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पटना हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने की सजा रद्द की, कहा- केवल वैवाहिक तनाव के आधार पर पति को जेल नहीं भेजा जा सकता

Vivek G.

नन्हक राय बनाम बिहार राज्य मामले में, पटना हाई कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने की सज़ा को पलट दिया, और कहा कि सिर्फ़ वैवाहिक कलह और रोज़ी-रोटी के विवाद IPC 306 के तहत उकसाने का सबूत नहीं हैं।

पटना हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने की सजा रद्द की, कहा- केवल वैवाहिक तनाव के आधार पर पति को जेल नहीं भेजा जा सकता
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पटना हाईकोर्ट ने सोमवार को रोहतास जिले के एक व्यक्ति की उस सजा को रद्द कर दिया, जिसे पत्नी की आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराते हुए साढ़े तीन साल से अधिक की सजा सुनाई गई थी। अदालत ने साफ कहा कि आपराधिक कानून में केवल शक या भावनात्मक आरोपों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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पृष्ठभूमि

यह मामला जून 2023 में रोहतास जिले के चेनारी थाना क्षेत्र स्थित ससुराल में नेहा कुमारी की मौत से जुड़ा है। मृतका के पिता ने शिकायत दर्ज कराते हुए पति नन्हक राय पर रोज़गार और कथित दहेज विवाद को लेकर हत्या का आरोप लगाया था। इसी आधार पर दहेज हत्या और हत्या की धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की गई।

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हालांकि, सत्र अदालत ने ट्रायल के दौरान पति को हत्या और दहेज मृत्यु के आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी मानते हुए साढ़े तीन साल की सजा और जुर्माना लगाया।

नन्हक राय ने इस सजा को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी, यह कहते हुए कि उसके खिलाफ ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो कि उसने पत्नी को आत्महत्या के लिए मजबूर किया।

अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति आलोक कुमार पांडेय ने गवाहों के बयानों और चिकित्सकीय साक्ष्यों का विस्तार से विश्लेषण करते हुए पाया कि अभियोजन की कहानी विरोधाभासों से भरी हुई है। अदालत ने इस बात पर ध्यान दिलाया कि मृतका के पिता ने ट्रायल के दौरान कई बार अपने बयान बदले, जो उनकी शुरुआती शिकायत में दर्ज नहीं थे।

पीठ ने यह भी नोट किया कि जिरह के दौरान स्वयं सूचक ने स्वीकार किया था कि गांव के लोग कह रहे थे कि नेहा ने फांसी लगाकर आत्महत्या की। महत्वपूर्ण यह भी रहा कि उन्होंने यह भी माना कि विवाह के समय किसी प्रकार की दहेज मांग नहीं की गई थी। अदालत ने टिप्पणी की, “अपीलकर्ता के खिलाफ किसी भी प्रकार के उकसावे का ठोस आरोप सामने नहीं आया।” कोर्ट ने यह भी कहा कि भावनात्मक पीड़ा को कानूनी रूप से आत्महत्या के लिए उकसावा नहीं माना जा सकता।

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चिकित्सकीय साक्ष्य भी अभियोजन के पक्ष को कमजोर करते हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण स्पष्ट रूप से फांसी से दम घुटना बताया गया और शरीर पर हिंसा के कोई गंभीर निशान नहीं पाए गए। जांच अधिकारी ने भी माना कि किसी भी गवाह ने न तो क्रूरता की बात कही और न ही मारपीट या दहेज मांग की पुष्टि की।

ट्रायल कोर्ट की इस दलील पर कि पति के गांव से बाहर काम करने से इनकार करने के कारण पत्नी ने आत्महत्या की, हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में असहमति जताई। अदालत ने कहा कि रोज़गार को लेकर मतभेद मात्र से आत्महत्या के लिए उकसावा सिद्ध नहीं होता। फैसले में कहा गया, “ऐसा कोई सकारात्मक कृत्य सामने नहीं आया जिससे यह माना जाए कि मृतका के पास आत्महत्या के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा था।”

सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने दोहराया कि धारा 306 के तहत सजा के लिए स्पष्ट मंशा और आत्महत्या के लिए सक्रिय भूमिका साबित होना जरूरी है। केवल वैवाहिक तनाव या गरीबी इस कानूनी कसौटी पर खरे नहीं उतरते।

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निर्णय

अपील स्वीकार करते हुए पटना हाईकोर्ट ने सजा और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपना मामला साबित करने में विफल रहा है। अदालत ने आदेश दिया कि नन्हक राय को तत्काल रिहा किया जाए, यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो।

Case Title: Nanhak Rai vs The State of Bihar

Case No.: Criminal Appeal (SJ) No. 3685 of 2025

Case Type: Criminal Appeal (Abetment of Suicide – Section 306 IPC)

Decision Date: 22 December 2025

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