जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटियों की शक्तियों को लेकर एक स्पष्ट कानूनी रेखा खींचते हुए श्रीनगर के एक निजी स्कूल के खिलाफ पारित आदेश को रद्द कर दिया है। श्रीनगर में बैठते हुए न्यायमूर्ति संजय धर ने साफ कहा कि केवल सहानुभूति के आधार पर वैधानिक अधिकारों का विस्तार नहीं किया जा सकता। कानून की अपनी सीमाएँ हैं, अदालत ने यह बात दो टूक कही।
पृष्ठभूमि
यह मामला एक छह वर्षीय बच्ची के पिता द्वारा दायर शिकायत से शुरू हुआ, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी बेटी को ओएसिस गर्ल्स स्कूल, गोगजी बाग से अवैध रूप से निष्कासित कर दिया गया। पिता का कहना था कि स्कूल की कुछ फीस और अन्य शुल्कों पर सवाल उठाने के बाद यह कार्रवाई की गई। यह शिकायत जिला समाज कल्याण अधिकारी और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग सहित कई माध्यमों से होते हुए चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी), श्रीनगर तक पहुँची।
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मामले का संज्ञान लेते हुए सीडब्ल्यूसी ने एक जांच की और यह निष्कर्ष निकाला कि बच्ची को गैरकानूनी तरीके से स्कूल से निकाला गया और उसके साथ उसके अभिभावक की गतिविधियों के कारण भेदभाव किया गया। इसके बाद कमेटी ने शिक्षा अधिकारियों को यह सिफारिश की कि स्कूल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए और बच्ची को किसी अन्य नजदीकी गर्ल्स स्कूल में दाखिला दिलाया जाए।
स्कूल ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी और तर्क दिया कि सीडब्ल्यूसी को इस तरह की शिकायत सुनने और उस पर आदेश पारित करने का कोई अधिकार ही नहीं था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
स्कूल की ओर से दलीलें सुनने के बाद अदालत ने किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों की विस्तार से समीक्षा की। न्यायमूर्ति धर ने कहा कि चाइल्ड वेलफेयर कमेटियों का दायरा केवल “देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों” तक सीमित है, जिसकी परिभाषा कानून में स्पष्ट रूप से दी गई है।
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पीठ ने टिप्पणी की, “प्रतिवादी बच्ची अधिनियम में परिकल्पित किसी भी श्रेणी में नहीं आती,” और यह भी रेखांकित किया कि बच्ची का पिता न केवल उसकी देखभाल कर रहा है, बल्कि विभिन्न मंचों पर उसके अधिकारों के लिए सक्रिय रूप से प्रयास भी कर रहा है। न तो बच्ची परित्यक्त है, न ही उपेक्षित, और न ही वह उस तरह की असुरक्षा या शोषण की स्थिति में है, जिसके लिए यह कानून बनाया गया है।
अदालत ने सीडब्ल्यूसी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर किए गए भरोसे को भी खारिज कर दिया, जो अनाथालयों में बच्चों के यौन शोषण से संबंधित था। न्यायमूर्ति धर ने स्पष्ट किया कि उस फैसले को हर उस मामले पर लागू नहीं किया जा सकता, जिसमें कोई बच्चा शामिल हो। ऐसा करना, अदालत के शब्दों में, कानून को “तानाशाही सीमाओं” तक ले जाने जैसा होगा।
अदालत ने यह भी साफ किया कि सीडब्ल्यूसी को किसी भी संस्थान के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने का अधिकार नहीं है। उसका काम केवल उन बच्चों की देखभाल, संरक्षण और पुनर्वास तक सीमित है, जो वास्तव में कानून के तहत आते हैं।
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निर्णय
यह कहते हुए कि चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने “अपने आप को ऐसे अधिकार सौंप लिए जो कानून ने उसे नहीं दिए,” हाईकोर्ट ने स्कूल की याचिका स्वीकार कर ली और 2 मई 2024 को पारित विवादित आदेश को रद्द कर दिया। इसके साथ ही स्कूल के खिलाफ की गई सभी सिफारिशें निरस्त हो गईं।
Case Title: Oasis Girls School, Gogji Bagh vs. MS XXX (Minor)
Case No.: Crl R No. 17/2024
Case Type: Criminal Revision Petition
Decision Date: 19 December 2025














