्तगी और अपीलीय आदेशों को रद्द कर दिया

Case Title: Deepak Kumar v. Directorate of Civil Defence & Anr.; Faruk Khan v. Directorate of Civil Defence & Anr.

Case Numbers: W.P.(C) 4233/2022 and W.P.(C) 16081/2023

Case Type: Writ Petition (Constitutional Challenge)

Decision Date: 09 December 2025

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