एक महत्वपूर्ण निर्णय में, जो एक असामान्य प्रक्रियात्मक चूक पर आधारित था, सुप्रीम कोर्ट ने निष्पादन न्यायालय और बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेशों को रद्द करते हुए भूमि विवाद मामले में मूल ट्रायल कोर्ट की डिक्री को बहाल कर दिया। पीठ ने पाया कि प्रथम अपील ऐसे व्यक्तियों के पक्ष में तय की गई थी जो उस समय जीवित ही नहीं थे, जिससे वह निर्णय कानूनन लागू नहीं किया जा सकता था।
पृष्ठभूमि
यह विवाद वर्धा जिले की कृषि भूमि से जुड़ा है, जो मूल रूप से एक पूर्व सैनिक अर्जुनराव ठाकरे को आवंटित की गई थी। उनकी मृत्यु के बाद, प्रशासन ने वह जमीन अन्य व्यक्तियों को पुनः आवंटित कर दी। उनके कानूनी वारिसों ने इस पुनः आवंटन को चुनौती दी, और 2006 में ट्रायल कोर्ट ने वारिसों को वैध मालिक घोषित करते हुए भूमि का कब्ज़ा देने का आदेश दिया।
हालाँकि, कुछ प्रतिवादियों (प्रतिवादी संख्या 4 और 5) ने इस फैसले के खिलाफ अपील की। इस दौरान अपील लंबित रहते हुए दोनों प्रतिवादी क्रमशः 2006 और 2010 में मृत्यु को प्राप्त हो गए, पर उनके कानूनी वारिसों को अभिलेख में शामिल नहीं किया गया। इसके बावजूद, 2010 में अपीलीय अदालत ने ट्रायल कोर्ट के आदेश में संशोधन कर दिया।
कई वर्ष बाद जब मूल वारिसों ने ट्रायल कोर्ट की डिक्री को लागू करने की कोशिश की, तो निष्पादन न्यायालय ने कहा कि अपीलीय फैसला-even if flawed-मौजूद है। हाई कोर्ट ने भी इसी दृष्टिकोण को सही माना।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलीय निर्णय मूल रूप से अमान्य (Nullity) है क्योंकि यह उन व्यक्तियों के पक्ष में सुनाया गया था, जिनकी मृत्यु हो चुकी थी, और जिनके कानूनी वारिस रिकॉर्ड पर नहीं लाए गए। इसलिए, ऐसा निर्णय लागू ही नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा, “जब अपील का निर्णय हुआ, तब दोनों अपीलकर्ता पहले ही दिवंगत हो चुके थे। मृत व्यक्तियों के पक्ष में दिया गया निर्णय विधिक शक्ति नहीं रखता।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि “90 दिन की अवधि के भीतर मृत्यु के कारण अपील स्वतः समाप्त नहीं होती” वाला तर्क यहाँ लागू नहीं होता, क्योंकि मुख्य तथ्य यह है कि सुनवाई और फैसला दोनों मृत्यु के बाद हुए।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार हाई कोर्ट और निष्पादन न्यायालय दोनों के आदेशों को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि केवल 2006 का ट्रायल कोर्ट निर्णय ही प्रभावी है और अब उसी को लागू किया जाएगा।
मामला अब वापस निष्पादन न्यायालय में भेजा गया है, जो मूल डिक्री को लागू करेगा।
Case: Vikram Bhalchandra Ghongade vs State of Maharashtra & Others
Case Number: Civil Appeal (Arising out of SLP (Civil) No. 9947 of 2024)
Court: Supreme Court of India
Bench: Hon’ble Justice Pamidighantam Sri Narasimha & Hon’ble Justice Atul S. Chandurkar
Date of Judgment: 06 November 2025










