सुप्रीम कोर्ट की कोर्ट नंबर में इस मामले की सुनवाई के दौरान एक सवाल बार-बार सामने आता रहा-अगर इंसाफ की मांग ही बहुत देर से आए, तो राहत कितनी दी जाए?
उत्तर प्रदेश सरकार और एक पूर्व कर्मचारी के बीच चला आ रहा यह विवाद कागजों में पुराना था, लेकिन बहस काफी ताज़ा और तीखी रही।
अदालत में मौजूद वकीलों की दलीलों से साफ था कि मामला सिर्फ नौकरी से हटाए जाने का नहीं, बल्कि समय का भी है। और यही समय अंत में फैसले की दिशा तय करता दिखा।
Background
मामला कृष्ण मुरारी शर्मा से जुड़ा है, जिनकी सेवाएं वर्ष 1990 में समाप्त हो गई थीं। इसके करीब 15–16 साल बाद उन्होंने श्रम विभाग के ज़रिये विवाद उठाया, जो लेबर कोर्ट, बरेली पहुंचा।
लेबर कोर्ट ने उनकी बर्खास्तगी को अवैध मानते हुए बहाली और 31 मई 2006 से 1 अप्रैल 2015 तक बैक वेज देने का आदेश दिया। बाद में हाईकोर्ट ने भी इस आदेश को बरकरार रखा।
इससे असंतुष्ट होकर राज्य सरकार ने Supreme Court of India का रुख किया, लेकिन सिर्फ एक सीमित मुद्दे पर-इतनी लंबी देरी के बाद क्या पूरा बैक वेज दिया जाना चाहिए?
Court’s Observations
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील ने दलील दी कि 16 साल की देरी अपने-आप में राहत कम करने का ठोस आधार है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार मुआवजा देने को तैयार है, लेकिन वर्षों का बैक वेज उचित नहीं।
वहीं कर्मचारी पक्ष ने कड़ा विरोध करते हुए कहा कि बर्खास्तगी अवैध पाई गई है, इसलिए राहत में कटौती नहीं होनी चाहिए। उनका दावा था कि बैक वेज की रकम 15 लाख रुपये से कम नहीं बैठती।
पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद रिकॉर्ड की ओर इशारा किया। “यह सही है कि संदर्भ आदेश को चुनौती नहीं दी गई, लेकिन राज्य ने शुरू से ही देरी का मुद्दा लेबर कोर्ट में उठाया था,” पीठ ने कहा।
अदालत ने सरल शब्दों में स्पष्ट किया कि श्रम कानून में तय समय-सीमा नहीं होने का मतलब यह नहीं कि वर्षों की चुप्पी का कोई असर ही न पड़े।
Decision
सभी परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लेबर कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों में आंशिक हस्तक्षेप किया। अदालत ने बर्खास्तगी को अवैध मानने के निष्कर्ष को बरकरार रखा, लेकिन बहाली और पूरे बैक वेज के आदेश को रद्द कर दिया।
“सोलह वर्ष की अत्यधिक देरी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता,” पीठ ने कहा और कर्मचारी को ₹2.50 लाख का एकमुश्त मुआवजा देने का निर्देश दिया। यह राशि दो महीने के भीतर चुकानी होगी, अन्यथा उस पर 7% वार्षिक ब्याज लगेगा। इसी के साथ अपील स्वीकार कर ली गई।
Case Title: State of Uttar Pradesh vs. Krishna Murari Sharma
Case No.: Civil Appeal arising out of SLP (C) No. 444 of 2024
Case Type: Civil Appeal (Labour / Industrial Dispute matter)
Decision Date: 17 December 2025














